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Written By ND

अस्सी की लता : अस्सी अश्रुत गीत

book review-Lata Mangeshkar | अस्सी की लता : अस्सी अश्रुत गीत
डॉ. केके चौबे
ND
भारत का गौरव, दिव्य स्वर साम्राज्ञी, सुश्री लता मंगेशकर ने 28 सितंबर को जीवन के 80 बसंत पूर्ण किए। जाने-माने स्तंभकार व लेखक अजातशत्रु की इस अवसर पर अर्पित की गई 'स्वरांजलि' समस्त संगीत प्रेमियों के लिए बड़ी सौगात है जिसमें लताजी के 80 अश्रुत अनजान गीतों का संकलन व समीक्षा है। वास्तव में यह सुमन चौरसिया व अजातशत्रु की प्रिंट मीडिया जगत को समर्पित एक जुगलबंदी है।

लेखक ने अपनी आराध्य गायिका के प्रति ग्रंथ का उद्देश्य स्पष्ट दिया है कि 'न शब्दों के पास दिल होता है और न साजों के पास आत्मा' सिर्फ गायक ही इन 'बेजान लफ्जो में, ऊँघती हुई धुन में, जीवन का प्रकाश डाल देता है।'

वैसे तो अनेक समीक्षकों ने चित्रपट संगीत की समीक्षा की है, परंतु गीतों की समीक्षा केवल अजातशत्रु ही बड़ी रोचक शैली में सफलतापूर्वक कर पाए हैं जिसमें उन्होंने 50/55 वर्षों की अवधि की गोल्डन मेलडी से लताजी द्वारा गाए गए गीतों का ऐसा गहन अध्ययन किया है कि हर पंक्ति, हर शब्द की खूबियों को निचोड़कर रख दिया है।

यदि इन दुर्लभ गीतों का भारत का एकमात्र सुरीला दरबार लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय न होता तो इन गीतों की उपलब्धता शायद अन्यत्र नहीं हो पाती। इस पुस्तक के प्रेरक प्रणेता होने का श्रेय संग्रहालय के सचिव श्री चौरसिया को ही जाता है।

इल्म और फिल्म इस देश की पहचान हैं। हिन्दी फिल्म संगीत न होता तो 'हम जीते हुए भी सांस्कृतिक मौत' के आगोश में होते। अजातशत्रु ने पुस्तक में कई बार कहा है कि उन्हें संगीत का कोई तकनीकी ज्ञान नहीं है। बस एक दिल और कान है। वैसे भी संवेदना से श्रवण करना संगीत की पहली शर्त होती है। आज के पिंग-पोंग वार्तालाप में सुनने की किसे फुरसत और श्रद्धा कहाँ? अजात के लिए सुनना एक लर्निंग स्किल है। वे सुनते ही नहीं एप्रिसिएट भी करते हैं। समझ का यह बौद्धिक तत्व हृदय से जुड़ता है।

गीतों की मीमांसा के दौरान लगता है कि लेखक ने हर गीत के शहद में सराबोर माइक्रो इनपुट को अलग-अलग कर धोया, निचोड़ा और दिया है। यहाँ तक कि 'तेरे इस जहाँ से हम बाज आए' (परवरिश) के इस गीत में 'हम' शब्द पर हल्के-से उच्छवास को भी पकड़ा है जिससे गीत की वेदना और उदासी संप्रेषित होती है। अजात ने कानों की अजर को हमेशा चौकन्ना व तेज रखा है।

(एस्थेटिक्स) सौंदर्य-सरोवर का दर्शन बा्हय होता है और आंतरिक भी। बाह्य दर्शन में उसकी पृष्ठभूमि, स्रोत, विस्तार आदि के दर्शन होते हैं और आंतरिक आकलन तब तक संभव नहीं है जब तक कि उसमें डूबकर अवगाहन न किया जाए। लेखक ने जहाँ संगीतकारों का तथ्यात्मक परंतु विषद ज्ञानार्जित विवरण ग्रंथ में दिया है, वहीं आलोच्य गीतों के लालित्यपूर्ण रेशे-रेशे पर अपने 'रिस्पॉन्स' दिए हैं।

वास्तव में अजात को दोपहर के पर्दों को भेदते हुए कोहसार के पार देखने हेतु काली बीनाई मिली है। ऑस्कर वाइल्ड ने भी लिखा है 'art is the lie which leads to truth' और हम भी अक्ल से पल्ला झाड़कर इस मस्ती के आलम में खो जाना चाहते हैं।

पुस्तक : बाबा तेरी सोनचिरैया
लेखक : प्रो. आरएस यादव 'अजातशत्रु'
प्रकाशक : लता दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफोन रिकॉर्ड संग्रहालय, पिगडंबर, जिला इंदौर(म.प्र.)
सहयोग राशि : 1000 रु.