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Written By WD

'भाषा दीवार नहीं सेतु होती है : कवि पंकज सुबीर

ज्योति जैन के काव्य-संग्रह 'मेरे हिस्से का आकाश' का विमोचन

''भाषा दीवार नहीं सेतु होती है : कवि पंकज सुबीर -
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नई पीढ़ी को कम्प्यूटर का ज्ञान देने के साथ मुझे यह आभास होता है कि परिवार से मिलने वाले संस्कार उनमें कम होते जा रहे हैं, लेकिन यह तो मेरा भ्रम था। इस समारोह में आकर यह भ्रम टूट गया क्योंकि 'अँधेरा उतना घना नहीं हुआ कि हम सर पीटें'। महिलाओं के लेखन में आज भी संवेदनाएं महसूस होती हैं।

उक्त विचार सुविख्यात युवा कवि श्री पंकज सुबीर ने लेखिका ज्योति जैन के कविता संग्रह' मेरे हिस्से का आकाश' के विमोचन के अवसर पर व्यक्त किए।

खूबसूरत भावाभिव्यक्तियों से सज्जित इस आकर्षक संग्रह का विमोचन प्रीतमलाल दुआ सभागार में वरिष्ठ कवि श्री कृष्‍णकांत निलोसे की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। लेखन क‍ी विभिन्न विधाओं में दक्ष लेखिका ज्योति जैन के इससे पूर्व लघुकथा संग्रह 'जलतंरग' और कहानी संग्रह 'भोर वेला' साहित्य जगत में दस्तक दे चुकी हैं।

श्री सुबीर ने कहा कि पारिवारिक घटनाओं पर ज्योतिजी का लेखन प्रशंसनीय है। इनके लेखन में 'भाषा दीवार नहीं सेतु होती है' यह बा‍त स्पष्ट नजर आती है।

तय समय पर कार्यक्रम की शुरुआत भारती भाटे द्वारा गाए राष्ट्र वंदना 'वंदे मातरम्‌' से हुई।

101 सरल सहज और कोमल कविताओं के इस संग्रह को अतिथियों ने भी भरपूर सराहा। संग्रह की भूमिका सुप्रसिद्ध कवि अशोक चक्रधर ने लिखी है। प्रेम, स्त्री-शक्ति, राष्ट्रभक्ति, और स्वयं को विविध रंगों में परिभाषित करती इन्द्रधनुषी रचनाओं में लेखिका ने कुशल अभिव्यक्ति दी है।

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वरिष्ठ कवि कृष्णकांत निलोसे ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज ज्योतिजी के सम्मान का दिन है क्योंकि उन्होंने 'मेरे हिस्से का आकाश' से स्त्रियों का मान बढ़ाया है। स्त्री के लिए खिड़की के बराबर कोने भर आकाश होता है लेकिन उन्होंने कविता संग्रह से इस आकाश को कई गुना बढ़ा दिया। इस अवसर पर नईदुनिया के स्थानीय संपादक श्री जयदीप कर्णिक ने विशेष रूप से शुभकामनाएं व्यक्त की।

अतिथि परिचय संजय पटेल ने दिया। संचालन सुश्रस्मृति जोशी ने किया। रवींद्रनाथ टेगौर की पंक्तियां 'विपत्तियों से रक्षा कर, ये मेरी प्रार्थना नहीं..." के साथ श्रीमतज्योति जैन ने आभार माना।