बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. धर्म-दर्शन
  4. »
  5. ध्यान व योग
Written By WD

भगवान शिव की ध्यान विधियाँ

भगवान शिव की ध्यान विधियाँ -
ND

हे भगवती,
जब इंद्रियाँ हृदय में विलीन हों, कमल के केन्द्र में पहुँचो। कैवल्य उपनिषद् इसी की शुरूआत करता है, उपनिषद् को इसी प्रार्थना से कि हे प्रभु! मेरी इंद्रियाँ ज्यादा सबल हों, ज्यादा मजबूत हों, मैं ज्यादा संवेदनशील, सेंन्सेटिव बनूँ। जितनी तुम्हारी संवेदनशीलता होगी, उतना ही होश होगा, उतना ही ध्यान होगा, उतने ही तुम ज्यादा जीवन्त होओगे और जीवन के केन्द्र, परमात्मा को पहचान सकोगे। यह भावप्रवण लोगों के लिए है।

सबसे पहले तो अपनी इंद्रियों को ज्यादा संवेदनशील बनाना, जब किसी चीज को छूते हो, तो उस स्पर्श की संवेदना को खूब सघन होने दो, मानो तुम्हारा पूरा हृदय ही तुमने उलीच दिया है। तब तुम्हारी हथेलियाँ बस यूँ ही न छुएँ ठण्डे हाथों से, मुर्दे की भांति, तुम्हारे पूरे प्राण हथेलियों पर आ जाएँ। किसी वृक्ष के किनारे बैठे हो या टिककर बैठे हो या वृक्ष को कभी गले लगाओ, लिपट जाओ उससे और पूरे शरीर से वृक्ष के स्पर्श को महसूस करो, उसके साथ एकात्म हो जाओ।

किसी फूल की जब सुगंध लो, इतनी गहराई से सुगंध लो कि तुम्हारे पूरे प्राण आन्दोलित हो जाएँ, तुम्हारा हृदय कमल खिलने लगे। बगैर विचार के भोजन का स्वाद लो। मैं देखता हूँ लोगों को, भोजन की टेबल पर बैठे खाना खा रहे हैं और राजनीति की चर्चाएँ चल रही हैं, नहीं, विचार की कोई जरूरत नहीं, जब भोजन कर रहे हो, स्वाद ही हो जाओ, पूरे के पूरे स्वाद में निमज्जित हो जाओ। इस प्रकार धीरे-धीरे तुम्हारी संवेदनशीलता बढ़ेगी।

ठण्ड की सुबह है, कुनकुनी धूप चेहरे पर पड़ रही है, अपने लॉन में बैठे हो आराम की कुर्सी पर, धूप की किरणों को महसूस यूँ करो, जैसे इन किरणों के माध्यम से सूरज ने अपने हाथ तुम तक फैला दिए हैं, जैसे की सूरज तुम्हें स्पर्श कर रहा है, तुम्हारे चेहरे पर पड़ती ये गुनगुनी धूप तुम्हारे हृदय को आन्दोलित करे। भाव से भरो। केवल इसी प्रकार के व्यक्ति के लिए शिव की यह विधि काम आएगी।

शिव जब कहते हैं कमल, तो याद रखना, उनका तात्पर्य कमल से हृदय ही है। पुराने जमाने में कमल की उपमा सहस्त्रा के लिए और हृदय के लिए विशेष रूप से दी जाती थी। हमारे देश में एक खूबी है, कोई एक उपमा अगर प्रसिद्ध हो जाती है, फिर सभी के लिए हम उसी का उपयोग करने लगते हैं। हाथों के लिए भी हम कहने लगते हैं कमल, चरणकमल कहने लगते हैं पैरों के लिए। इस विधि में जब शिव कह रहे हैं कि इंद्रियों को हृदय में विलीन होने दो और कमल के केन्द्र पर पहुँचो। ऐसे समझो, जैसे किसी फूल की पाँच पंखुड़ियाँ होती हैं, ऐसे ही हमारी पाँच इंद्रियाँ हैं। जिस बिंदु पर वे मिलती हैं अगर वह बिंदु हृदय है, तब बड़ी आसानी से किसी भी संवेदना के माध्यम से तुम अपने हृदय में प्रवेश कर जाओगे और हृदय से फिर नाभि केन्द्र पर पहुँचना बहुत आसान है।

ND
एक साधारण प्रेमपात्रा भी बड़ा दिव्य और भगवत्ता से ओतप्रोत दिखने लगता है, जब आओ इस ध्यान विधि को करें
- हृदय पर अपने दोनों हाथ रख लें। भक्तिभाव से भरें, महसूस करें कानों से आ रही संगीत की तरंगे, ध्वनियाँ सीधे हृदय में जा रही हैं। - बंद आँखों में पलको के माध्यम से आ रही रोशनी सीधे हृदय में उतर रही है।
- नीचे जमीन या गद्दे का स्पर्श, उससे हृदय आंदोलित हो रहा है।
- श्वास में आती-जाती हवा की सुगंध सीधे तुम्हारे हृदय को छू रही है। -
तुम्हारा हृदय पुलकित हो रहा है। इस भाव में बैठ कर चारों ओर की हवाओं में परमात्मा की दिव्य उपस्थिति को महसूस करो।
- धीमी गहरी श्वास लो, श्वास लेते हुए कोहनी को ऊपर उठाएँ, तीन सेकंड श्वास को भीतर रोकें, फिर आहिस्ता-आहिस्ता श्वास छोड़ते हुए कोहनियों को नीचे जाने दे।
- अंत में एक मिनट पूर्ण विश्राम, सारी इंद्रियाँ हृदय में विलीन हो गई। अति संवेदनशील होकर कमल के केन्द्र में पहुँच कर शिथिल हो जाएँ, लेट जाएँ, हृदय के केन्द्र में स्थित हो जाएँ।
- जीवन के इस केन्द्र में विश्राम ही समाधि है। विश्राम, होशपूर्ण, प्रेमपूर्ण, पूरी तरह आराम हो जाएँ।
- आनंदपूर्ण विश्राम में डूबें, हृदय ही आनंद को जानता है। परमानंद के भाव में विलीन हो जाएँ।

तुम हृदयपूर्वक उसे देखते हो, प्रेमपूर्वक उसे देखते हो। किन्तु बाद में बुद्धि हस्तक्षेप करने लगती, इन्टरफेयर करने लगती है, विचार बीच में आ जाते है, कल्पना, स्मृतियाँ और तुलनाएँ बीच में आ जाती और तब भाव नष्ट हो जाता। अपने भाव को बचाना है, विचारों को छोड़ो। ओशो इस विधि को समझाते हुए कहते हैं, आँख बंद करो और किसी चीज को स्पर्श करो। अपने प्रेमी या प्रेमिका को छुओ, अपनी माँ को या बच्चे को छुओ या मित्र को या वृक्ष को, फूल को या महज धरती को स्पर्श करो।

आँखे बंद करो और अपने और धरती के बीच, प्रेमिका और अपने बीच होते आंतरिक संवाद को महसूस करो। भाव करो कि तुम्हारा हाथ ही तुम्हारा हृदय है, जो धरती को स्पर्श करने आगे बढ़ा है। स्पर्श की अनुभूति को हृदय से जुड़ जाने दो। अगर संगीत सुन रहे हो, उसे दिमाग से मत सुनो, भूल जाओ मस्तिष्क को और समझो कि मैं बिना सिर के हूँ, मेरा कोई मस्तिष्क ही नहीं है। अच्छा हो कि अपने सोने के कमरे में अपना एक चित्र रख लो, जिसमें तुम्हारा सिर न हो।

फोटोग्राफर से ऐसा एक चित्र बनवा लो, उस पर ध्यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो। सिर को बीच में आने ही मत दो, संगीत को सीधा-सीधा हृदय से सुनो। भाव करो की संगीत तुम्हारे हृदय में जा रहा है। हृदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो, हमारी इंन्द्रियों को भी हृदय से जुड़ने दो, मस्तिष्क से नहीं। यह प्रयोग सभी इंद्रियों के साथ करो और अधिकाधिक भाव करो कि प्रत्येक ऐंद्रिक अनुभव हृदय में जाता है और उसमें विलीन हो जाता है।

हे भगवती! जब इंद्रियाँ हृदय में विलीन हों, कमल के केन्द्र पर पहुँचो। शिव कह रहे हैं, हृदय ही कमल है और इंद्रियाँ कमल की पंखुड़ियाँ हैं। पहली बात अपनी इंद्रियों को हृदय के साथ जुड़ने दो और दूसरी बात सदा भाव करो की इंद्रियाँ सीधे हृदय में गहरी उतरती हैं और उसमें घुल-मिल जाती हैं। जब ये दो काम हो जाएँगे, तभी तुम्हारी इंद्रियाँ तुम्हारी सहायता करेंगी, तब वे तुम्हें तुम्हारे हृदय तक पहुँचा देंगी और तुम्हारा हृदय कमल बन जाएगा। यह हृदय कमल तुम्हारा केन्द्र होगा और जब तुम अपने हृदय के केन्द्र को जान लोगे, तब नाभि केन्द्र को पाना बहुत आसान हो जाएगा।

वह बड़ा सरल है यह सूत्र उसकी चर्चा भी नहीं करता, उसकी आवश्यकता भी नहीं। अगर तुम सच में ही समग्रता से हृदय में विलय हो गए और बुद्धि ने काम करना छोड़ दिया, तो तुम नाभि केन्द्र में पहुँच जाओगे। हृदय से नाभि की ओर द्वार खुलता है, सिर से नाभि की ओर जाना बहुत कठिन है। तो आज हम जो विधि करेंगे, अपनी संवेदनशीलता को और जागरूकता को बढ़ाने की विधि है।

इसके पहले एक बात और समझ लें, पुराने जितने धर्म हैं, हिन्दू धर्म, यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और मुसलमान धर्म, वे सब भावप्रधान विधियों पर, प्रार्थनाओं पर जोर देते हैं। पुराने जमाने में जब इतनी शिक्षा नहीं थी, विज्ञान नहीं था, लोग ज्यादा भावप्रधान थे। आज के युग के लिए बुद्ध और महावीर की विधियाँ ज्यादा कारगर होंगी, क्योंकि लोग हृदय से नहीं, मस्तिष्क से जीने लगे हैं और विशेषकर आधुनिक शिक्षित मनुष्य, उसके लिए ओशो की विधियाँ ही कारगर होंगी। वे बुद्ध और महावीर की विधियों के भी नए संस्करण हैं, तो याद रखना शिव की यह विधि अति संवेदनशील लोगों के काम की है।