क्या कोई नेता इतना छोटा भाषण भी दे सकता है? मंच पर श्रीप्रकाश जायसवाल आए और बोले सिर्फ एक शेर कहूंगा, जो अभी के हालात पर मौजूं है- वतन की आबरू खतरे में है, तैयार हो जाओ...। और बस वे मंच से नीचे उतर गए। मगर यह तो पूरा शेर भी नहीं हुआ। केवल एक लाइन...एक मिसरा..! क्या कानपुर के कांग्रेस प्रत्याशी शेर की एक लाइन से कांग्रेस की हार कबूल नहीं कर रहे? या उन्हें अपने हार जाने की आशंका है? वे तीन बार से यहां के सांसद हैं। कोयला मंत्री बने। खूब काम भी कराया है। तो चौथी बार में उनके मन में संशय क्यों है?
मगर संशय है...। कानपुर में जो दंगा हुआ, उससे उन्हें हार का डर सता रहा है। अपनी खुद की भी हार का और पार्टी की हार का तो खैर है ही। यहां कानपुर में उनका जनसंपर्क लाटुश रोड से शुरू होकर तीन किलोमीटर लंबे रास्ते पर हुआ। यह मुस्लिम इलाका है। मुसलमानों में उन्हें लेकर बहुत जोश है। पूरे रास्ते कई मंच लगे थे। मंच से फूलों की बरसात हुई। जगह-जगह उन्हें हार पहनाए गए, जो श्रीप्रकाश जायसवाल ने खरीद कर नहीं दिए थे, लोगों ने खुद खरीदे थे। भीड़ भी खूब थी। हजार-दो हजार लोग तो जरूर होंगे। नारे भी खूब लगे। श्रीप्रकाश खूब उर्दू जानते हैं। मुशायरे भी खूब कराते हैं। मुस्लिम तहज़ीब से भी खूब आशना है। लोग अभिवादन करते हैं, तो इस तरह एक हाथ से आदाब करते हैं, जैसे मुशायरों में दाद पाने वाले शायर किया करते हैं। कार्यकर्ता एक से एक नारे लगा रहे हैं। मगर श्रीप्रकाश के चेहरे पर रौनक और उत्साह नहीं है। उन्हें तिरंगी पगड़ी बांधी गई। उनसे कबूतर उड़वाए गए। मगर उनके चेहरे पर तो हवाइयां सी उड़ रही थीं।
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शायद उनके मन में यह खटक है कि अगली सरकार यूपीए की नहीं बनने जा रही और क्या पता भविष्य में वे फिर कभी मंत्री बन पाएंगे या नहीं। मुमकिन है यह खटक इसी चुनाव में हार के डर से पैदा हुई है। बहरहाल नारे खूब लग रहे हैं। आगे जो खुला टेंपो चल रहा है, उससे कहा जा रहा है- देखिए भाइयो, यह जो सड़क नई बनी है, यह श्रीप्रकाश जी ने ही बनवाई है। ये जो टंकी नई बन रही है, इसे श्रीप्रकाश जी ही बनवा रहे हैं।
कुछ नारे तुकदार भी हैं- जनता करती है जिनका विश्वास, उनका नाम है श्रीप्रकाश...जन-जन के प्यारे हैं, जन-जन के दुलारे हैं, श्रीप्रकाश हमारे हैं। बटन दबेगा शान से, पंजे को पहचान के...। जात पर न पांत पर, बटन दबेगा हाथ पर...। सैकड़ों लोग आगे हाथों में हार लिए, मंच पर फूलों की पंखुड़ियां सजाए श्रीप्रकाश का इंतज़ार कर रहे हैं। वे खरामा-खरामा आगे बढ़ रहे हैं। मगर चाल में तेजी नहीं है। शायद वे जानते हैं कि सिर्फ मुस्लिम वोटों से चुनाव नहीं जीता जा सकता और हिंदू वोट इस बार...।
नवीन मार्केट में उनका चुनाव कार्यालय है। सुबह साढ़े ग्यारह बजे वहां ताला था। इसके बरखिलाफ मुरली मनोहर जोशी के कार्यालय में खूब भीड़। सरोजिनी नगर में जोशी का चुनाव कार्यालय है। कार्यकर्ताओं के चाय-नाश्ते और खाने का प्रबंध वहीं है। खूब सारी महिलाएं भी दफ्तर में थीं। कुछ कार्यकर्ता घर-घर झंडे लगाने की तैयारी कर रहे थे। बकाया भी किसी न किसी गुंताड़े में ही थे।
मुरली मनोहर जोशी का दो दिन तक पब्लिक में कोई कार्यक्रम नहीं है। वे संगठन की बैठकों में बिजी रहेंगे। जोशी के लिए पूरा संगठन लगा हुआ है। संघ भी है। तरह-तरह के नाम-निशान वाले वे छोटे संगठन और दल भी हैं, जो भाजपा खेमे के हैं। श्रीप्रकाश के साथ अपने निजी कार्यकर्ता हैं। आखरी नतीजा चाहे जो हो, मगर श्रीप्रकाश की मनोदशा तो आधे शेर से ही समझी जा सकती है - वतन की आबरू लुटने को है, तैयार हो जाओ...।