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Written By ND

बुद्धिमान होती हैं बकरियाँ

बुद्धिमान होती हैं बकरियाँ -
मेनका गाँध
पायल सोढ़ी चंडीगढ़ की एक कुशाग्र और व्यावहारिक लड़की है और किसी भी प्रकार की हिंसा को बर्दाश्त नहीं कर सकती है। तीन माह पहले उसने एक काले रंग के नवजात बकरे को पाया जिसकी माँ को उसकी आँखों के सामने ही काटा गया था।

वह उस बकरे को आश्रय में ले गई। उसके पास बकरियों का कोई बाड़ा नहीं था, इसलिए उसने उस बच्चे को खरगोशों के बीच में रख दिया तथा बोतल से उसका पोषण करने लगी।

  यह कितना विचित्र है कि हम अपने कुत्तों को इतना महत्व देते हैं किंतु बकरियों को खाने से पूर्व एक बार भी नहीं सोचते हैं जबकि उन्हें समूचे विश्व में पालतू पशुओं के रूप में रखा जाता है और जो कुत्ते की तरह ही बुद्धिमान, वफादार तथा भावुक होती हैं      
कालू यह सोचते हुए बड़ा हुआ कि वह एक खरगोश है। जब अंततः वह उनसे अलग हुआ तो बहुत रोया और अब भी वह मौका मिलते ही खरगोश के परिवार के साथ खेलने के लिए उनके बाड़े में पहुँच जाता है। तथापि वह पायल पर अपना काफी अधिकार समझता है और जब पायल अन्य व्यक्तियों से बात करती है तो वह थोड़ी देर के लिए रुकता और फिर थोड़ी देर बाद गुस्सा दिखाने लगता है।

उसे सजा देने के लिए पायल कहीं पर छुप जाती है तथा वह पूरे आश्रय में उसकी खोज करेगा और उसे ढूँढ लेने पर वह प्यार से उन्हें कुतरने तथा सिर से धक्का देने लगता है। अब पायल एक और बकरी को लाई, जो है तो मादा परंतु कालू को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। यदि पायल नई बकरी फिफ्टी को छूती है तो कालू उदासीन होकर उसके हाथों को हटा देता है।

यह कितना विचित्र है कि हम अपने कुत्तों को इतना महत्व देते हैं किंतु बकरियों को खाने से पूर्व एक बार भी नहीं सोचते हैं जबकि उन्हें समूचे विश्व में पालतू पशुओं के रूप में रखा जाता है और जो कुत्ते की तरह ही बुद्धिमान, वफादार तथा भावुक होती है।

बकरियों को अक्सर उनके बुद्धिमान तथा स्नेही जीव होने का श्रेय नहीं दिया जाता है। उन्हें कुत्तों की तरह ही मानें सिवाय इसके कि उनमें कुत्तों की 'मुझे मनुष्य को खुश करना है' वाली विशेषता नहीं होती है।

मानव के बच्चों को ऐसे ही 'किड्स' नहीं कहा जाता है। इसका अर्थ बकरी का बच्चा भी होता है। बकरी के बच्चों को लुका-छिपी खेलना अच्छा लगता है। वे छोटे से छिद्रों में घुसकर वहाँ शांत होकर लेटे रहते हैं और जब आप उन्हें ढूँढ लेंगे तो वे खुशी से उछलने लगते हैं। वे मानव के बच्चों की तरह ही चीजों को 'चबाकर' और 'मुँह में डालकर' उनके बारे में जानते हैं और अपने मुँह से 'संसार का पता लगाते' है। उन्हें ऊँचाई पर चढ़ना अच्छा लगता है।

परिवार के सदस्य अपने बच्चों को छलाँग मारकर उनके ऊपर चढ़ने देते हैं। यदि आप उन्हें अपने ऊपर चढ़ने दें तो वे आपको उनके परिवार का सदस्य मानते हैं। बकरी के बच्चों के मनपसंद क्रिया-कलापों में से कुछ में सरपट दौड़ना, हवा में उछलना, अपने सिरों को हिलाना और गोल-गोल घूमना शामिल है।

बकरियाँ खतरे का संकेत देने के लिए छींक मारती हैं। युवा बकरियाँ छींकने का खेल खेलती हैं। जब उन्हें खाने की कोई वस्तु काफी अच्छी लगती है तो भी वे छींकती हैं। बकरियों के झुंड में एक क्रम होता है। प्रत्येक बकरी का झुंड में एक स्थान होता है। जब आप झुंड में नई बकरियों को शामिल करते हैं तो उन्हें स्थापित झुंड के सदस्यों द्वारा पीटा जा सकता है, जब तक कि उस झुंड में नई बकरी का स्थान निर्धारित न हो जाए।

यह किसी कक्षा की तरह लगता है न! चाहे कुछ भी हो ऐसे अवसर भी आते हैं, जब बकरियाँ आपस में लड़ती हैं और एक-दूसरे पर झपटती हैं। बकरियाँ अपने से 'निचले दर्जे की' बकरियों को सिर्फ इसलिए ही टक्कर मारती रहती हैं कि उन्हें झुंड में अपने दर्जे का पतारहे।

यहाँ तक कि मादाओं में भी एक क्रम होता है। किसी बकरी द्वारा अन्य बकरियों पर अपना प्रभुत्व दर्शाने के कई तरीके हैं। पीटना/टक्कर मारना, जहाँ वह आराम कर रही हो वहाँ से उसे उठा देना, जीभ फड़फड़ाना, पैर मारना, रोना-बिलखना आदि।

हाल में किसी बच्चे को जन्म देने वाली बकरी (अथवा कभी-कभी तो जन्म देने से बस पहले ही) द्वारा झुंड में अपने दर्जे में 'वृद्धि' करना आम है ताकि वह अपने बच्चों के लिए एक ऊँचा दर्जा प्राप्त कर सके। इसमें आप अन्य बकरियों को शामिल होकर पक्ष लेते हुए भी देख सकते हैं।

यह 'सहायक' बकरीकी ओर से एक तरह का जुआ होता है, जो कि इस आशा में खेला जाता है कि वह जीतने वाली की मित्र बनेगी और इस प्रकार उसके दर्जे में भी सुधार होगा। एक बार विजेता का निर्णय होने के पश्चात झुंड के मध्य उनकी स्थिति स्पष्ट हो जाती है तथा फिर और लड़ाई नहींहोगी। मानव के साथ जुड़ी हुई अधिकांश बकरियाँ उन्हें भी झुंड का एक भाग मानती हैं।

बकरियों को पट्टे के साथ चलने के लिए भी प्रशिक्षित किया जा सकता है। उन्हें अपनी छाती तथा बगलों में खुजली किया जाना अच्छा लगता है। उन्हें अनजान व्यक्तियों द्वारा उनके सिर को छूना अच्छा नहीं लगता, क्योंकि इससे वे घबरा जाती हैं। परंतु एक बार यदि वे आपको जान लें तो वे भी कुत्तों की तरह आती हैं और अपने सिर पर खुजली करवाती हैं।

बकरियों को यदि कुछ अच्छा न लगे तो वे रोती हैं। उनका अपने कानों को साइड में करने का अर्थ है कि वे ठीक तथा खुश हैं और कानों को पीछे करने का अर्थ है कि वे परेशान हैं।

बकरियाँ अत्यधिक उत्सुक होती हैं। वे अपने बाड़े से भागने के लिए भी जानी जाती हैं। वस्तुतः वे चहारदीवारी में यह देखती हैं कि सबसे कमजोर स्थान कहाँ पर है और फिर वे वहाँ से रास्ता बनाने की कोशिश करती हैं।

वे गेट की कुंडियाँ खोलने और छोटे-से स्थानों से भी निकल जाने में माहिर होती हैं, क्योंकि उन्हें बंद रहना अच्छा नहीं लगता है। वे अपने को किसी भी रोक-टोक वाली स्थिति से छुड़ाने के लिए लगातार कार्य करती रहती हैं। उन्हें गड्ढे खोदकर उसमें लेटना तथा धूप सेंकना अच्छा लगता है।

बकरियाँ अपने भोजन की स्वच्छता के प्रति काफी सचेत होती हैं। अपनी प्राकृतिक उत्सुकता के कारण वे सूँघकर तथा कुतरकर नई वस्तुओं की खोज करती हैं। परंतु जैसे ही उन्हें कुछ गंदा अथवा बेस्वाद लगता है तो वे उसे छोड़ देती हैं। वे अपने भोजन को बारीकी सेचुनती हैं और इसमें इतनी कुशल होती हैं कि उन्हें पसंद न आने वाले अनाज को अलग कर देती हैं।

बकरियाँ बहुत कम घबराती हैं और खतरा दिखाई देने पर भागती हैं। कई बार वे मुड़कर उसका सामना भी करेंगी। माँ बकरियों को अपने बच्चों की रक्षा करने के लिए दल बनाते हुए देखा गया है और दो माह के एक छोटे बच्चे ने भी खतरा समझे जाने वाले एक कुत्ते को भगा दिया।

महाराष्ट्र में एक सेंचुरी चलाने वाले प्रकाश अम्बेडकर के पास 'टाइगर' नामक एक बकरी की कुछ तस्वीरें हैं। उसका नाम 'टाइगर' इसलिए पड़ा, क्योंकि उसने एक शेर को भगा दिया था।

बकरियाँ दोस्ताना, चंचल, मिलनसार तथा हास्य की काफी अच्छी समझ के साथ मुक्त पशु होती हैं। नर बकरा दृढ़ निश्चय, प्रयोजन पर ही ध्यान देने और नेतृत्व को दर्शाता है।

एक लोकोक्ति के अनुसार 'उनकी चाल में कुछ और ही बात होती है। वे शेर की तरह चलते हैं,जो कि किसी के भी आगे नहीं झुकता, जैसे एक अकड़कर चलने वाला मुर्गा या कोई राजा अपनी सेना के साथ चल रहा हो।'