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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

'सद्‍गुरु सांई दर्शन'- सांई बाबा की प्रामाणिक जीवनगाथा

पुस्तक समीक्षा

Book on Shirdi sai Baba | 
''सद्‍गुरु सांई दर्शन''- सांई बाबा की प्रामाणिक जीवनगाथा
'सद्‍गुरु सांई दर्शन'- यह किताब उन लोगों के लिए है जिनके मन में सांई बाबा के जीवन और दर्शन को लेकर भ्रम फैला है। मूलत: कन्नड़ में इस किताब को बी.व्ही. सत्यनारायण राव (सत्य विठ्ठला) ने सांई बाबा के जीवन से जुड़े स्थान पर यात्रा के दौरान बैरागी की स्मरण गाथा के आधार पर लिखा है।

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इस यात्रा में उनकी मुलाकात एक ऐसे संत से हुई, जो वेशभूषा से नाथ संप्रदाय के थे और वे उन्हें बिलकुल भी नहीं जानते थे कि वे कौन हैं? यात्रा के दौरान उन्हें उनके सांई होने का भ्रम होता रहा।

दरअसल, उस अनजान बैरागी ने यात्रा के दौरान सांई बाबा के जीवन के उन पहलुओं को उजागर किया जिसे शायद ही कोई सांई भक्त जानता हो। यह किताब शिर्डी में सांई के आगमन के पहले सांई कहां थे, उनका असली नाम क्या था, उन्होंने कहां-कहां की यात्रा की तथा उनके साथ कौन-कौन-सी घटनाएं घटित हुईं इस सबका खुलासा इस किताब में क्रमबद्ध तरीके से किया गया है।


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सांई बाबा के जीवन के बारे में इस किताब को पढ़ते वक्त बहुत ही रोचक अनुभव और शांति का अहसास होता है। जो लोग सांई बाबा के जीवन के बारे में जानना चाहते हैं उन्हें यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए। सांई बाबा पर पहले भी कई किताबें लिखी गई- जैसे सांई सच्चरित्र, सांई लीला आदि।

लेकिन इस चित्रों से सजी इस किताब में सांई बाबा के जीवन को बगैर किसी लाग-लपेट के सांस चलने जैसी गति में लिखा गया है। इस किताब को पढ़ना शुरू करने के बाद आप अंतिम पेज तक इसे बीच में छोड़ नहीं सकते, ‍क्योंकि इसमें सांई का महिमामंडन नहीं किया गया है। उनका बचपन से लेकर समाधि तक जीवन जैसा था वैसा का वैसा ही रख दिया है।

मूलत: कन्नड़ में लिखी इस किताब का प्रो. मेलुकोटे के. श्रीधर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसके बाद शशिकांत शांताराम गडकरी ने इसका हिन्दी अनुवाद बहुत ही सुंदर और सरल भाषा में लिखा है।

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गडकरी की इस पुस्तक 'सद्‍गुरु सांई दर्शन' (एक बैरागी की स्मरण गाथा) शिर्डी के सांई बाबा की जीवनी के तीस अध्याय हैं। इन तीस अध्यायों में सांई बाबा के क्रमवार जीवन चरित का खांका खींचा गया है।

सांई बाबा के समकालीन दत्त संप्रदाय के परम पूज्य श्री वासुदेवानंद सरस्वती के अनुयायी अनुवादक ने किताब की शुरुआत में निवेदन लिखा है कि मूल कन्नड़ लेखक ने बहुत ही रोचकता से सभी प्रसंग लिखे हैं और सांई बाबा की जीवनी पर प्रकाश डाला है। अंग्रेजी से अनुवाद करते वक्त उन्होंने इसका संक्षिप्तीकरण किया है।

मध्यप्रदेश की स्कूल शिक्षामंत्री अर्चना चिटनीस ने इस किताब पर अपनी टिप्पणी में लिखा है कि यह किताब हमारा परिचय एक ऐसे व्यक्ति की जीवन यात्रा से कराती है, जो हम आम लोगों के बीच से ही प्रकट हुआ और देखते ही देखते मानवता का पुजारी बन गया।

इसके बाद इस पुस्तक के लेखन कार्य, मुद्रण और प्रकाशन में शशिकांत शांताराम गडकरी ने परिवार के सदस्यों और सहयोगियों का आभार व्यक्त किया।

इसके बाद अनुक्रमणिका के 30 चेप्टर हैं- सद्‍गुरु सांई दर्शन, मेरे नानाजी और मैं, शिर्डी, मंदिर और परिसर, चमत्कार, नासिक दर्शन, त्र्यम्बकेश्वर, अनुभूति, पंचवटी दर्शन, पात्री यात्रा, वली फकीर का साथ, अजमेर वास्तव्य, धार्मिक समभाव, अयोध्या आगमन एवं वापसी, श्रीबेकुशाह का आश्रम, सेल्यु से प्रयाण, देशाटन, चांद पाशा पाटील और उनका घोड़ा, धूनी का महत्व, बाबा की लोकप्रियता, रामनवमी उत्सव, श्रीराम और श्रीकृष्ण, पूजा-कर्म और बाबा, औरंगाबाद परिसर, सांई कथाएं, श्रीसांई चरित्र, बाबा और भारतीय आजादी का आंदोलन, भगवान सांई बाबा, बाबा और जीवन शैली और अंत में समापन।

इस किताब की शुरुआत में सांई बाबा के हिन्दू या मुसलमान होने के भ्रम का खुलासा किया गया है। मूल कन्नड़ लेखक सत्य विठ्ठला ने इस किताब की शुरुआत के बाद अपने नानाजी की सांई बाबा से मुलाकात का वर्णन किया है। लेखक अनुसार खुद सांई बाबा ने उनके नानाजी को उनके पूर्व जन्म का मित्र बताया था।

सांई से उनकी मुलाकात के इस चमत्कारिक वर्णन को पढ़कर पाठक को यह विश्वास हो जाएगा कि यह किताब कितनी प्रामाणिक है, क्योंकि लेखक ने लिखा है उनके नानाजी की कथा के बाद ही उनके मन में शिर्डी जाने और सांई बाबा के बारे में जानकारी जुटाने की प्रेरणा मिली। यह जिज्ञासा एक खोज बन गई और बस यहीं से इस किताब की शुरुआत होती है।

इस किताब के समापन में लिखा गया है कि सांई बाबा हिंदुओं के लिए हिन्दू थे और मुसलमानों के लिए मुसलमान। यदि हम शिर्डी के सांई बाबा के आदर्श और रीति-रिवाजों को अपनाते हैं तो यही सांई के प्रति सच्ची भक्ति होगी।

हिन्दी अनुवादक : श्री शशिकांत शांताराम गडकरी
अंग्रेजी अनुवादक : प्रो. मेलुकोटे के श्रीधर
मूल कन्नड़ लेखक : श्री बी.व्ही. सत्यनारायण राव (सत्य विठ्ठला)
प्रकाशक : वासुदेव प्रतिष्ठान, इंदौर (मप्र)
मुद्रक : अमेय ग्राफिक्स, इंदौर (मप्र)