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Written By ND

बिकी हुई लड़कियों का दर्द

द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस : पुस्तक समीक्षा

Book review | बिकी हुई लड़कियों का दर्द
ज्योत्स्ना भोंडवे
ND
बचपन खोकर जिन बच्चियों को देह व्यापार के दलदल में फँसना पडता है, वे जिन हालात व तकलीफों से होकर गुजरती हैं उसी की दास्ताँ है 'द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस'। इसी तरह का दर्द भुगत चुकी सोमाली माम की आपबीती इन बच्चियों के दर्द की अभिव्यक्ति है। गरीब कंबोडियाई परिवार में जन्मी, कंबोडिया के उथल-पुथल के दौर में जंगल में रहने वाली अनाथ सोमाली। तब बचपन में वह अपना दुःख दर्द पेड़-पौधों से बाँटती थी।

तभी 9-10 साल की उम्र में उसे 50-55 साल के आदमी को सौंपते हुए कहा गया कि ये नानाजी शायद उसे उसके रिश्तेदारों को ढूँढने में मदद करेंगे। दरअसल उसे इस तथाकथित नाना को बेचा गया था।

जवानी में कदम रखते ही उस बुजुर्ग की घिनौनी हरकतें, उधारी के खातिर चीनी परचूनी द्वारा किया बलात्कार और फिर 14 साल की उम्र में जबरन विवाह... इन सबके बीच उसे कभी कुछ भी बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। पति के लाम पर जाते ही उस बुजुर्ग ने तो उसे चकलाघर पर ही बेच दिया। फिर तो जिंदगी दर्द, तकलीफ, तिरस्कार, अपमान, घृणा और खुद ही से घिन में तब्दील होती गई।

मगर अपनी हिम्मत और साहस से एक दिन सोमाली वहाँ से छूट गई। लेकिन छूटने के बाद चैन की साँस लेकर वहाँ से भाग जाने के बजाए सोमाली ने ऐसे ही नर्क में फँसी अन्य लड़कियों को छुड़ाने का बीड़ा उठाया। देह व्यवसाय में फँसी लड़कियों का इलाज कराने व भाग निकलने में भी उनकी मदद की। लेकिन भागने वाली कई लड़कियाँ घर नहीं लौट सकती थीं। उनके गरीब माँ-बाप या रिश्तेदारों ने ही उन्हें बेचा था। बचकर वे कहाँ जातीं? अतः सोमाली ने अपने फ्रांसीसी मित्रों की मदद से एक एनजीओ कायम किया और लड़कियों के रहने, खाने और पुनर्वास में मदद की। उसके केंद्र ने अब तक 3000 से अधिक बच्चियों को अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया है।

सोमाली कहती हैं कि अब भी ये बर्बर अत्याचार जारी हैं। कंबोडिया में यौन व्यापार अधिक व्यावसायिक बना है। कंबोडिया से लड़कियाँ थाईलैंड जाती हैं जबकि विएतनाम से लड़कियाँ कंबोडिया आती हैं। यह सब रोकने के लिए उसकी अपनी कोशिशें जारी हैं, जो काबिल-ए-तारीफ तो हैं ही, साथ ही कईयों को दिशा देने वाली भी हैं। अपनी इस आत्मकथा में सोमाली ने यही सब कहने की कोशिश की है।

पुस्तकः "द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस"
लेखकः सोमाली माम
अनुवादः लिसा अपीगनानेसी
मूल्यः 325 रुपए
प्रकाशकः विरागो