पर्यावरण प्रदूषण के साथ ही मानव नई-नई बीमारियों से जूझने के लिए विवश हुआ है। स्वच्छ प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद विचरण करता मानव हालाँकि आज के आम व्यक्ति के मुकाबले लगभग तीन गुना अधिक शकर (कार्बोहाइड्रेट) और चर्बी (फेट) खाता था और उसकी ऊर्जा खपत भी 7500 से 8000 किलो कैलोरी थी, जो वर्तमान में दो से ढाई हजार है। तीन गुना ऊर्जा की खपत उनके लिए आसान थी क्योंकि वे भोजन और पानी की तलाश में निरंतर भटकते (चलते) रहते थे। यह श्रम ही था कि वे कभी मोटापे या मोटापा जनित शारीरिक विकारों से क्लांत नहीं हुए।
प्रकृति के विनाश के जरिए अपने विकास का सपना भौतिक सुविधाओं की दृष्टि से भले ही पूरा हो गया आभासित होता है मगर वस्तुत: इस तथाकथित महाविकास से जुटी भौतिक सुविधाओं का सुखद या आनंददायी तथा सुकूनदायक उपभोग एक दु:स्वप्न सिद्ध हुआ है।
पैसा है मगर मोटापा है, हृदय रोग है, पेट रोग है, मधुमेह है, तनाव है। भोजन है, भूख नहीं। भोजन है मगर डॉक्टरी प्रतिबंध जबर्दस्त हैं। फास्ट, जंक और न जाने कैसे-कैसे तैयार भोजनों, शारीरिक श्रम के अभाव में तथा आधुनिक जीवन शैली के चलते कब्ज नामक बीमारी ने लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा लोगों को येन-केन प्रकारेण अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
प्रकृति के विनाश के जरिए अपने विकास का सपना भौतिक सुविधाओं की दृष्टि से भले ही पूरा हो गया आभासित होता है मगर वस्तुत: इस तथाकथित महाविकास से जुटी भौतिक सुविधाओं का सुखद या आनंददायी तथा सुकूनदायक उपभोग एक दु:स्वप्न सिद्ध हुआ है।
तमाम तरह के चूर्णों के बावजूद राहत की चाहत अपूर्ण ही रह जाती है। नई-नई दवाओं के निर्माता अखबारों में कब्ज के रोगियों को राहत के बेहतरीन सब्जबाग दिखाने वाले विज्ञापनों का सहारा लेकर भले ही अपने व्यापार को खूब फला-फूला देख रहे हों मगर रोगियों की हालत कुछ ऐसी बनी रहती है- ‘राही (दवाएँ) बदल गए हैं, मगर रस्ता (रोग) है वही।‘
प्रदूषण के इस नवयुग में दवाइयाँ कब्ज से निजात कदापि नहीं दिला सकती हैं। यह बात जेहन में गहराई से उतार लीजिए। यहाँ चंद प्राकृतिक तरीके दिए जा रहे हैं, जो रोगियों को शीघ्र राहत दे सकते हैं- • सुबह-सुबह बिना मुँह (कुल्ला किए बिना) धोए, एक से चार गिलास पानी पीना शुरू करें। • शौच और मुख मार्जन से निपटकर 5-7 मिनट के लिए कुछ शारीरिक कसरत (शरीर संचालन) करें। • दोनों समय के भोजन में सलाद (खीरा ककड़ी, गाजर, टमाटर, मूली, पत्ता गोभी, शलजम, प्याज, हरा धनिया) थोड़ी मात्रा में ही सही, अवश्य शामिल करें।
• शाम का भोजन रात में कदापि न लें। याद रखें, आँतें सूर्य की मौजूदगी में ही अपनी गति बरकरार रख पाती हैं। पाचन की क्रिया का आधार ही आँतों की गति है। अत: कोशिश करें कि सूर्यास्त के पूर्व या सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक भोजन कर लें। यह असंभव हो तो भोजन में रेशेदार (छिलके वाली मूँग की दाल, भिंडी, गिल्की, पालक, मैथी, पत्ता गोभी, दलिया, सलाद, फल) पदार्थ अवश्य लें और भोजन के पश्चात कम से कम एक किलोमीटर पैदल चलें ताकि आँतें कृत्रिम तरीके से गति को प्राप्त हों। • रात्रि में सोने से पूर्व यथाशक्ति गरम पानी एक गिलास भरकर (200-250 मिली) अवश्य पिएँ। पानी पीने के पूर्व एक चम्मच खड़ा मैथी दाना (पहले से साफ धुला-सूखा) अवश्य खाएँ। • रात्रि में 7 से 11 के मध्य धुली हुई मनुक्का किशमिश आधा गिलास पानी में गला दें। गिलास काँच का हो। सुबह मनुक्का को बीज सहित एक-एक कर, खूब चबाकर खा लें और वह पानी पी जाएँ। इसके विकल्प के रूप में दो अंजीर भी- इसी तरह भिगोकर उपयोग किए जा सकते हैं। • कब्जियत यदि ज्यादा ही कष्टप्रद हो रही हो तो प्रात: बिस्तर छोड़ने से पूर्व लेटे-लेटे ही कल्पना करें कि आपकी आँतों में गति हो रही है और यह गति आँतों में मौजूद मल को लगातार आगे खिसकाती जा रही है। इस कल्पना को कुछ ही दिनों में आप साकार रूप में देख सकेंगे। यह विश्वास कीजिए। • कब्जियत के लिए दवा के रूप में कुछ लेना चाहें तो आठ परत सूती कपड़े से छाना हुआ 25-40 मिलीमीटर गोमूत्र (देशी गाय का) नियमित रूप से लें। स्वमूत्र भी शर्तिया फायदा करता है या फिर रात में आधा कप चाय में चिकित्सक की सहमति से आवश्यकतानुसार 1 से 5 चम्मच अरंडी का तेल मिलाकर पी जाएँ। • पेट के बल लेटकर पिंडलियों को ताकत से दबवाएँ। इस हेतु सरसों के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। • ठोड़ी पर दो से तीन मिनट के लिए अँगूठे से दबाव डालें। ऐसा पाँच मिनट के अंतर से दो-तीन बार करें। • संभव हो तो योगाचार्य से सीखकर अग्निसार क्रिया या अर्द्ध शंख प्रक्षालन करें।
याद रखिए, शौचालय में बैठकर अखबार-मैग्जिन न पढ़ें, गीत-मोबाइल न सुनें। हमारे मस्तिष्क में शरीर की विभिन्न क्रियाओं के लिए केंद्र (स्विच) हैं। आप गाने सुनेंगे, खबरें पढ़ेंगे तो मस्तिष्क के लिए मल विसर्जन दोयम दर्जे का हो जाएगा और वह खबर आपको लंबी प्रतीक्षा के बाद मिलेगी, जिसके लिए खासतौर पर आप शौचालय आए थे।
गाने और खबरों में तल्लीन मस्तिष्क शायद मल उत्सर्जन के विषय में कुछ इस तरह का संदेश आपको पहुँचाने की कोशिश करेगा- ‘यह क्रिया कतार में है, कृपया प्रतीक्षा कीजिए।‘ या यह भी हो सकता है 30 से 45 मिनट तक अखबार पढ़ने के बाद आँतों से यह संदेश प्राप्त हो। यदि संभव हो तो भारतीय शैली में ही यह क्रिया निपटाएँ, पिंडलियों का दबना और जाँघों का पेट पर दबाव आँतों (डिसेन्डिंग और एसेन्डिंग कोलन) और मलाशय को गति प्रदान करता है।
शौच करते समय दाँतों को परस्पर दबाने (भींचने) से भी पेट की मांसपेशियों में संकुचन होता है, जिससे आँतों पर दबाव पड़ता है। कब्ज नामक असुर आपके कारण ही जन्मा है, इसके वध के लिए दवा अवतरण नहीं स्वयं प्रयास करे तभी इसका मर्दन हो सकेगा, अन्यथा सोचते रह जाएँगे।