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Last Modified: बुधवार, 20 जनवरी 2021 (20:37 IST)

Kisan Andolan : कमेटी पर आरोप लगाने से सुप्रीम कोर्ट हुआ नाराज

Kisan Andolan : कमेटी पर आरोप लगाने से सुप्रीम कोर्ट हुआ नाराज - Supreme Court angry over accusing the committee in Kisan agitation case
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने नए कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए गठित की गई समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को काफी नाराजगी जाहिर की। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि उसने विशेषज्ञों की समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, जो कृषि क्षेत्र के बेहतरीन विशेषज्ञ हैं।

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि उसे इस बारे में गंभीर आपत्ति है कि समिति के सदस्यों का गलत चित्रण किया जा रहा है, जो कि अब एक संस्कृति बन गई है। उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने 12 जनवरी को नए कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी तथा केंद्र और दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के बीच गतिरोध खत्म करने के सिलसिले में सिफारिशें करने के लिए चार सदस्‍यीय एक समिति गठित की थी।

इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह पुलिस का विषय है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजस्थान के किसान संगठन किसान महापंचायत की एक अलग याचिका पर नोटिस जारी किया और अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल का जवाब मांगा। याचिका के जरिए शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त चार सदस्‍यीय समिति के शेष तीन सदस्यों को हटाने और समिति से खुद को अलग कर लेने वाले भूपिंदर सिंह मान की जगह किसी अन्य को नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है।

मान, भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पीठ ने समिति के सदस्यों के बारे में एक वकील की दलील पर कहा, आप बेवजह आक्षेप लगा रहे हैं। क्या अन्य संदर्भ में विचार प्रकट करने वाले लोगों को समिति से बाहर कर दिया जाए? दरअसल, वकील ने यह दलील दी कि समिति के सदस्यों के बारे में राय नए कृषि कानून के समर्थन में उनके (सदस्यों के) विचारों के बारे में मीडिया में खबरों के आधार पर बनी है।

पीठ ने कहा, हर किसी के अपने विचार हैं। यहां तक कि न्यायाधीशों के भी अपने-अपने विचार हैं। यह एक संस्कृति बन गई है। जिसे आप नहीं चाहते, उनका गलत चित्रण करना नियम बन गया है। हमने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम भी शामिल हैं।

वीडियो कॉन्‍फ्रेंस के माध्यम से हुई सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि समिति में सदस्यों की नियुक्ति नए कानूनों से प्रभावित हुए पक्षों की शिकायतों पर गौर करने के लिए की गई है तथा हम कोई विशेषज्ञ नहीं हैं। नाराज नजर आ रहे सीजेआई ने टिप्पणी की, इसमें (समिति के सदस्यों के) पक्षपाती होने का प्रश्न ही कहां हैं? हमने समिति को फैसला सुनाने का अधिकार नहीं दिया है।

आप पेश नहीं होना चाहते, इस बात को समझा जा सकता है, लेकिन किसी ने अपनी राय व्यक्त की थी केवल इसलिए उस पर आक्षेप लगाना उचित नहीं। आपको किसी का इस तरह से गलत चित्रण नहीं करना चाहिए। गौरतलब है कि यह विवाद उस वक्त पैदा हुआ, जब न्यायालय ने चार सदस्‍यीय एक समिति गठित की। हालांकि इसके कुछ सदस्यों ने पूर्व में विवादास्पद नए कृषि कानूनों का समर्थन किया था, जिसके बाद एक सदस्य (मान) ने इससे (समिति से) खुद को अलग कर लिया था।

एक किसान संगठन की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अयाज चौधरी ने समिति के सदस्यों के विचारों के बारे में खबरों का हवाला दिया। इस पर पीठ ने कहा, क्या आपको लगता है कि हम अखबारों के मुताबिक चलें। जन विचार कोई आधार नहीं है। आप इस तरह से किसी की छवि को धूमिल कैसे कर सकते हैं? जिस तरह के विचार प्रकट किए जा रहे हैं उन्हें लेकर मुझे बहुत दुख है।

सीजेआई ने कहा कि न्यायालय को समिति के सदस्यों के बारे में कही जा रही बातों पर गंभीर आपत्ति है। वे नाम लेते हैं और फिर कहते हैं कि न्यायालय को इसमें रुचि थी। कुछ किसान संगठनों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने एक रुख अख्तियार किया कि वे समिति की बैठकों में हिस्सा नहीं लेंगे, क्योंकि वे चाहते हैं कि कृषि कानून रद्द किए जाएं।

दरअसल, उनका यह दृढ़ता से मानना है कि ये कानून उनके हितों के खिलाफ हैं। पीठ ने भूषण को किसानों को सलाह देने को कहा और टिप्पणी की, मान लीजिए, हम कानून को कायम रख देते हैं, तब भी आप प्रदर्शन करेंगे। आप उन्हें उचित सलाह दीजिए। एकमात्र शर्त यह है कि दिल्ली में लोगों की शांति सुनिश्चित करें। पीठ ने इस बात पर और याचिका पर कड़ा संज्ञान लिया कि समिति के सभी सदस्यों को बदल दिया जाए।

पीठ ने किसान संगठन के एक वकील से कहा, आप कहते हैं कि सभी सदस्यों को हटा दिया जाए। ये चार लोग, जिन्होंने विचार प्रकट किए हैं, वे आलोचकों से कहीं अधिक अनुभवी हैं। वे विशेषज्ञ हैं...। उल्लेखनीय है कि हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब दो महीने से प्रदर्शन कर रहे हैं। वे नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।(भाषा)
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