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Written By ND

क्या होती है राष्ट्रीय एकता?

क्या होती है राष्ट्रीय एकता? -
- अमृता प्रीत
ND
हमारे पास तहजीब, धर्म और राष्ट्रीय एकता जैसे बहुत कीमती शब्द हैं, लेकिन शब्दों की तकदीर भी पत्थरों की तकदीर होती है- देवताओं की उन मूर्तियों की तरह, जिनमें प्राण-प्रतिष्ठा तो उसे करनी होती है, जो उन्हें प्यार करता है। लोग दो तरह के होते हैं : एक, जोशब्द को छोड़ देते हैं, अर्थ को पकड़ लेते हैं और उसका व्यापार करते हैं। दूसरे, जो अर्थ को छोड़ देते हैं, शब्द को पकड़ लेते हैं और उसका व्यापार करते हैं।

प्यार खुले आसमान की ओर उस खुली हुई हथेली का नाम है, जिस पर चाँद-तारे उतर आते हैं और कायनात की शक्तियों के जितने भी रंग होते हैं, वे हथेली पर खेलते हैं। और व्यापार उस बंद मुट्ठी का नाम है कि जैसे ही हाथ सिमट गया, एक मुट्ठी-सा हो गया, तो आसमान उस मुट्ठी से निकल गया। सब चाँद-तारे उस मुट्ठी से निकल गए। हर रंग का सौंदर्य उस मुट्ठी से निकल गया।

बंद मुट्ठी के पास अँधेरे के सिवा
  प्यार खुले आसमान की ओर उस खुली हुई हथेली का नाम है, जिस पर चाँद-तारे उतर आते हैं और कायनात की शक्तियों के जितने भी रंग होते हैं, वे हथेली पर खेलते हैं। और व्यापार उस बंद मुट्ठी का नाम है कि जैसे ही हाथ सिमट गया, एक मुट्ठी-सा हो गया      
कुछ नहीं रहता और उस अँधेरे में जब अंतर्चेतना का बीज सूखने लगता है, तो स्याह ताकतों का बीज पनपने लगता है और उसी अँधेरे को एक सत्ता मानकर वहाँ मुट्ठी और कस जाती है। किसी भी जाति के नाम पर, किसी भी मजहब के नाम पर जब मुट्ठियाँ बँध जाती हैं, तो वे एक-दूसरे से टकराने के लिए होती हैं, एक-दूसरे के अस्तित्व को आहत करने के लिए, एक-दूसरे की पीठ पर टूट पड़ने के लिए।

खुले आसमान की शक्ति को नकारकर जब अपनी-अपनी मुट्ठी के अँधेरे को सत्ता मान लिया, तो उस सत्ता को बनाए रखने के लिए किसी भी दूसरी सत्ता को मिटा देना उसका लक्ष्य हो गया...

यही मिटा देने का लक्ष्य उस व्यापार में उतरता है, जिसमें एक मुट्ठी अपनी सत्ता के गुणगान करने वालों को खरीद लेती है और फिर कोई दूसरी मुट्ठी उससे बड़ी कीमत देकर उन गुणगान करने वालों को पहली से छीन लेती है।
यह सारा व्यापार उस सत्ता के लिए होता है, जोबंद मुट्ठियों के अँधेरे की सत्ता होती है और जिससे खुले आसमान के चाँद-तारे कब के बेगाने हो चुके होते हैं।
एक कहानी कही जाती है। एक स्त्री के यहाँ बहुत बरसों की इंतजारी के बाद एक बच्चा पैदा हुआ। लोग उस बच्चे की सूरत देखकर हैरान थे। उसका खिला हुआ मस्तक, मुस्कुराती-सी आँखें लोग देखते और देखते रह जाते। यह भी देखा गया कि बच्चे की दोनों टाँगें अक्सर पद्मासन की सूरत में बनी रहती, जैसे कोई समाधि की अवस्था में हो।
और कहते हैं कि बच्चे के सौंदर्य की चर्चा सुनकर एक बहुत बड़ा ज्योतिषी उसे देखने आया। ज्योतिषी कहने लगा, 'बच्चे की आँखों में साक्षात चाँद-सूरज बैठे हैं। दायीं आँख में सूरज और बायीं में चंद्रमा। इसकी बीजाई का मालिक उच्च का शनि है और दृष्टि के प्रभाव में उच्च का मंगल है

ये उभरी-उभरी आँखें मुँह से बोलती हैं कि चाँद-सूरज के साथ वृहस्पति बैठा है।'

बच्चे की माँ चुपचाप सुनती रही, फिर पूछने लगी, 'सितारों का इतना इल्म रखते हो, तो यह बताओ कि यह बच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा'

'यह इतना बड़ा धर्मात्मा होगा कि इसकी ख्याति एक सुगंध की तरह चारों दिशाओं में फैल जाएगी। परमात्मा इसकी वाणी में बोलेगा...' ज्योतिषी ने इतना ही कहा था कि उस माँ की आँखें भर आई। वह कहने लगी, 'अब इतना बता दो कि इसका कत्ल कब होगा?'

ज्योतिषी हैरान हुआ कि यह कैसा सवाल है? माँ की आँखों से आँसू झरते रहे और उसने बच्चे को आँचल में लेकर कुछ इस तरह छाती से लगा लिया, जैसे किसी कातिल की निगाह से बचाना हो। फिर कुछ संभलकर वह स्त्री कहने लगी, 'बस इतना बता दो पंडितजी कि इसका कत्ल इसकी मौत के पहले होगा, या मौत के बाद होगा?'

ज्योतिषी और भी हैरान हुआ कि यह कैसा सवाल है? स्त्री फिर कहने लगी, 'अगर परमात्मा इसकी वाणी से बोलेगा, तो परमात्मा के नाम पर जो अपना-अपना कारोबार करते हैं, वे इसके दुश्मन हो जाएँगे और वही इसके कत्ल का रास्ता खोग लेंगे।'

हैरान से ज्योतिषी ने कहा, 'देवी! यह किसी का दुश्मन नहीं होगा। इसकी वाणी तो प्रेम की वाणी होगी।'

'वही तो कहती हूँ।' स्त्री ने कहा और अपने पल्लू से अपनी आँखें पोंछती हुई बोली, 'यह प्रेम की वाणी बोलेगा, तो लोग एक-दूसरे का कत्ल कैसे करेंगे? इसी से तो वे सभी बौखला जाएँगे, जो हर मजहब के नाम पर लोगों को शहीद करवाते हैं। उनका कारोबार नहींचलेगा, तो सबसे पहले वे इसी को कत्ल करवाएँगे।'

स्त्री भर्राए गले से आगे बोली, 'अगर ऐसा न हुआ, तो इसकी मौत के बाद इसके नाम पर बड़े-बड़े स्थान बनवाए जाएँगे और जो मुजावर वहाँ बैठेंगे, दान-दक्षिणा खाने के लिए, उनमें कितने ही विवाद खड़े हो जाएँगे। कई स्थान बनाए जाएँगे और कई गिराए जाएँगे, जिससइसका पूरा चिंतन कत्ल हो जाएगा।'

यह गाथा जाने किस काल की है, कब से चली आती है, लेकिन लगता है, यह हर काल के यथार्थ को लिए हुए है, बंद मुट्ठियों के यथार्थ को लिए हुए है। खुले आसमान के चाँद-तारे जब बेगाने हो जाते हैं और बंद मुट्ठियों की छाती में अँधेरे के सिवा कुछ नहीं होता, तो जिस अँधेरे की सत्ता वहाँ जन्म लेती है... उसके विज्ञान को जरा देखना होगा।
वह सत्ता भीतर से खौफजदा होती है और अगर कहीं यह बंद मुट्ठी खुल गई, तो उसका क्या होगा? अगर कहीं यह खुली हुई हथेली बन गई, तो सूर्य की किरण को वह कैसे झेल पाएगी? वह जानती है कि अँधेरे के सिवा कोई उसकी रक्षा नहीं कर सकता। इसलिए उसका एक हीलक्ष्य हो जाता है कि अँधेरे को बनाए रखना है।

अपने को बनाए रखने के लिए जो अँधेरा मुट्ठी को सत्ता का भ्रम देता है, उससे वह मुट्ठी और तन जाती है और अपने अँधेरे को अपना रक्षा-कवच मान लेती है। इस रक्षा-कवच का अमल दो तरह का होता है : एक तो सीधा कि वह जिस मुट्ठी का रक्षा-कवच हो जाता है, उस मुट्ठी को कत्लो-गारत में उतार देता है और लोग खौफजदा होकर उस मुट्ठी के साए में जीने लगते हैं

दूसरा यह कि वह उस मुट्ठी के इर्द-गिर्द कितनी ही शिक्षाओं,मान्यताओं, परंपराओं, नसीहतों और वायदों की रंगीन पर्चियाँ बाँध देता है कि लोग उसकी ओर खिंचते चले आते हैं। और वह मुट्ठी उन लोगों के खाने, पहनने, हँसने और जीने की हर इच्छा से लेकर उनके दिल-दिमाग तक को अपने अधिकार में ले लेती है।

हमारी दुनिया, जो बंद मुट्ठियों की दुनिया बन चुकी है, उससे मैं उस एकता की बात क्या कहूँ, जो खुले आसमान की ओर खुली हुई हथेली का नाम होता है। राष्ट्रीय एकता लफ्ज को गहराई से पाने के लिए पूरी कायनात की एकता में उतरना होता है, जहाँ एक राष्ट्र की
एकता किसी दूसरे राष्ट्र की एकता से टकराने के लिए नहीं होती। धरती के एक हिस्से को बनाने-सँवारने और उस पर जीने के लिए बड़ी इकाई से जो एक छोटी इकाई बना ली जाती है, उसका नाम राष्ट्रीय एकता होता है और ये सब छोटी इकाइयाँ मुबारक हो सकती हैं, अगर ये पूरी कायनात की ओर खुली हुई हथेलियों की तरह होजाएँ और सूर्य-किरणों के सारे रंग इन पर खेल सकें।

लेकिन ये छोटी-छोटी इकाइयाँ भी अगर राष्ट्रीय एकता के नाम पर बंद मुट्ठियों की तरह हो जाएँ, तो इनका नसीब भी बंद मुट्ठियों का नसीब हो जाता है और वे अँधेरे की सत्ता पर बनती हैं और कत्लो-गारत में टूटती हैं।

स, इतना-भर और कह दूँ कि कायनात की एकता को समझ लिया जाए, तो हर राष्ट्र की एकता एक खुली हुई हथेली की तरह हो सकती है और उस पर खेलते हुए चाँद-तारे जब उसके भीतर उतर जाते हैं, तो अंतरशक्ति का जन्म होता है।

जो सत्ता इंसान को इंसान से तोड़ती है, वह अँधेरे की सत्ता होती है। एक बुत-शिकन की सत्ता। और अंतरशक्ति बुत-तराश होती है, जो पत्थरों की-सी तकदीर लिए हुए धर्म और राष्ट्रीय एकता जैसे शब्दों में प्राण-प्रतिष्ठा करना जानती है।

(साहित्य अकादमी, दिल्ली के एक सेमिनार में, 10 जनवरी, 1991)