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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 30 जनवरी 2021 (13:01 IST)

एक्सप्लेनर: चुनावी मोड में आए उत्तर प्रदेश में क्या भाजपा पर भारी पड़ेंगे राकेश टिकैत के आंसू ?

चुनाव में राकेश टिकैत के आंसू बनेंगे योगी सरकार के लिए चैलेंज ?

एक्सप्लेनर: चुनावी मोड में आए उत्तर प्रदेश में क्या भाजपा पर भारी पड़ेंगे राकेश टिकैत के आंसू ? - Explaner:The impact of the tears of Rakesh Tikait the politics of western Uttar Pradesh
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा के बाद जो किसान आंदोलन दम तोड़ता नजर आ रहा था वह आज फिर पूरी ताकत के साथ खड़ा नजर आ रहा है। गुरुवार को गाजीपुर बॉर्डर पर किसान नेता राकेश टिकैत के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस की सख्ती ने जिस तरह से किसान आंदोलन को संजीवनी दे दी उसके बाद अब सवाल यह उठ खड़ा हो गया है कि क्या अब किसान आंदोलन की जड़ें और अधिक व्यापक हो गई है? सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या किसान आंदोलन दिल्ली से शिफ्ट होकर उत्तर प्रदेश की राजनीति पर टारगेट हो गया है?
आने वाले दिनों में किसान आंदोलन का का उत्तर प्रदेश की सियासत पर क्या असर होगा यह सवाल भी अब पूछा जाने लगा है। उत्तर प्रदेश जहां अब विधानसभा चुनाव में ठीक एक साल का समय शेष बचा है और सियासी दलों ने एक तरह से अपने चुनाव प्रचार का शंखनाद कर दिया है तब वहां की सियासत पर किसान आंदोलन का क्या असर पड़ेगा अब यह बहस लखनऊ से सराहनपुर और मेरठ कमिश्नरी तक तेज हो गई है। राज्य में अगले साल शुरु में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बहुत जल्द पंचायत चुनाव भी होने जा रहे है। पंचायत चुनाव का मुख्य वोटर गांव का किसान है और पंचायत चुनाव के परिणाम बहुत कुछ विधानसभा चुनाव की पृष्ठिभूमि भी तैयार करते है।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसूओं का असर अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दिखाई देना शुरु हो गया है। राहुल और प्रियंका गांधी के साथ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के नेता अजित सिंह,भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद जिस तरह राकेश टिकैत के समर्थन में आ खड़े हो गए है उससे अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नए सियासी समीकरण बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत ने शुक्रवार को जो खाप पंचायत बुलाई थी उसमें उमड़े लोगों के हुजूम ने भाजपा के रणनीतिकारों की माथे पर शिकन जरुर ला दी होगी।
किसान आंदोलन के साथ उत्तरप्रदेश की सियासत को लंबे समय से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पहले यह लड़ाई कृषि कानूनों के खिलाफ थी वह अब किसानों के सम्मान पर आकर टिक गई है। राकेश टिकैत के आंदोलन को खत्म करने के लिए जिस तरह पुलिसिया डंडे का सहारा लिया गया उसने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक के किसानों को एक तरह से फिर भड़का दिया। वह कहते हैं कि राकेश टिकैत को जबरन गिरफ्तारी की कोशिश की कर एक तरह से यूपी सरकार ने किसान आंदोलन को दिल्ली की सीमा से उत्तर प्रदेश में बुला लिया है।
 
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के आंसूओं ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में किसानों और जाटों को फिर सियासत के केंद्र में ला दिया है। राष्ट्रीय लोकदल के नेता चौधरी अजित सिंह ने राकेश टिकैत को खुला समर्थन का एलान कर दिया है। वहीं अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन के मंच पर पहुंचना आने वाले समय में इस क्षेत्र नए सियासी सियासी समीकरण के बनने के संकेत दे दिए है।

आज किसान आंदोलन मोदी सरकार के साथ उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के लिए एक खतरे की घंटी बन गया है। उत्तर प्रदेश जो इस समय चुनावी मोड में आ चुका है उसका असर पूर्वी उत्तर प्रदेश में देखने को मिलेगा। इस घटना के बाद राकेश टिकैत देखते ही देखते किसानों के राष्ट्रीय नेता बन गए। जो राकेश टिकैत किसान आंदोलन में सबसे आखिरी में जुड़ने वाले राकेश टिकैत जो कभी बैकफुट पर दिखाई दे रहे थे वह अब किसान आंदोलन के सबसे बड़े हीरो बन गए है। राकेश टिकैत जो विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत पहले अजमा चुके है उनके लिए अब अपनी चुनावी जमीन तैयार करने के लिए गाजीपुर बॉर्डर से अच्छा मौका नहीं मिल सकता है।
 
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