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Written By रवींद्र व्यास
Last Updated : बुधवार, 1 अक्टूबर 2014 (19:50 IST)

और आदमी भी वहाँ से दूर नहीं होगा...

ब्लॉग चर्चा में इस बार कवि-कथाकार विष्णु नागर का ब्लॉग कवि

और आदमी भी वहाँ से दूर नहीं होगा... -
जहाँ हरा होगा

WD
जहाँ हरा होगा
वहाँ पीला भी होगा
गुलाबी भी होगा
वहाँ गंध भी होगी
उसे दूर-दूर ले जाती हवा भी होगी
और आदमी भी वहाँ से दूर नहीं होगा

ब्लॉग की दुनिया में इतने सारे इलाके हैं कि वहाँ जाकर आप कई तरह के अनुभव हासिल कर सकते हैं, कई तरह के सुख और कई तरह के दुःख भी। और इस दुनिया में कई इलाके ऐसे भी हैं जहाँ जाकर आपको सिर्फ ईर्ष्या, राग-द्वेष और जलन भी मिलेंगे। कहीं-कहीं तो ज़हर में बुझे इतने आरोप-प्रत्यारोप कि आपको क्लेश होगा कि क्या यही है लिखने-पढ़ने वालों की दुनिया। इतनी सारी टुच्चाइयाँ और इतनी सारी क्षुद्रताएँ। इसी में बार-बार डुबकी लगाते ब्लॉगर्स और अपने को धन्य समझते हुए कि गंगा नहाए।

लेकिन यदि आप बहुत ध्यान से और सचेत होकर ब्लॉग की फैलती दुनिया पर नजर डालेंगे तो पाएँगे कि परिदृश्य घोर निराशाजनक नहीं है, क्योंकि यहाँ अब भी सुरों की और संगीत की, शायरी और रंगतों की, जीवन की और स्वप्न की, आज के हाहाकार करते समय के सवालों और जवाबों की दुनिया भी है, कविता और कहानी की बातें भी हैं। इन कविता और कहानियों में उस आदमी की बातें होती हैं जो हर परिस्थिति में रहता हुआ जीवन का राग गा रहा है, पसीने के फूल खिला रहा है और अपने दुःख को सहलाते हुए सुख के गीत भी गा रहा है।

ऐसा ही एक ब्लॉग है ' कवि'। ब्लॉगर हैं समकालीन हिंदी कविता के कवि-कथाकार-व्यंग्यकार विष्णु नागर। इस ब्लॉग की पंच लाइन है- यह साहित्य का इलाका है। जाहिर है कि जैसी पंच लाइन है, वैसे ही इस ब्लॉग में विष्णु ने एक से एक बढ़िया कविताएँ, कहानियाँ एवं व्यंग्य पोस्ट किए हैं। जिन्हें पढ़कर आप साहित्य के इलाके में हो रही हलचलों का एक जा़यजा ले सकते हैं।

  सब सहायक एक-दूसरे से पूछ रहे थे कि साहब आज इतने ज्यादा खुश क्यों हैं। लेकिन कोई खुद बुश के पास जाकर पूछ नहीं रहा था। वजह यह नहीं थी कि लोग बुश से डरते थे।      
यह बात यहाँ दोहराई जाना चाहिए कि विष्णु नागर समकालीन हिंदी साहित्य परिदृश्य में एक ऐसी मौजूदगी है जिन्होंने कहानी और कविता, यहाँ तक कि व्यंग्य में भी पारंपरिक ढाँचें में मौलिक तोड़फोड़ कर अपने लिए एक नितांत नई और ताजगी भरी राह तलाशी है। उन्होंने अपने अचूक और संवेदनशील नजरिये से समकालीन समय और उसकी हलचलों को अपनी नितांत मौलिक शैली में अभिव्यक्त किया है।

जो लोग विष्णु नागर के साहित्य से परिचित हैं वे जानते हैं कि वे अपनी ईश्वर की कहानियों के लिए खा़सी ख्याति अर्जित कर चुके हैं। इन कहानियों में विद्रूपताएँ व विडंबनाएँ हैं और व्यंग्य की ऐसी वक्र मुद्राएँ हैं कि एकबारगी इन्हें पढ़कर आप विचलित हो सकते हैं क्योंकि इन कहानियों की ताकत वह व्यंग्य है जो इन्हें एक तरफ पठनीय भी बनाता है और मारक भी लेकिन यदि इनमें सिर्फ व्यंग्य ही होता तो हँस कर टाला जा सकता था। इन्हें जो चीज और ताकतवर बनाती है वह है विष्णु नागर की नैतिक संवेदनाएँ और गरीब तबके के प्रति आडंबरहीन प्रतिबद्धता। एक उदाहरण से इस बात को समझा जा सकता है। उनकी ईश्वर की कहानियों में से एक कहानी पेश हैः

ईश्वर से पूछा गया कि उन्हें कौनसा मौसम अच्छा लगता है -ठंड का, गर्मी का या बरसात का? ईश्वर ने कहा-'मूर्ख, मौसम का असर गरीबों पर पड़ता है, अमीरों और ईश्वर पर नहीं।' है ना तीखा व्यंग्य! लेकिन यह व्यंग्य गरीबों के प्रति कितनी गहरी सहानुभूति जगाता है और अमीरों तथा ईश्वर पर कितना सच्चा गुस्सा भी जगाता है। कहने की जरूरत नहीं कि यही लेखक कि ताकत है कि वह एक वाक्य को कितने ताकतवर और संवेदनशील ढंग से लिखता है कि वह हमारे समय की सच्ची खबर बन जाती है। विष्णुजी एक अंतराष्ट्रीय मुद्दे पर अमेरिकी राष्ट्रपति पर भी कमाल का व्यंग्य लिखते हैं, मिसाल के तौर पर एक व्यंग्य देखें-

बुश एक दिन खूब खुश था। सब सहायक एक-दूसरे से पूछ रहे थे कि साहब आज इतने ज्यादा खुश क्यों हैं। लेकिन कोई खुद बुश के पास जाकर पूछ नहीं रहा था। वजह यह नहीं थी कि लोग बुश से डरते थे। कारण यह था कि इसके जवाब में बुश यह कह सकता था कि मैं यह सोच-सोचकर खुश हूँ कि अच्छा हुआ कि मैं इराक में फंस गया वरना क्या पता मैं भी किसी लौंडिया से फँसकर बदनाम हो जाता।

अब देखिए इस व्यंग्य के जरिये वे कितने बारीक ढंग से अमेरिकी मानसिकता को उघाड़कर रख देते हैं। इसके अलावा चुहिया और बिलाव की प्रेमकथा, पकड़मपाटी, ईश्वर की लाचारी, चिंपाजी, कित्ते काऊं हैं जैसी लघुकथाएँ भी पठनीय हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस ब्लॉग पर सिर्फ व्यंग्य ही हैं। वस्तुतः वे तो कवि ही हैं और हमने इसीलिए इस ब्लॉग चर्चा की शुरुआत में ही उनकी एक छोटी-सी कविता दी है जो अपनी सादगी में पूरी मार्मिकता से यह बात बताती है कि उनकी कविता में सब-कुछ होगा लेकिन आदमी बहुत ज्यादा दूर नहीं होगा। क्योंकि अंततः उनकी कविता आदमी और उसकी दुनिया की ही बात करती है। हरा भी होगा, पीला भी होगा, गंध भी होगी और उसे दूर ले जाती हवा भी होगी और आखिर में वहाँ से आदमी भी दूर नहीं होगा।

यानी जो हरा, पीला, गुलाबी, गंध और हवा है वह आदमी के कारण ही अपने मायने हासिल करती है। एक आदमी प्रकृति के बीच रहते हुए अपनी मौजूदगी को थरथराते हुए महसूस करता है और अपने होने को सार्थक समझता है। नीचे दी जा रही उनकी कविता आकाश में रंग' में देखा जा सकता है -

आकाश में रंग
आकाश में इतने रंग थे उस दिन
कि उनका अर्थ समझना मुश्किल था
कि अपने को व्यर्थ समझना मुश्किल था।

कहने की जरूरत नहीं कि विष्णु नागर बिना अधिक भावुक हुए, बिना आँसू बहाते हुए और भरसक अपनी संवेदनाओं को व्यर्थ के शब्दों में स्खलित होने से बचाते हुए मर्म को अभिव्यक्त करते हैं। यह ऐसी सरल काव्य मुद्रा औऱ काव्य भाषा है जो मुश्किल से हासिल की गई है। उनकी यही विशेषता अन्य कविताओं में भी आसानी से देखी जा सकती है। दुःख, घर-बाहर, जीना, फालतू चीज जैसी कविताएँ पढ़िए तो आप इस कवि के काव्य गुणों से भी परिचित होंगे और उनके काव्य कौशल से भी। और अंत में इस कविता में थरथराती लेकिन संयत संवेदना, स्मृति और दुःख के अनुभव को आप भी महसूस करिए और जानिए कि यह कवि कैसा है :

माँ के शव के पास रातभर जागने की स्मृति

सबेर हुई जा रही है
माँ को उठाना है
प्राण होते तो माँ खुद उठती

माँ को उठाना है
नहलाना है
नए कपड़े पहनाने हैं
अंत तक ले जाना है
स्मृति को मिटाना है

उनके ब्लॉग का पता
http://alochak.blogspot.com