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डेनिम जीन्स पहनने का शौक रखते हैं तो यह बात आपको मालूम होनी चाहिए

डेनिम जीन्स पहनने का शौक रखते हैं तो यह बात आपको मालूम होनी चाहिए - do you know these fact about denim  jeans
- अथर्व पंवार
 
फैशन और ट्रेंड के अनुसार हम अलग अलग परिधानों को पहनते हैं। इसमें सबसे ज़्यादा क्रेज़ डेनिम कपड़ों का है। यह ऊँची ऊँची कीमतों पर बिकते हैं और इसको पसंद करने वाले ग्राहकों की भी कोई कमी नहीं है। आज समय ऐसा है कि लोगों के लिए फैशन एक सामाजिक स्तर ( society status ) हो गया है। यदि आप ट्रेंड के हिसाब से कपडे नहीं पहनते हैं तो आपको पिछड़ा मान लिया जाता है।
पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि डैनिम जीन्स पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ( united nations ) ने 11 अगस्त 2019 को ट्विटर पर अपने आधिकारिक खाते से एक पोस्टर साझा किया था। इस पोस्टर में स्पष्ट लिखा गया था कि 'एक जीन्स को बनाने में 10000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।' इससे समझा जा सकता है कि आज भी पृथ्वी के कुछ क्षेत्रों में लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं वहीं हजारों लीटर पानी मात्र एक जीन्स पर खर्च कर दिया जाता है। अपने ट्वीट के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने आगे कहा था कि 'हम सेकंड हैण्ड कपडे खरीद कर, पर्यावरण के अनुकूल परिधान (इकोफ्रैंडली ) खरीद कर और हमारे न पहनने के कपड़ों का दान कर के हम जीन्स द्वारा हो रहे पर्यावरण पर प्रभाव को काम कर सकते हैं और पृथ्वी को भी बचा सकते हैं।
 

 
मार्च 2019 को भी अपनी आधिकारिक वेबसाइट के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र ने एक आलेख के माध्यम से कहा था कि एक जीन्स को बनाने में इतना पानी लगता है जितना एक व्यक्ति सात वर्ष तक पीने में उपयोग कर सकता है। जितना मूल्य हमें प्राइज टैग पर दीखता है उससे अधिक इस फैशन पर खर्च होता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि प्रति वर्ष 9300 करोड़ क्यूबिक लीटर पानी फैशन इंडस्ट्री में खर्च होता है जो 5 करोड़ लोगों की मांग की पूर्ति करने के लिए पर्याप्त है। इसी के साथ 50 लाख टन माईक्रोफाइबर जो 3 करोड़ बैरल तेल के बराबर होता है , इतना अपशिष्ट प्रतिवर्ष समुद्र में छोड़ा जा रहा है। फैशन उद्योग दूसरा सबसे अधिक प्रदूषण करने वाला उद्योग है। हर सेकंड में इस उद्योग का एक ट्रक भर के कचरा जलाया जाता है या जमीन में गाड़ा जाता है। फैशन उद्योग पूरे विश्व का 20 प्रतिशत प्रदूषित पानी के लिए जिम्मेदार है।
उच्चस्तरीय डैनिम कंपनियों का कहना है कि 2030 तक वह जीन्स पर लगने वाले पानी के उपयोग को आधा कर देंगे। पर प्रश्न यह है कि कम होते जलस्तर और समाप्त होते मीठे पानी के स्त्रोतों की समस्या में भी इतना पानी एक जीन्स के लिए बहाना आवश्यक है ? कई प्रबुद्ध पर्यावरणविद भी जल की समस्या के लिए आवाज उठाते हैं। पर क्या डैनिम जीन्स पहन पर पर्यावरण बचने की बात करना उचित है ? संयुक्त राष्ट्र और अनेक संस्थानों द्वारा जो कदम उठाने के लिए इतने समय से प्रेरित किया जा रहा है , क्या हम उन पर चल रहे हैं ?

आज इस विषय को उठाने की आवश्यकता इसलिए पड़ रही है क्योंकि भारत में कई प्रमुख शहरों में पानी की समस्या आ रही है। कपडा उद्योग में नई नई तकनीकों से प्रदूषण कम करने के तरीके खोजे जा रहे हैं और इस पर शोध भी किए जा रहे हैं पर बढ़ती आबादी की मांग पूरी करने के लिए हमारे पास पर्याप्त जल की स्थिति चिंतनीय है। अमेरिका के कैलिफोर्निया के साथ साथ खाड़ी देशों और अफ्रीकी द्वीप पर भी जल की समस्या है। ऐसे में यह सोचना होगा ही फैशन और अन्य उद्योगों के नाम पर हो रहा यह कृत्य 'विकास' है या 'विनाश'।