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Written By WD

मैसूर के गौरवशाली अतीत की दास्ताँ कहता

मैसूर का दशहरा

मैसूर के गौरवशाली अतीत की दास्ताँ कहता -
विजयादशमी के शुभ अवसर पर आपको वेबदुनिया परिवार की ओर से हार्दिक बधाइयाँ। दशहरे का त्योहार हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। पूरे देश में यह उत्सव काफी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इनमें सबसे खास होता है - मैसूर का दशहरा।

इस समय मैसूर का राज दरबार आम लोगों के लिए खोल दिया जाता है। भव्य जुलूस निकाला जाता है। यह दिन मैसूरवासियों के लिए बेहद खास होता है। विजयादशमी के अवसर पर यहाँ दस दिनों तक बेहद धूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं।
  विजयादशमी के अवसर पर यहाँ दस दिनों तक बेहद धूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं। दसवें और आखिरी दिन मनाए जाने वाले उत्सव को जम्बू सवारी के नाम से जाना जाता है। इस दिन सारी निगाहें बलराम नामक गजराज के सुनहरे हौदे पर टिकी होती हैं।      


दसवें और आखिरी दिन मनाए जाने वाले उत्सव को जम्बू सवारी के नाम से जाना जाता है। इस दिन सारी निगाहें बलराम नामक गजराज के सुनहरे हौदे पर टिकी होती हैं। इस हाथी के साथ ग्यारह अन्य गजराज भी रहते हैं, जिनकी विशेष साज-सज्जा की जाती है। इस उत्सव को अम्बराज भी कहा जाता है।

इस मौके पर भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें बलराम के सुनहरी हौदे पर सवार हो चामुंडेश्वरी देवी मैसूर नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं। वर्ष भर में यह एक ही मौका होता है, जब देवी की प्रतिमा यूँ नगर भ्रमण के लिए निकलती है।

ND
यह खूबसूरत सुनहरी हौदा मैसूर के वैभवशाली अतीत की सुंदर कहानी कहता है। यह हौदा कब और कैसे बना, इसे किसने बनवाया, इस बारे में सही जानकारी नहीं है। लेकिन 750 किलो वजन के इस हौदे में तकरीबन 80 किलो सोना लगा है। हौदे पर की गई नक्काशी मैसूर के कारीगरों की निपुणता की जीवंत दास्ताँ सुनाती है। इस हौदे के बाहरी स्वरूप में फूल-पत्तियों की सुंदर नक्काशी की गई है।

विश्वास नहीं होता कि कैसे पुरातन काल में सिर्फ छैनी-हथौड़े के दम पर इतने खूबसूरत हौदे को बनाया गया होगा। यह हौदा मैसूर के कारीगरों की कारीगरी का अद्भुत नमूना है, जिन्हें लकड़ी और धातु की सुंदर कलाकृतियाँ बनाने में निपुणता हासिल थी। पहले-पहल इस हौदे का उपयोग मैसूर के राजा अपनी शाही गज सवारी के लिए किया करते थे। अब इसे वर्ष में केवल एक बार विजयादशमी के जुलूस में माता की सवारी के लिए प्रयुक्त किया जाता है।