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Book Review : भोपाल गैस त्रासदी का मर्मांतक दस्तावेज है 'आधी रात का सच'

Book Review : भोपाल गैस त्रासदी का मर्मांतक दस्तावेज है 'आधी रात का सच' - A Book on Bhopal gas tragedy by Vijay manohar tiwari
आधी रात का सच : परत-दर-परत व्यथित करती किताब
 
जब किताब आधी रात का सच हाथ में आई तब लगा था कि लेखक की प्रकृति के अनुरूप उसमें निश्चित तौर पर उबाल होगा। विषय की गंभीरता और मार्मिकता जिस तरह की प्रस्तुति और संयोजन की माँग करती है वह सब इसमें होगा, यह उम्मीद पहले से थी। लेकिन किताब शब्दों के रास्तों से होते हुए पाठक को ही भोपाल की उस रात के भयावह मंजर में ला खड़ा कर देगी इसकी कतई उम्मीद नहीं थी।
 
एक दर्दनाक त्रासदी के पीछे की शर्मनाक सचाई को खौलते अंदाज में पेश करती है पुस्तक 'आधी रात का सच'। लेखक विजय मनोहर तिवारी ने पीड़‍ितों के निरंतर बहते आँसू, दबी हुई आह और सरकारी अधमताओं को कुशलतापूर्वक क्लैप-बाई-क्लैप पेश किया है।
 
भोपाल में 2 और 3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात कंपनी यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इस हत्यारी गैस ने लगभग 15 हजार से अधिक निर्दोष लोगों को निगल लिया और हजारों की संख्या में वहाँ के निवासियों को कई-कई तरह की घातक बीमारियाँ दे दीं।

ऐसी-ऐसी बीमारियाँ जिसे सुनकर-देखकर मन का हर भावुक तार झनझना उठे। कोई हमेशा के लिए अपाहिज हो गया, किसी की जिंदगी में 'आँखें' सिर्फ अंधेरों से उलझने के लिए बची है। अंदरूनी रोगों की तो कोई गिनती ही नहीं है।
 
यहाँ सवाल यह खड़ा हो सकता है कि हादसे तो होते रहे हैं और हर हादसा अपने पीछे तबाही का यही नर्क छोड़कर जाता है फिर इसमें नया क्या है?नया यह है कि यह हादसा प्रकृतिजन्य नहीं वरन मानवजनित है। नया है, इतने सालों बाद हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था का फैसला, जो अपने ही देश के रोते-झुलसते तिल-तिल मरते पी‍ड़‍ितों के गाल पर एक तमाचे की तरह पड़ता है और एक रही-सही उम्मीद भी डबडबाती आंखों के साथ धुंधली हो जाती है।
 
'आधी रात का सच' में लेखक इसी विचित्र से फैसले से अपनी बात आरंभ करता है, पत्रकारिता के मूल्यों की छांव में इस फैसले का प्रखर आकलन करता है और हमें मिलवाता है गैस की चपेट में आए चंद ऐसे-ऐसे किरदारों से जिनकी वेदना कठोरतम कलेजे को भी पसीज कर रख दे।

लेखक हमें मिलवा‍ता अपने देश की मूल्यविहीन राजनीति से, आत्मा को बेचकर 'आरोपियों' को चोर रास्तों से निकालते ‍मंत्री और नेता नामक 'धिक्कार-पुरुषों' से। दुनिया के किसी भी देश में नहीं बनी पर गैस त्रासदी के बाद हमारे देश में बनी एकमात्र 'विधवा कॉलोनी' से।

कानून, न्यायालय और सरकार की कुत्सित त्रि-धारा में लिपटी उस अवश और असहाय-सी जनता से जो अपने ही देश में अपनों के ही हाथों कपट का शिकार होकर रह गई।
 
इस त्रासदी के जिम्मेदार लोगों पर मूल एफआईआर धारा 304 ए के तहत दर्ज की गई थी। धारा 304 ए के दो भाग हैं, पहले में लापरवाही से हुई हत्या का मामला दर्ज होता है और दूसरी में गैर इरादतन हत्या का। पहले भाग में यानी लापरवाही से हुई मौत के मामले में अधिकतम सजा दो साल ही है।

जबकि गैर इरादतन हत्या में कम से कम दस साल की। मासूम जनता को छलते हुए कैसे और किस सफाई से मामले को कमजोर धारा में दर्ज कर दिया गया (‍जिसकी सजा अधिकतम दो साल ही हो सकती है), इसका रत्ती-रत्ती खुलासा लेखक ने पुरजोर अंदाज में किया है।
 
पूरी प्रस्तुति अपने देश की राजनीतिक विडंबनाओं और कानूनी पेचिदगियों को इस तेवर में उघाड़ती है कि 'निर्वसना'(वस्त्रहीन) सचाई आंखों को चूभने लगती है। पुस्तक की खासियत है हर मुद्दे, हर किस्से का सही जगह पर रूक जाना।

लेखक भावुकता में बहकर अनावश्यक विस्तार नहीं देता है बल्कि सच को आगे कर खुद पीछे हो जाता है और यही लेखकीय कौशल पाठक को पुस्तक से बांधे रखने में सक्षम है।
 
पुस्तक जिस अंदाज में समापन पर बढ़ती है उस राह में गालों पर आंसू की लकीर खिंचती ही है लेकिन पीड़ित के स्थान पर स्वयं को रख लेखक ने जिस मार्मिकता से अंत किया है उसे पढ़कर किसी गैस पीड़ित की तरह ही चीख-चीख कर महलों-दुमहलों में पसरे, आरोपों से लदे 'जिंदा अवशेषों' को झिंझोड़ने का मन करता है।

कितना दुखद है यह तथ्य कि वे लाशों के ढेर पर बैठकर भी खुलकर सांस ले पा रहे हैं जबकि लाशों के 'रिश्ते' बस 'मरे हुए बचे' हैं।
 
लेखक ने अपने आसपास गाहे-बेगाहे आए हर अखबारी पात्र का जिक्र किया है जो एक गंभीर मुद्दे पर बनते प्रवाह और क्रोध में बार-बार अटकता और खटकता हैं। लेकिन लेखक की मुद्दे को उठाने की ईमानदार त्वरा और भाषा का प्रबल आग्रह इस मामूली त्रुटि को खारिज कर देता है।
 
पुस्तक इसलिए भी मुक्त कंठ से प्रशंसनीय है क्योंकि इतने वर्षों में पीड़ितों की आवाज देश की कोई 'पालिका' नहीं बन सकी। यहां तक कि इस भयावह राष्ट्रीय त्रासदी पर हिंदी में कोई प्रामाणिक पुस्तक नहीं आई। ऐसे में लेखक विजय मनोहर तिवारी का यह प्रयास 'विजयी' कहा जाएगा।
 
पुस्तक : भोपाल गैस त्रासदी-आधी रात का सच
लेखक : विजय मनोहर तिवारी
प्रकाशक : बेंतेन बुक्स, सी- 19, प्रथम तल, प्लेटिनम प्लाजा, माता मंदिर, भोपाल(मप्र) 462011
मूल्य : 195 रुपए
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