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Written By WD

जलवायु परिवर्तन : इतिहास की सबसे भयानक मानव आपदा

जलवायु परिवर्तन : इतिहास की सबसे भयानक मानव आपदा - climate change
पृथ्वी हमारा घर है, इस ग्रह के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों की वृद्धि ही जलवायु परिवर्तन की वजह है। इस नीले ग्रह (पृथ्वी) पर जीवन के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी यही है। यदि कोई संदेह हो तो भारत में मानसून की आंख मिचौली और पूरी दुनिया में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं। डर है कि धरती के तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी से भी पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ जाएगा। 
शरणार्थी समस्या : आईपीसीसी का आकलन है कि 2100 तक समुद्र के जलस्तर में 23 इंच तक की बढ़ोत्तरी हो सकती है। माना जा रहा है कि समुद्र के जलस्तर में एक इंच की वृद्धि लगभग दस लाख लोगों के विस्थापन की वजह बन रहा है। मानव जाति के सामने आने वाली तबाही को देखते हुए राहत और पुनर्वास कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने की ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) का भी मानना है कि आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए शरणार्थी संबंधी मुद्दों को जल्द हल करने की ज़रूरत है।


सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र पर भी पड़ेगा। कृषि में कीटनाशकों, शाकनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता के कारण छोटे अथवा गरीब किसान और गरीब होंगे जबकि सम्पन्न किसान भी गरीब होंगे। कृषि धंधों में हानि के परिणामस्वरुप ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर बड़े पैमाने पर पलायन होगा जिससे शहरी क्षेत्रों में भीड़भाड़ वाली स्थिति होगी फलस्वरुप सामाजिक ताना-बाना नष्ट होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में संयुक्त परिवार बिखरकर एकल परिवार में परिवर्तित हो जाएंगे। एड्स जैसी बीमारी के प्रकोप के कारण भी समाज के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।

विविधता का विनाश: अण्डमान तथा निकोबार द्वीप समूह में भारत की आदिम जनजातियां जैसे ग्रेट अण्डमानीस, सेण्टेनलीज, ओन्जे तथा जारवा (निग्रोटो समूह) निकोबारीज तथा शाम्पेन (मंगोलायड समूह) निवास करती हैं। यह आदिम जनजातियां यहां के घने वनों में रहती हैं तथा अपने भोजन की पूर्ति हेतु शिकार तथा मछली पकड़ने पर निर्भर होती हैं। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के कारण द्वीप समूह के डूबने से इन आदिम जनजातियों का अस्तित्व सदैव के लिए समाप्त हो जाएगा।

अपराध और गन्दगी का साम्राज्य: जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी के कारण देश के तटीय क्षेत्रों से लगभग 10 करोड़ (100 मिलियन) लोग विस्थापित होंगे। इन विस्थापित लोगों का शहरी क्षेत्रों की तरफ पलायन होगा जिसके परिणामस्वरुप शहरी क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। शहरी क्षेत्रों में झुग्गी-झोपड़ियों के विस्तार के कारण मूलभूत सुविधाएं (बिजली, पानी आदि) प्रभावित होंगी। इसके अतिरिक्त गंदगी के साथ अपराधिक घटनाओं में भी वृद्धि होगी।

तपन के कारण वनों में आग लगने की घटनाओं में वृद्धि के परिणामस्वरूप वनों में रहने वाली जनजातियां  विस्थापित होगीं। चूंकि जनजातियों की पहचान उनके संस्कृति, रहन-सहन तथा खान-पान से होती है अतः मुख्य जीवनधारा में आने के बाद उनमें बदलाव आएगा जिससे उनकी पहचान स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।

जनसंख्या विस्फोट: भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में उष्णता में वृद्धि के फलस्वरुप मानव प्रजनन दर में बढ़ोत्तरी होगी जिसके कारण जनसंख्या की विकास दर में भी वृद्धि होगी। जनसंख्या की विकास दर में वृद्धि के कारण संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा जिससे संसाधनों का क्षय होगा। जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी तथा बेरोजगारी जैसी समस्याओं में अभूतपूर्व वृद्धि होगी।

कष्ट में कृषक : जलवायु परिवर्तन के फलस्वरुप कीटों तथा रोगाणुओं की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के कारण फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जिससे आर्थिक तंगी या ऋण बोझ के कारण किसान आत्महत्या को मजबूर होंगे। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भी देश के महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं तेलंगाना जैसे राज्यों में किसानों की आत्महत्या की दर में कई गुना वृद्धि हुई है। 


अर्थ पर अनर्थ : भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव आर्थिक जगत पर पड़ेगा। फसल पैदावार में गिरावट के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जिससे मुद्रास्फिति की दर बढ़ेगी। मुद्रास्फिति की दर बढ़ने के कारण गरीबी तथा भूखमरी के साथ-साथ बेरोजगारी भी बढ़ेगी। गरीबी के कारण बालश्रम तथा वेश्यावृत्ति सहित अन्य अपराधों में अभूतपूर्व वृद्धि होगी जो देश की कानून व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती होगी। गरीबी में वृद्धि के कारण माओवाद तथा नक्सलवाद जैसी समस्याओं में भारी वृद्धि होगी। 

मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण उद्योग जगत भी प्रभावित होगा। कृषि पर आधारित उद्योगों में उत्पादन की कमी के कारण उद्योग-धन्धे बंद हो जायेंगे परिणामस्वरुप बेरोजगारी की समस्या पैदा होगी। ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी आत्महत्या की घटनाओं में अभूतपूर्व इजाफा होगा। जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि पर का़फी नकारात्मक असर पड़ रहा है, जिससे पैदावार में कमी के कारण खाद्यान्न संकट की समस्या भी उत्पन्न हो रही है। 

खत्म होता खाना-पानी : दुनिया के 6.75 बिलियन लोगों को खाद्य सुरक्षा की गंभीर समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है। अनियमित वर्षा की वजह से हम पानी की कमी की समस्या से भी जूझ रहे हैं। बारिश का अधिकांश पानी यूं ही अधिक बहाव की वजह से बर्बाद हो जाता है और जंगलों की कमी की वजह से जमीन में पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे सूखे की समस्या झेलनी पड़ती है। 

 
समुद्र के जलस्तर में वृद्धि से न स़िर्फ कृषि प्रभावित होगी, बल्कि मीठे पानी में समुद्र का खारा पानी मिलने से पानी की विकट समस्या उत्पन्न हो जाएगी। इसलिए जल प्रबंधन नीति की बहुत ज्यादा जरूरत है। वाटरशेड विकास पर भी खास ध्यान देने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा प्रभाव ग़रीबों और समाज के सबसे निचले तबके पर पड़ेगा, क्योंकि इनके पास बहुत सीमित क्षमता, योग्यता और स्रोत हैं। इसलिए समाज के इन वर्गों के जीविकोपार्जन के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करने की जरूरत है। 
 
जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या में नगण्य योगदान के बावजूद सबसे ज्यादा प्रभावित होने वालों में यही लोग होंगे। बेहतर स्वच्छता और सा़फ-सफाई, आधारभूत शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और सुरक्षित पेयजल, जलवायु परिवर्तन की समस्याओं के साथ-साथ दूसरे अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्यों में शामिल हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है। 
 
दुनिया की सभी सरकारों को यह तय करना चाहिए कि इन परिस्थितियों से निपटने के लिए एक आपदा प्रबंधन योजना बनाई जाए। इसमें ही सभी समस्याओं का सार निहित है। लेकिन इनसे निपटने के लिए यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन में विकसित और विकासशील देशों के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद सभी देश किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाए हैं।