रंग व शब्दों से मृत्यु का कलात्मक साक्षात्कार
कलाकार प्रदीप कनिक की अनोखी चित्र प्रदर्शनी
जीवन, मृत्यु, अहसास और कला। बड़ा विलक्षण संयोग है इन चार गहरे शब्दों में। जीवन को खूबसूरती से जिया जाए तो कला है। मृत्यु से भय का अहसास ना हो और उसमें से कलाबोध उपजे तो जीवन है। हर कला जीवन और मृत्यु के अहसास के बगैर अधूरी है। एक कलाकार के लिए उसकी कला ही जीवन है। इंदौर निवासी अंतरराष्ट्रीय स्तर के चित्रकार प्रदीप कनिक के लिए उनकी तूलिका और रंगों ने तब नए आयाम खोल दिए जब उन्होंने जिंदगी और मृत्यु के बीच ठिठके एक पल को अपनी मुट्ठी में थाम कर अहसास के कैनवास उतार दिया। प्रदीप कनिक ने रंगों, प्रतीकों, अहसासों और आकृतियों के माध्यम से उस नाजुक लम्हे को सजाया है जब उन्होंने जीवन के उस सच से सामना किया जिसे मृत्यु कहा जाता है।