शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By जयदीप कर्णिक

भारतीयों के लिए लाभ के अवसर

सावधानी के साथ शुभकामनाएँ

भारतीयों के लिए लाभ के अवसर -
अमेरिका की 'टाइम' पत्रिका ने अपना बहुचर्चित 'पर्सन ऑफ द ईयर' का खिताब आम इंटरनेट यूजर्स को दिया है। इसके बाद ही 'वेब जगत' से जुड़े लोगों में एक तरह की बहस-सी छिड़ गई, जो अनंत है। बहस के एक सिरे पर इंटरनेट का खामोश खतरा है तो दूसरी तरफ 'टाइम' पत्रिका ने किसी एक को श्रेय न देकर आम इंटरनेट यूजर्स को सफलता का तमगा पहनाया है।

चलिए बड़े दिनों बाद पश्चिम से फिर एक अच्छी खबर आई है, जी हाँ वही पश्चिम जहाँ से अंतरिक्ष में उड़ने पर हमें पता लगता है कि ये तो हमारी 'कल्पना' थी! वही पश्चिम जहाँ के नोबेल से हमें अपने घर की दाल में मुर्गी का स्वाद आने लगता है। इसी पश्चिम ने एक और काम किया है, हमारे बहुत सारे भाई-बंधुओं को मशहूर कर दिया है। टाइम पत्रिका के 'पर्सन ऑफ द ईयर' में हमारे यहाँ के नारायण मूर्ति से लगाकर हिमाचल के सेब व्यापारी, गुजरात के किसान, रेल के टिकट बुक करवाते आम इंसान, चैट करते नौजवान और रेसिपी पढ़ती या कविता लिखती वे महिलाएँ भी शामिल हैं जो अनजाने ही इस सूचना क्रांति में सहभागी बन गए हैं।

थोड़ा आगे जाकर देखें तो इस पूरे मुद्दे का महत्व अखबार में, पत्रिका में और टीवी पर खबर की बजाय आईना (खुद की फोटू) देखकर खुश हो लेने वालों की खुशी से कहीं ज्यादा है। टाइम पत्रिका के इरादों और विवादों, अमेरिकी मंशा, वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद पर लंबी बहस की जा सकती है, लेकिन जिस तकनीक और उसका उपयोग करने वालों का इस्तकबाल इस खबर के माध्यम से किया गया है, उसके सजदे में हर हाथ उठेगा, आज नहीं तो कल। इंटरनेट का उपयोग और उसमें जुड़ने वाली विशेषताएँ जिस तेजी से आगे बढ़ रही हैं उसे रोक पाना किसी के वश में नहीं है। इसीलिए, अच्छा और बुरा साथ-साथ बह रहा है।

इसीलिए, इंटरनेट से जुड़ी भ्रांतियाँ और उसकी खामियों के शिकार भी आसानी से मिल जाएँगे। यहतय है कि जब भी इस रफ्तार में ठहराव आएगा धुँध छँटना आसान होगा। ये सही है कि इंटरनेट के उपयोग को परिपक्व होने में अभी समय लगेगा, लेकिन टाइम द्वारा इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को किया गया सलाम भारत के संदर्भ में ज्यादा महत्वपूर्ण है।

आँकड़ों के मुताबिक भारत में साढ़े तीन करोड़ (आईएमआरबी सर्वेक्षण) से भी ज्यादा इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और ये संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे भी बड़ी बात ये कि इनमें से 59 प्रतिशत उपयोगकर्ता मध्यम और छोटे शहरों से हैं। कुछ वर्षों पहले इनमें से अधिकांश उपयोगकर्ता भारत के 8 बड़े शहरों से आते थे। एक और सुखद संकेत जो इन आँकड़ों से मिलता है वो ये कि इन सभी के द्वारा इंटरनेट का उपयोग ई-कॉमर्स, ई-मेल, शोधग्रंथों, ब्लॉग्स और चैट के लिए किया जा रहा है।

दरअसल ताजपोशी के लिए कोई एक सिर न मिल पाना अमेरिका के बजाय भारत के लिए जीत का विषय होना चाहिए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का डंका पीटने वाले गाँधी के इस देश में अगर सफलता का सेहरा किसी एक के माथे न बंधकर सारे जनसमूह को ही बधाई का हकदार माना जाए तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है? किसी एक व्यक्ति को सफलता का श्रेय न मिल पाना इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की जीत भी है और ताकत भी। इस जीत में ई-चौपाल से मंडी के भाव देखने वाला किसान, शादी की पत्रिका मिलाते आमजन, अपनी साइट रचते साहित्यकार से लगाकर आईटी कंपनियों में बैठे सॉफ्टवेयर इंजीनियर तक सब शामिल हैं। आने वाले वर्षों में इंटरनेट की उपलब्धता और भी आसान और सस्ती हो जाएगी तब छोटे-बड़े शहरों की जरूरतें भी बदल जाएँगी।

इसी सर्वेक्षण के जरिए यह तथ्य भी सामने आया है कि इंटरनेट पर लंबा समय बिताने वाले उपयोगकर्ताओं में एक बड़ा प्रतिशत बुजुर्गों और महिलाओं का है। यदि बुजुर्ग अपना समय वृद्धाश्रम की बजाय इंटरनेट पर बिताते हैं तो इसमें हर्ज क्या है? इंटरनेट की एक ऑर महत्वपूर्ण उपलब्धि चिकित्सा के क्षेत्र में है। जिस तेजी से डॉक्टर इंटरनेट पर मेडिकल सूचनाओं का आदान-प्रदान कर रहे हैं या उसके जरिए ऑपरेशन तक में शामिल हो पा रहे हैं वह हमारे लिए वरदान ही माना जाएगा।