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Written By WD

जानिए खांसी के 5 प्रकार, सावधानियां और उपचार

जानिए खांसी के 5 प्रकार, सावधानियां और उपचार - Khansi
वैसे तो खांसी की समस्या सर्दि‍यों में अधि‍क होती है, लेकिन यह कई अन्य बीमारियों की जड़ भी हो सकती है। अगर खांसी का उपचार समय पर नहीं किया गया तो यह आपको कई बीमारियां दे सकती हैं। यदि उपचार के बाद भी खांसी जल्दी ठीक न हो तो इसे मामूली बिल्कुल न समझें। जानिए आयुर्वेद के अनुसार खांसी के यह 5 प्रकार, सावधानियां और उपचार - 
 
आयुर्वेद में खांसी को कास रोग भी कहा जाता है। खांसी होने ये पहले रोगी को गले में खरखरापन, खराश, खुजली आदि होती है और गले में कुछ भरा हुआ-सा महसूस होता है। कभी-कभी मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है और भोजन के प्रति अरुचि हो जाती है। 
 
जानिए खांसी के यह 5 प्रकार 
1. वातज खांसी : वात के कारण होने वाली खांसी में कफ सूख जाता है, इसलिए इसमें कफ बहुत कम निकलता है या निकलता ही नहीं है। कफ न निकल पाने के कारण, खांसी लगातार और तेजी से आती है, ताकि कफ निकल जाए। इस तरह की खांसी में पेट, पसली, आंतों, छाती, कनपटी, गले और सिर में दर्द भी होने लगता है।

2. पित्तज खांसी : पित्त के कारण होने वाली खांसी में कफ निकलता है, जो कि पीले रंग का कड़वा होता है। वमन द्वारा पीला व कड़वा पित्त निकलना, मुंह से गर्म बफारे निकलना, गले, छाती व पेट में जलन होना, मुंह सूखना, मुंह का स्वाद कड़वा रहना, प्यास लगती रहना, शरीर में गर्माहट या जलने का अनुभव होना और खांसी चलना, पित्तज खांसी के प्रमुख लक्षण हैं।
 
3. कफज खांसी : कफ के कारण होने वाली खांसी में कफ बहुत निकलता है। इसमें जरा-सा खांसते ही कफ आसानी से निकल आता है। कफज खांसी के लक्षणों में गले व मुंह का कफ से बार-बार भर जाना, सिर में भारीपन व दर्द होना, शरीर में भारीपन व आलस्य, मुंह का स्वाद खराब होना, भोजन में अरुचि और भूख में कमी के साथ ही गले में खराश व खुजली और खांसने पर बार-बार गाढ़ा व चीठा कफ निकलना शामिल है।

4. क्षतज खांसी : यह खांसी वात, पित्त, कफ, तीनों कारणों से होती है और तीनों से अधिक गंभीर भी। अधि‍क भोग-विलास (मैथुन) करने, भारी-भरकम बोझा उठाने, बहुत ज्यादा चलने, लड़ाई-झगड़ा करते रहने और बलपूर्वक किसी वस्तु की गति को रोकने आदि से रूक्ष शरीर वाले व्यक्ति के गले में घाव हो जाते हैं और खांसी हो जाती है।इस तरह की खांसी में पहले सूखी खांसी होती है, फिर रक्त के साथ कफ निकलता है।

5. क्षयज खांसी : यह खांसी क्षतज खांसी से भी अधिक गंभीर, तकलीफदेह और हानिकारक होती है। गलत खानपान, बहुत अधि‍क भोग-विलास, घृणा और शोक के के कारण शरीर की जठराग्नि मंद हो जाती है और इनके कारण कफ के साथ खांसी हो जाती है। इस तरह की खांसी में शरीर में दर्द, बुखार, गर्माहट होती है और कभी-कभी कमजोरी भी हो जाती है। ऐसे में सूखी खांसी चलती है, खांसी के साथ पस और खून के साथ बलगम निकलता है। क्षयज खांसी विशेष तौर से टीबी यानि (तपेदिक) रोग की प्रारंभिक अवस्था हो सकती है, इसलिए इसे अनदेखा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।
 
एलोपैथिक चिकित्सा के अनुसार खांसी होने के कारण इस प्रकार हैं -
 
श्वसन तंत्र के कारण - 
1. श्वसन नली के ऊपरी भाग में टांसिलाइटिस, लेरिन्जाइटिस, फेरिन्जाइटिस, सायनस का संक्रमण, ट्रेकियाइटिस तथा यूव्यूला का लम्बा हो जाना आदि से खांसी होती है।
2. श्वसनी (ब्रोंकाई) में ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियेक्टेसिस आदि होने से खांसी होती है।
3. फुफ्फुस  के रोग, जैसे तपेदिक (टीबी), निमोनिया, ट्रॉपिकल एओसिनोफीलिया आदि से खांसी होती है।
4. प्लूरा के रोग, प्लूरिसी, एमपायमा आदि रोग होने से खांसी होती है।

खांसी गीली और सूखी दो प्रकार की होती है। सूखी खांसी, एक्यूट ब्रोंकाइटिस, फेरिनजाइटिस, प्लूरिसी, सायनस का संक्रमण तथा टीबी के शुरुआती चरण के करण हो सकती है। गीली खांसी के कारणों में क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियेक्टेसिस और फुक्फुसीय गुहा (केविटी) में कफ हो जाना शामिल है। यह खांसी कभी-कभी दुर्गंधयुक्त भी हो सकती है।
 
सामान्य खांसी : दिनचर्या और दैनिक आहार में गड़बड़ होने से भी खांसी चलने लगती है। इसे सामान्य खांसी कहते हैं। गले में संक्रमण होने पर खराश और शोथ होने पर खांसी चलने लगती है, खराब तेल से बना व्यंजन खाने, खटाई खाने, चिकनाईयुक्त व्यंजन खाकर तुरंत ठंडा पानी पीने आदि कारणों से खांसी चलने लगती है। यह सामान्य खांसी उचित परहेज करने और सामान्य सरल चिकित्सा से ठीक हो जाती है।अगर 8-10 दिन तक उचित परहेज और दवा लेने पर भी खांसी ठीक न हो तो इसे गंभीरता से लेते हुए डॉक्टर से परामर्श लेकर सही उपचार करना चाहिए।

सावधानी : 1 खांसी के रोगी को कुनकुना गर्म पानी पीना चाहिए और स्नान भी कुनकुने गर्म पानी से करना चाहिए। कफ ज्यादा से ज्यादा निकल जाए इसके लिए जब-जब गले में कफ आए तब-तब थूकते रहना चाहिए।
 
2 मीठा, क्षारीय, कड़वा और गर्म पदार्थों का सामान्य सेवन करना चाहिए। मीठे में मिश्री, पुराना गुड़, मुलहठी और शहद, क्षारीय चीजों में यवक्षार, नवसादर और सुहागा, द्रव्यों में सोंठ, पीपल और काली मिर्च तथा गर्म पदार्थों में गर्म पानी, लहसुन, अदरक आदि-आदि पदार्थों का सेवन करना लाभकारी होता है।
 
3 खांसी होने पर खटाई, चिकनाई, अधि‍क मिठाई, तेल के तले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा ठंड, ठंडी हवा और ठंडी प्रकृति के पदार्थों का सेवन करने से परहेज करना चाहिए। 
 
घरेलू इलाज
1. सूखी खांसी में दो कप पानी में आधा चम्मच मुलहठी चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब उतारकर ठंडा करके छान लें। इसे सोते समय पीने से 4-5 दिन में अंदर जमा हुआ कफ ढीला होकर निकल जाता है और खांसी में आराम हो जाता है। 

2. गीली खांसी के रोगी गिलोय, पीपल व कण्टकारी, तीनों को मोटा-मोटा कूटकर शीशी में भर लें। एक गिलास पानी में तीन चम्मच यह चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा रह जाए तब उतारकर बिलकुल ठंडा कर लें और 1-2 चम्मच शहद या मिश्री पीसकर डाल दें। इसे दिन में दो बार सुबह-शाम आराम होने तक पीना चाहिए।
 
आयुर्वेदिक चिकित्सा 
श्रंगराभ्र रस, लक्ष्मी विलास रस अभ्रकयुक्त और चन्द्रामृत रस, तीनों 10-10 ग्राम तथा सितोपलादि चूर्ण 50 ग्राम। सबको पीसकर एक जान कर लें और इसकी 30 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया, एक चम्मच वासावलेह में मिलाकर चाट लें। दिन में तीन बार, सुबह, दोपहर व शाम को, 'हर्बल वसाका कफ सीरप' या 'वासा कफ सायरप' आधा कप कुनकुने गर्म पानी में डालकर पिएँ। साथ में खदिरादिवटी 2-2 गोली चूस लिया करें। छोटे बच्चों को सभी दवाएँ आधी मात्रा में दें। प्रतिदिन दिन में कम से कम 4 बार, एक गिलास कुनकुने गर्म पानी में एक चम्मच नमक डालकर आवाज करते हुए गरारे करें।