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Last Updated : गुरुवार, 25 जनवरी 2018 (17:21 IST)

अमीर दुनिया, गरीब दुनिया

अमीर दुनिया, गरीब दुनिया - World's eight richest people have same wealth as poorest 50%
नई दिल्ली। वर्ष 2010 से पूरी दुनिया के अमीरों की संपत्ति हर साल 13% की दर से बढ़ी है जबकि इतने ही समय के दौरान एक मजदूर की मजदूरी सिर्फ 2% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है। इस स्थिति का सीधा सा संदेश है कि फिलहाल पूरी दुनिया की मौजूदा अर्थव्यवस्था सिर्फ अमीरों का ही भला कर रही है। और इस समय स्विटजरलैंड के दावोस में दुनिया के बड़े-बड़े देशों के नेता अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए एकजुट हुए हैं और वह पूरी दुनिया की कंपनियों को अपने अपने देशों में निवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। 
 
लेकिन कोई यह सवाल नहीं कर रहा है कि आखिर ऐसी अर्थव्यवस्था किस काम की, जो गरीब को और अधिक गरीब बना रही है? और अमीर की दौलत को दिन दूनी रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ा रही है? इस मामले की खास बात यह है कि यह सिर्फ दुनिया के विकासशील देशों का हाल नहीं है, बल्कि विकसित देशों में भी आर्थिक असमानता के यही हालात हैं। दुनिया भर में आर्थिक सर्वे करने वाली संस्था ऑक्सफैम ने हाल में अपनी नई रिपोर्ट जारी की है। 
 
इस रिपोर्ट का सारांश यह है कि पूरी दुनिया की मौजूदा अर्थव्यवस्था सिर्फ अमीरों का ही भला कर रही है। पिछले साल पूरी दुनिया में जितनी दौलत कमाई गई, उसमें से 82% दुनिया के सिर्फ 1% अमीर लोगों की जेबों में चली गई। इन अमीरों की संपत्ति में एक साल में 48 लाख 60 हजार करोड़ रुपए की बढ़ोत्तरी हुई। जबकि पूरी दुनिया के 370 करोड़ गरीब लोगों की संपत्ति में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई। 
 
विदित हो कि वर्ष 2010 से पूरी दुनिया के अमीरों की संपत्ति हर साल 13% की दर से बढ़ी है जबकि इसी दौरान एक आम मजदूर की आय सिर्फ 2% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी। आप खुद ही सोच सकते हैं कि यह कितनी बड़ी असमानता है? पूरी दुनिया में पिछले साल हर दो दिन में एक नया अरबपति बना है। इस समय दुनिया में 2 हजार 43 अरबपति हैं और इनमें से 101 भारत में हैं। 
 
यह बात आपको चौंका सकती है कि दुनिया के सिर्फ 42 लोगों के पास समूची दुनिया के 370 करोड़ गरीब लोगों के बराबर दौलत है। इनमें से भी सिर्फ 61 लोगों के पास पूरी दुनिया की आधी जनसंख्या के बराबर दौलत है। इस आर्थिक असमानता को इन उदाहरणों से भी समझ सकते हैं। 
 
बांग्लादेश में कपड़ों की फैक्ट्री में काम करने वाला एक मजदूर अपने पूरे जीवन में जितना पैसा कमाता है, उतना पैसा दुनिया के किसी बड़े फैशन ब्रांड का एक सीईओ सिर्फ 4 दिन में कमा लेता है। इसी तरह अमेरिका में एक मजदूर जितना पैसा पूरे साल में कमाता है, उतना वहां का एक सीईओ सिर्फ 1 दिन में ही कमा लेता है।
 
पूरी दुनिया ही आर्थिक असमानता की गिरफ्‍त में है। इंडोनेशिया में सिर्फ 4 अमीर लोगों के पास ही वहां के 10 करोड़ गरीब लोगों के बराबर की दौलत है। अमेरिका के 3 सबसे अमीर लोगों के पास वहां की आधी जनसंख्या यानी करीब 16 करोड़ लोगों के बराबर की दौलत है। ब्राजील में एक अमीर आदमी एक महीने में जितना कमाता है, उतना कमाने में एक मजदूर को 19 साल लग जाते हैं। 
 
अगले 20 वर्षों में दुनिया के 500 सबसे अमीर लोग 153 लाख करोड़ रुपए की दौलत अपने उत्तराधिकारियों को सौंप देंगे। यह कहना गलत न होगा कि दुनिया में विकास तो हो रहा है, लेकिन उसकी कीमत पूरी दुनिया के मजदूरों को चुकानी पड़ रही है। लेकिन इसका सबसे बड़ा भाग अमीरों के बैंक खातों में जाता है। 
 
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में हर साल 27 लाख मजदूर, काम करते हुए, हादसों में या फिर बीमारी से मारे जाते हैं। यह कहना गलत ना होगा कि पूरी दुनिया में हर 11 सेकेंड में एक मजदूर की मौत हो रही है। इस मामले में दुनिया और भारत के हालात एक जैसे हैं। 
 
भारत में पिछले साल जितनी संपत्ति अर्जित की गई, उसका 73% हिस्सा सिर्फ 1% अमीरों ने कमाया जबकि 67 करोड़ भारतीय लोगों की संपत्ति में सिर्फ 1% का इजाफा हुआ है। ऑक्सफैम सर्वे से यह भी पता चलता है कि भारत में 2017 में 1% अमीर लोगों की संपत्ति में 20 लाख 90 हजार करोड़ रुपयों की बढ़ोत्तरी हुई। विदित हो कि यह भारत सरकार के कुल बजट के बराबर है। 
 
भारत में वस्त्र निर्माता कंपनी का शीर्ष कार्यकारी एक साल में जितना पैसा कमाता है, उतना कमाने में एक मजदूर को 941 साल लग जाएंगे। इस रिपोर्ट का शीर्षक है.. 'Reward Work, Not Wealth,(काम को सम्मान दो, दौलत को नहीं) लेकिन दुनिया में कहीं ऐसा नहीं हो रहा है और दौलत का साम्राज्य अपनी जड़े बहुत गहराई तक जमा चुका है। 
 
असमानता के इस संकट को दूर करने के लिए एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना होगा, जो अमीरों और शक्तिशाली लोगों के लिए नहीं बल्कि आम लोगों के लिए काम करे। लेकिन क्रोनी-कैपिटलिज्म के इस दौर में सरकारों से ऐसी उम्मीद करना बेमानी होगी। आखिर किसी भी तरह की व्यवस्था में सरकारों का भविष्य भी पैसों की ताकत पर टिका है और इस हालत में कोई अंतर नहीं आने वाला है।  
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