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Written By WD

आया मौसम इठलाती तितलियों का...

डॉ. किशोर पवांर

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मेरी तरह आप भी विस्मित होंगे इन नन्हे, रंगों की खान, उड़नछू जीवों की अठखेलियों से। आज भले न हो कल तो थे। जब बचपन में पुआड़िए के पौधों को उखाड़कर तितलियों को पकड़ने की कोशिश की थी, पुआड़िए को झपट्टा मारकर..। देव आनंद की तरह हमारे पास तितली पकड़ने की नेट न थी तो क्या पुआड़िए के पौधे तो थे। बरसात में पुआड़िए बच्चे और तितलियों का यह दृश्य, आज के शहरों से दूर कस्बों में, गांवों में देखा जा सकता है।

बच्चों की दौड़ा-दौड़ी और तितलियों की उड़ा-उड़ी का यह खेल बड़ा मजेदार है। तितलियों को देखकर मुझे हमेशा बरसात में मेरा बचपन याद आ जाता है। खैर अब न वे दिन हैं और न इतनी तितलियां। पर जो भी है वे गजब की खूबसूरत हैं। हवा में मटकते, इन जीवों के पंखों से तो नजरें ही नहीं हटतीं। गजब का चुंबकीय आकर्षण है इनके परों में।

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प्रकृति ने इनके परों के कैनवास पर बड़े सलीके से, धैर्य से, पूरे मनोयोग से गजब की चित्रकारी की है। कभी लगता है कि मोरपंखों की सुंदरता वहां से चुराकर इन जीवों के पंखों पर जड़ दी है। कहीं एक पंख पर एक आंख है तो कहीं दो। कहीं छोटी-बड़ी आंखों का संजोग जमाया है। कुछ तितलियों को देखकर लगता है कि प्रकृति खुद इन्हें देखकर आत्ममुग्ध हो गई है।

एक-दो आंखों से मन नहीं भरा तो चार-पांच चिपका दी। ब्लू पेंसी और पीकॉक पेंसी को देखकर तो ऐसा ही लगता है। गजब के चटख रंग, फ्लोरोसेंट, नीला, पीला तो कहीं चमकीला हरा। इनके परों पर सूर्य की किरणों के सीधे अथवा तिरछे गिरने से रंग संयोजन बदलता रहता है। पंख बंद हो तो पता ही न चले कि आसपास कोई सुंदर, नगीने जड़ी तितली बैठी है।

पंख खुलते ही सौंदर्य का पिटारा खुलता है और हमारी आंखें अचंभित हो जाती है यह जिंदा जादू देखकर, पंख बंद जादू गायब...।

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इन तितलियों को हम इन पर बनी आंखों (रिंग) के आधार पर भी पहचानते हैं फोर रिंग, फाइव रिंग आदि। एक केसरिया तितली पर दो बड़ी-बड़ी आंखें देख नाम दे दिया पीकॉक पेंसी, इसी तरह किसी नीली तितली को कह दिया ब्लू पेंसी। किसी को कॉमन लाइम कहा तो किसे टेल्ड जो या काली तितली को कॉमन क्रो नाम दे दिया।

क्या करें हमारा शब्दकोश प्रकृति में जीवों के खजाने की तुलना में बहुत छोटा है। जीवों का भंडार इतना बड़ा है कि नाम देने का हमारा कोई भी तरीका पूरा नहीं पड़ेगा। लिनियस की द्विनाम पद्धति भी फेल हो जाती है। हमारी समस्या यह है कि आखिर कहां से लाए इतने सारे वैज्ञानिक नाम।

लाख-दो लाख नहीं करोड़ों की संख्या में नाम चाहिए। जिन्हें हम जानते हैं उन्हीं के लिए कम पड़ रहे हैं, जिन्हें हमने आज तक नहीं पहचाना उनकी तो अल्लाह ही जानें। खैर फिर मुद्दे पर लौटते हैं, शेक्सपीयर भी कह गए हैं नाम में क्या रखा है?

परंतु जान-पहचान करना है तो कुछ-न-कुछ तो नाम देना ही पड़ेगा। आसपास, दिन-दोपहर जिनसे हमारी अक्सर मुलाकात हो रही है, मॉर्निंग वॉक हो पर या फिर रविवार को पिकनिक पर। तो आइए इन अनजान रंगीन दोस्तों को कुछ ऐसे नाम दे दें कि अगली बार जब ये मिल जाएं तो उन्हें कह सकें हलो पीकॉक पेंसी या गुड मॉर्निंग नीली रानी। या फिर गेंदे के फूल पर बैठी प्लेन टाइगर से पूछे कैसी हो तुम? ये नाम वैसे तो ठ‍ीक है पर मुझे लगता है कि क्या इनसे भी सरल और सार्थक नाम हिन्दी में नहीं हो सकते?

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मैंने कोशिश की है, शायद आपको पसंद आए। मसलन कॉमन क्रो काली कव्वा ति‍तली, मोरमोन को मीठी नीम तितली, मोनार्क को आंकड़ा तितली, कॉमन लाइम को नींबू तितली, एंगल्ड केस्टर को भूरी अरंडी तितली, और पेंसी को मोर तितली, चीता तितली, तेंदुआ तितली और ग्रास यलो को पुआड़‍ियां तितली। ये नाम सार्थक इस मायने में है कि ये उनसे उस पौधे का रिश्ता भी बताते हैं और उनका पता भी। जहां इन्हें आसानी से ढूंढा जा सकता है।

जैसे कॉमन लाइम नीबू-संतरा के पास, बेलपत्र के पास जरंट मिलेगी और एंगल्ड केस्टर अरंडी के पेड़ पर। कोई ी जीव आखिर वहीं तो मिलेगा जहां उसे दाना-पानी मिले। इल्लियां पत्तियों पर तो वयस्क फूलों पर भंवरें और तितलियां।

तितलियों के लिए तो यहां तक कहा जाता है कि फूल तो तितलियों के लिए ही विकसित हुए हैं। प्रकृति ने तितलियों को फूलों से प्यार करने का वरदान दिया है। उनका मकरंद पीने का आशीर्वाद है उनके पास। और तितलियां भी पीछे नहीं है, वे इस उपकार का बदला उनका परागकण कर चुकाती है।

जिनसे फिर नए बीज बनते हैं और नए फूल खिलते हैं। प्रकृति के दो सुंदरतम नाजुक रंगीन जीवों का यह रसभरा मधुर रिश्ता आज खतरे में है। प्रकृति के इन सुंदरतम जीवों को बचाना चाहते हैं तो ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाइए। बस एक ही गुजारिश है कि तितलियां बचाइए, ये स्वस्थ-सुंदर पर्यावरण की प्रतीक है। सितंबर माह तितलियों के लिए ही पहचाना जाता है, तो क्यों ना यह काम हम इसी माह से आरंभ करें।