गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

परंपरागत सब्जियों से हटकर खाएं ये 10 चमत्कारिक सब्जियां

परंपरागत सब्जियों से हटकर खाएं ये 10 चमत्कारिक सब्जियां - 10 wondrous vegetables
सब्जियां खाना अमृततुल्य है। सब्जियां 3 प्रकार की होती हैं, जैसे- जड़ीय सब्जियां, पत्तेदार सब्जियां और मूल सब्जियां।  हालांकि और भी कई प्राकार हैं।
आप भरपूर आलू और टमाटर खाते हैं। इसके अलावा पत्ता गोभी, फूल गोभी, गिलकी, तौरई, भिंडी, लौकी, बैंगन, कद्दू, करेला, पालक, मैथी, अरबी, सरसों का साग, सेम फली (बल्लोर), मटर, बोड़ा (लोभिया या चवला फली), ग्वार फली, सहजन या सुरजने की फली, टिंडा, शिमला मिर्च, भावनगरी मिर्च, शलजम, कटहल, शकरकंद (रतालू) आदि का सेवन करते ही रहे हैं। 
 
उक्त का सेवन करने के साथ ही आपने प्याज, खीरा, ककड़ी, हरी या लालमिर्च, मूली, धनिया, अदरक, लहसुन, नींबू, आंवला, गाजर, मक्कई, कच्चा आम (केरी) आदि का भी खूब इस्तेमाल किया है।
 
हम यह भी जानते हैं कि आपने सेंव की सब्जी, चने की भाजी, बेसन, रायता, कढ़ी और पनीर पर भी खूब हाथ साफ किए हैं, पर हम आपको तोटाकुरा, सोया, हरी अजवाइन, हरे प्याज की घास, अरबी का पत्ता, अरबी जड़, पेठा, ब्रोकली, गांठ गोभी, परवल, कच्चे केले की सब्जी, कच्चे केले का तना, कच्चे केले का फूल, पुदीना, धनिया, करी पत्ता, फ्रेंच बीन्स, ग्वार फली, सहजन की फली, पेठा, कमल ककड़ी, सुरतीकंद, अंवलामकाई और मूंगे की फली के बारे में बताने वाले नहीं हैं। लेकिन हम आपको उपरोक्त से अलग ऐसी सब्जियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपने शायद ही कभी खाई होगी। आपके लिए हम ढूंढकर लाए हैं ऐसी ही 10 चमत्कारिक सब्जियों की जानकारी जिन्हें जानकर आप रह जाएंगे हैरान...
 
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कोझियारी भाजी : कोझियारी भाजी की भाजी साल में एक बार जरूर खाएं। इससे खाने से हर तरह के रोग दूर हो जाते हैं। अधिकतर आदिवासी इस भाजी को खाते हैं। माना जाता है कि इसे खाने वाला कभी बीमार नहीं पड़ता।
छत्तीसगढ़ के बैगा आदिवासी लोग इस भाजी को खाकर हमेशा स्वस्थ और तंदुरुस्त बने रहते हैं। बैगा आदिवासी मानते हैं कि जंगलों में पाई जाने वाली कोझियारी भाजी को साल में एक बार जरूर खाना चाहिए। कोझियारी भाजी यानी जंगल में होने वाली सफेद मूसली का पत्ता। ये सभी जानते हैं कि सफेद मूसली शक्तिवर्धक औषधि है। 
 
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कुंदरु (COCCINIA GRANDIS (Gherkins) : कुंदरू का नाम तो आपने कम ही सुना होगा। कुंदरु को टिंडॉरा नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि 100 ग्राम कुंदरू में 93.5 ग्राम पानी, 1.2 ग्राम प्रोटीन, 18 के. कैलोरी ऊर्जा, 40 मिलीग्राम कैल्शियम, 3.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 30 मिलीग्राम पोटैशियम, 1.6 ग्राम फाइबर और कई जरूरी पोषक तत्व होते हैं। कहते है कि इसमें बीटा कैरोटिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
कुंदरू के पत्ते और फूल भी उतने ही गुणकारी हैं जितना इसका फल है। हाल में एक शोध में यह माना गया है कि खाने में रोज 50 ग्राम कुंदरू का सेवन करने से हाई बीपी के मरीजों को आराम मिलता है।
 
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चौलाई का साग (amaranth) : चौलाई का साग तो आपने खाया ही होगा लेकिन बहुत कम, कभी-कभार। यह सब्जी बहुत ही आसानी से मिल जाती है। यह हरी पत्तेदार सब्जी है जिसके डंठल और पत्तों में प्रोटीन, विटामिन ए और खनिज की प्रचुर मात्रा होती है। चौलाई में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन-ए, मिनरल्स और आयरन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
 
इस सब्जी को खाने से आपके पेट और कब्ज संबंधी किसी भी प्रकार के रोग में लाभ मिलेगा। पेट के विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए सुबह-शाम चौलाई का रस पीने से भी लाभ मिलता है। चौलाई की सब्जी का नियमित सेवन करने से वात, रक्त व त्वचा विकार दूर होते हैं।
 
चौलाई को तंदुलीय भी कहते हैं। संस्कृत में मेघनाथ, मराठी और गुजराती में तांदल्जा, बंगाली में चप्तनिया, तमिल में कपिकिरी, तेलुगु में मोलाकुरा, फारसी में सुपेजमर्ज, अंग्रेजी में Prickly Amaranthus कहते हैं। इसका वानस्पतिक नाम Amaranthus spinosus है। 
 
चौलाई दो तरह की होती है- एक सामान्य पत्तों वाली तथा दूसरी लाल पत्तों वाली। कटेली चौलाई तिनछठ के व्रत में खोजी जाती है। भादौ की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत होता है। चौलाई को खाने से आंतरिक रक्तस्राव बंद हो जाता है। यह सब्जी खूनी बवासीर, चर्मरोग, गर्भ गिरना, पथरी रोग और पेशाब में जलन जैसे रोग में बहुत ही लाभदायक सि‍द्ध हुई है।
 
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खुम्ब (Mushroom) : इसे हिन्दी में खुम्ब और वर्तमान में इस पौधे को मशरूम कहा जाता है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में यह स्वादिष्ट और पौष्टिक सब्जी सैकड़ों सालों से बैगा आदिवासी लोग खाते आ रहे हैं। आदिवासी लोग इसे चिरको पिहरी कहते हैं।
mushroom
भारत के कुछ इलाकों में ऐसी मान्यता है कि यह कुत्तों के मूत्र त्याग के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है, लेकिन यह बिलकुल गलत धारणा है इसीलिए कई लोग इसे कुकुरमुत्ता कहते हैं। स्वाद में यह आलू की तरह ही लगती है लेकिन इसमें भरपूर शारीरिक ताकत पैदा करने की क्षमता होती है। इसके साथ ही कई और भी सब्जियां हैं जैसे पुट्पुरा, बोड़ा, पुटू इनके अलग-अलग इलाके में अलग-अलग नाम हैं।
 
मशरूम के सेवन से शरीर में सर्विकल कैंसर के लिए जिम्मेदार ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) खत्म हो सकता है जिससे इस कैंसर से निजात संभव हो सकती है। ह्यूमन पैपिलोमा वायरस यानी एचपीवी त्वचा, मुंह और गले के जर‌िए सबसे तेजी से फैलने वाले वायरसों में से एक है जिसकी वजह से सर्विकल, मुंह व गले का कैंसर हो सकता है। मशरूम के और भी कई फायदे हैं। इससे पाचनक्रिया सही बनी रहती है और त्वचा में निखार आता है।
 
मशरूम कई प्रकार होते हैं। भारत के मैदानी भागों में श्वेत बटन मशरूम को शरद ऋतु में नवंबर से फरवरी तक, ग्रीष्मकालीन श्वेत बटन मशरूम को सितंबर से नवंबर व फरवरी से अप्रैल तक, काले कनचपडे़ मशरूम को फरवरी से अप्रैल तक, ढींगरी मशरूम को सितंबर से मई तक, पराली मशरूम को जुलाई से सितंबर तक तथा दूधिया मशरूम को फरवरी से अप्रैल व जुलाई से सितंबर तक उगाया जा सकता है।
 
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गोंगुरा (chopped gongura leaves) : गोंगुरा की सब्जी भी बनती है और चटनी व अचार भी। यह बहुत ही स्वादिष्ट होती है। इसमें आयरन, कैल्शियम और विटामिन्स की प्रचुर मात्रा होती है।
पालक पत्ते की तरह बनाई जाने वाली गोंगुरा की सब्जी सेहत और पाचन के लिए बहुत ही फायदेमंद है। इसके अलावा इसका अचार भी बनाया जाता है। गोंगुरा को मराठी में अंबाडीची कहते हैं।
 
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बथुआ (chenopodium) : बथुआ सब्जी का नाम बहुत कम लोगों ने नहीं सुना होगा। बथुआ एक वनस्पति है, जो खरीफ की फसलों के साथ उगती है। बथुए में लोहा, पारा, सोना और क्षार पाया जाता है। बथुए में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है।
 
ग्रामीण क्षेत्र में इसकी अधिकतर सब्जी बनाई जाती है। इसका रायता भी बनता है। इसका शरबत के रूप में भी उपयोग होता है। जैसे मैथी या गोभी के पराठे बनाए जाते हैं उसी तरह बथुए का पराठा भी स्वादिष्ट होता है। 
 
यह गोंगुरा या पालक के पत्तों की तरह दिखने वाला छोटा-सा हरा-भरा पौधा काफी लाभदायक है। बथुआ न सिर्फ पाचनशक्ति बढ़ाता बल्कि अन्य कई बीमारियों से भी छुटकारा दिलाता है। सर्दियों में इसका सेवन कई बीमारियों को दूर रखने में मदद करता है। 
 
यह शाक प्रतिदिन खाने से गुर्दों में पथरी नहीं होती। कब्ज और पेटरोग के लिए तो यह रामबाण है। बथुआ आमाशय को बलवान बनाता है, गर्मी से बढ़े हुए यकृत को ठीक करता है। इसकी प्रकृति तर और ठंडी होती है तथा यह अधिकतर गेहूं के खेत में गेहूं के साथ उगता है और जब गेहूं बोया जाता है, उसी सीजन में मिलता है।
 
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जिमिकंद (yam) : जिमिकंद को संस्कृत में सूरण, हिन्दी में सूरन, जिमिकंद, जिमीकंद व मराठी में गोडा सूरण, बांग्ला में ओल, कन्नड़ में सुवर्ण गडड़े, तेलुगु में कंडा डूम्पा और फारसी में जमीकंद कहा जाता है। हाथी के पंजे की आकृति के समान होने के कारण इसे अंग्रेजी में एलीफेंट याम या एलीफेंटफुट याम कहते हैं।
 
जिमिकंद एक गुणकारी सब्जी है। इसके पत्ते 2-3 फुट लंबे, गहरे हरे रंग के व हल्के हरे धब्बे वाले होते हैं। इसकी पत्तियां अनेक छोटी-छोटी लंबोतरी गोल पत्तियों से गुच्छों में घिरी होती हैं। इसका कंद चपटा, अंडाकार और गहरे भूरे व बादामी रंग का होता है। अनेक संप्रदायों में प्याज-लहसुन के साथ-साथ जिमिकंद से दूर रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह कामुकता बढ़ाने वाला होता है।
 
इसमें विटामिन ए व बी भी होते हैं। यह विटामिन बी-6 का अच्‍छा स्रोत है तथा रक्तचाप को नियंत्रित कर हृदय को स्वस्थ रखता है। इसमें ओमेगा-3 काफी मात्रा में पाया जाता है। यह खून के थक्के जमने से रोकता है। इसमें एंटीऑक्‍सीडेंट, विटामिन सी और बीटा कैरोटीन पाया जाता है, जो कैंसर पैदा करने वाले फ्री रेडिकलों से लड़ने में सहायक होता है। इसमें पोटैशियम होता है जिससे पाचन में सहायता मिलती है। इसमें तांबा पाया जाता है, जो लाल रक्‍त कोशिकाओं को बढ़ाकर शरीर में रक्त के बहाव को दुरुस्त करता है।
 
आयुर्वेद के अनुसार इसे उन लोगों को नहीं खाना चाहिए जिनको किसी भी प्रकार का चर्म या कुष्ठ रोग हो। जिमिकंद अग्निदीपक, रूखा, कसैला, खुजली करने वाला, रुचिकारक विष्टम्मी, चरपरा, कफ व बवासीर रोगनाशक है। इसे आप कभी-कभार इसलिए खा सकते हैं, क्योंकि इसमें ओमेगा-3 होता है और इसमें भरपूर मात्रा में तांबा पाया जाता है। 
 
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अजमोद (Parsley) : अजमोद को कई प्रकार से उपयोग में लाया जाता है। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है, चूर्ण भी, शरबत भी और चटनी भी। यह कोथमीर या धनिये जैसा होता है। अजमोद में इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत करने की क्षमता होती है, क्योंकि यह विटामिन ए, बी और सी से परिपूर्ण है। इसमें पोटैशियम, मैग्नीज, मैग्‍नीशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन, सोडियम और फाइबर भी भरपूर मात्रा में होता है।
 
अजमोद खासकर किडनी की सफाई करने के लिए जाना जाता है। किडनी में मौजूद व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालकर यह आपको स्वस्थ रखता है। अजमोद पेट की समस्याओं को दूर रखने में मदद करता है। श्वास संबंधी रोग में भी यह लाभकारी है। किसी भी तरह की शारीरिक कमजोरी हो तो अजमोद की जड़ के चूर्ण का सेवन करें। 
 
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ताजा हरा लहसुन (Fresh green garlic) : जैसे हरा प्याज होता है, उसी तरह हरा लहसुन होता है। प्याज के लंबे पत्तों की तरह लहसुन के पत्ते भी लंबे होते हैं। इनको काटकर सब्जी बनाई जाती है, जैसे मूली के पत्तों की सब्जी बनाई जाती है उसी तरह।
इसका स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन के पत्तों को किसी अन्य सब्जी जैसे गोभी या आलू के साथ मिलाकर भी बना सकते हैं। यह सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
 
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केल की सब्जी (Kell) : केले की नहीं, केल की सब्जी के बारे में सभी लोग जानते होंगे। केल की सब्जी में विटामिन्स, खनिज और रेशे सब कुछ बहुतायत में पाए जाते हैं। 
 
वैसे केल का प्रयोग सलाद, स्टिर फ्राई, स्मूदी, पास्ता आदि के रूप में किया जाता है लेकिन इसकी भाजी और भूजी भी बनाई जाती है। वनस्पति विज्ञान के अनुसार यह मूली और सरसों परिवार का सदस्य है।
 
इसके अलावा आप परंपरागत सब्जियों के साथ समय-समय पर उक्त और निम्न सब्जियों का भी सेवन करते रहेंगे ‍तो जीवनपर्यंत निरोगी और तंदुरुस्त बने रहेंगे। 
 
ये सब्जियां हैं- तोटाकुरा, सोया, हरी अजवाइन, हरे प्याज की घास, अरबी पत्ता, अरबी जड़, पेठा, ब्रोकली, गांठ गोभी, रवल, कच्चे केले की सब्जी, कच्चे केले का तना, कच्चे केले का फूल, पुदीना, धनिया, करी पत्ता, फ्रेंच बीन्स, ग्वार फली, सहजन की फली, पेठा, कमल ककड़ी, सुरतीकंद, अंवलामकाई, मूंगे की फली आदि।