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Last Updated : शुक्रवार, 27 मई 2022 (14:42 IST)

जानिए कौन हैं गीतांजलि श्री जो अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली प्रथम भारतीय साहित्यकार बनीं

जानिए कौन हैं गीतांजलि श्री जो अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली प्रथम भारतीय साहित्यकार बनीं - geetanjali shree's novel tomb of sand got inernational booker award the first international award for hindi novel
27 मई को भारतीय साहित्य जगत में एक नया विश्व कीर्तिमान शामिल हो गया। हिन्दी साहित्य की लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत की समाधि' को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है। इतिहास में पहली बार किसी हिंदी उपन्यास को इस अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिला है। इसका अंग्रेजी अनुवाद डेजी रॉकवेल ने किया है जिसका शीर्षक है 'Tomb of Sand'। अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने के लिए 'रेत की समाधि' के साथ 13 और उपन्यास भी शामिल थे।

क्या है 'रेत की समाधि'
यह एक उपन्यास है जो राजकमल प्रकाशन ने छापा है। यह हिंदी साहित्य की पहली ऐसी कृति बन गया है जिसने चुनकर शॉर्ट लिस्ट होने से एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने तक की यात्रा की। यह गीतांजलि श्री का पांचवा उपन्यास है। 'रेत की समाधि' एक ऐसा मील का पत्थर बन गया है जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का सम्मान बड़ा दिया है।
यह एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद उदास रहती है। आखिरकार, वो अपने दुःख पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान अपने पीछे छोड़े गए अतीत का सामना करने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है। 
जजों ने भावनात्मक वाद-विवाद के बाद इसे पुरस्कार के लिए चुना। उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा चमत्कारिक उपन्यास है जो राष्ट्र,महिला, पुरुष, परिवार आदि के नए आयामों पर ले जाता है। गीतांजलि श्री को पुरस्कार के साथ पचास हजार पौंड की राशि मिली जो वह अनुवादक डेजी रॉकवेल के साथ साझा करेंगी।
कौन है गीतांजलि श्री
गीतांजलि श्री का असली नाम गीतांजलि पांडे है। पर उन्होंने अपने उपनाम के स्थान पर अपनी मां का नाम लगाया। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जे.एन.यू. से इतिहास में स्नातकोत्तर किया है। उन्हें बचपन से ही पढ़ने की रूचि थी और इसी कारण उनकी लिखने की भावना उत्पन्न हुई जो आगे जाकर उनका प्रोफेशन बनी। उन्होंने कई सारी लघु कथाएं और पांच उपन्यास भी लिखे हैं। इसके साथ उन्होंने प्रेमचंद पर आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनका लेखन स्पष्टवादिता और अभिव्यक्ति का अद्भुत उदाहरण है।
साहित्य में योगदान
उनकी पहली कहानी 'बेलपत्र' हंस में प्रकाशित हुई थी , इसके बाद दो और कहानियां उसी में प्रकाशित हुई। इनके पांच उपन्यास - माई , हमारा शहर उस बरस , तिरोहित , खाली जगह और रेत की समाधि प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से 'माई' का अंग्रेजी अनुवाद क्रॉसवर्ड अवार्ड के लिए अंतिम चार में स्थान बना चूका था। 'खाली जगह' का अनुवाद अंग्रेजी, जर्मन और फ्रेंच में किया गया है। इसके आलावा उनके पांच कहानी संग्रह अनुगूंज , मार्च मां और साकुरा, वैराग्य , यहां हाथी रहते थे और प्रतिनिधि कहानियां भी प्रकाशित हो चुके हैं।

पुरस्कार
गीतांजलि श्री ने 'इंदु शर्मा कथा सम्मान' , दिल्ली साहित्य अकादमी से 2001 में साहित्यकार सम्मान ,1994 में यू के साथ सम्मान, जापान फाउंडेशन से सम्मान जैसे अनेक सम्मानों के साथ-साथ भारतीय संस्कृति मंत्रालय से फेलोशिप भी पाई है। वर्तमान में ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय बुकर सम्मान प्राप्त हुआ है।
 
क्या है अंतरराष्ट्रीय बुकर सम्मान
यह साहित्य विधा में मिलने वाला एक अंतरराष्ट्रीय सम्मान है जो अंग्रेजी में अनुवाद की गई और ब्रिटेन और आयरलैंड में प्रकाशित किसी एक पुस्तक को प्रतिवर्ष दिया जाता है। यह 1969 से आरम्भ हुआ था।
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