सुनील गंगोपाध्याय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष बने
बंगाल में साहित्य, चित्र, सिनेमा, नृत्य या फिर संगीत या यूँ कहें कि कला के हर माध्यम में महारत हासिल करने वाले लोगों की कतार लगाने लगें तो भीड़ लग जाएगी। बंगाल की भूमि में साहित्य, कला और सृजन की उवर्रता है। इसी साहित्य की उर्वरा भूमि के जाने-माने हस्ताक्षर सुनील गंगोपाध्याय को हाल ही में साहित्य अकादमी का अध्यक्ष चुना गया। गंगोपाध्याय दो सौ से अधिक किताबें लिख चुके हैं और कुछ पर फिल्में भी बन चुकी हैं। |
सुनील गंगोपाध्याय बंगाल के साहित्य जगत में 1953 में चर्चा में आए और बाद में नई पीढ़ी के सबसे उर्वर और ऊर्जावान साहित्यकार के तौर पर स्वीकार किए गए। नए लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए काव्य-पत्रिका ‘कृत्तिवास’ ने कई अवसर उपलब्ध कराए। |
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बकौल गंगोपाध्याय वह मूलत: कवि हैं। लेकिन पद्य के साथ ही गद्य से भी उनका बराबर का अनुराग है। विशिष्ट शैली में लेखन के कारण उनकी रचनाओं का दूसरी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। पटकथा लेखन के उन्हें लिए स्वर्ण कमल पुरस्कार भी मिल चुका है। सत्यजीत रे की चर्चित फिल्म ‘अरण्येर दिन-रात्रि’ और ‘प्रतिद्वंद्वी’ सुनील गंगोपाध्याय की ही रचना है। इधर चर्चा में आई फिल्म ‘वॉटर’ भी उनकी लिखी कहानी है। वस्तुत: वे आधुनिक बंगाली साहित्य के प्रणेता हैं।
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सितंबर, 1934 को फरीदपुर के मैछपारा में (अब बंग्लादेश में) जन्मे गंगोपाध्याय अर्थशास्त्र के विद्यार्थी थे, लेकिन इस विषय में उनकी रुचि कम ही थी। बंगाल और दिल्ली में नौकरी करने के बाद उन्होंने इससे किनारा कर लिया और भावना और समाज की संवेदनाओं को छूने वाली रचना की ओर रुख किया। भावनाओं के आदमी को भला नौकरी कैसे रास आती ? सुनील गंगोपाध्याय ने नौकरी छोड़ दी और शिक्षण में कदम रखा। सुनील गंगोपाध्याय बंगाल के साहित्य जगत में 1953 में चर्चा में आए और बाद में नई पीढ़ी के सबसे उर्वर और ऊर्जावान साहित्यकार के तौर पर स्वीकार किए गए। नए लेखकों को प्रोत्साहन देने के लिए काव्य-पत्रिका ‘कृत्तिवास’ ने कई अवसर उपलब्ध कराए। इस पत्रिका के वे संस्थापक संपादक भी रहे। अपनी संवेदनशीलता और भावों को शब्दों में पिरोने के उनके हुनर और कमाल की क्राफ्टमैनशिप के कारण गंगोपाध्याय को कई पुरस्कार और सम्मान मिले। सन् 1985 में उनकी कृति ‘सई समय’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। इससे पहले उन्हें बंकिम पुरस्कार और दो बार आनंद पुरस्कार भी मिला। 1998 से 2002 तक के लिए वह साहित्य अकादमी सदस्य भी रहे। उनकी कृतियों में सई समय, श्रेष्ठ गल्प, सुनील गंगोपाध्यायेर श्रेष्ठ कविता (कविता संग्रह), निलालोहित समग्र प्रमुख हैं। पुरस्कार: वर्ष 1989 में उन्होंने ‘पूर्व-पश्चिम’ के लिए आनंद पुरस्कार प्राप्त किया। इसी साल उन्हें साहित्य सेतु पुरस्कार भी दिया गया। 1999 में ‘निलोहितेर गल्प’ कहानी पर सुनील गंगोपाध्याय को आनंद-स्नोचेम पुरस्कार दिया गया। 2003 में आनंद शंकर पुरस्कार प्रदान किया गया। 2005 में प्रथोम आलो के लिए सरस्वती सम्मान दिया गया। अपने संपूर्ण साहित्य के लिए उन्हें राममनोहर पुरस्कार भी मिला। रचना: ‘अरण्येर दिन-रात्रि’, ‘सई समय’, ‘अर्जुन’, ‘पुरुष’, ‘अग्निपुत्र’, ‘सरल सत्य’, ‘व्यक्तिगत’, ‘प्रतिद्वंद्वी’, ‘मोहपृथ्वी’, ‘आत्मप्रकाश’, ‘बांधु-बांधव’, ‘पूर्व-पश्चिम’, ‘जीवन जे रकम’, ‘अर्धेक मानोबी’, ‘एकटी चिट्ठी’ इत्यादि।