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Last Modified: गुरुवार, 21 जनवरी 2021 (00:57 IST)

हमारे नेता क्यों कतरा रहे हैं वैक्सीन लेने से?

हमारे नेता क्यों कतरा रहे हैं वैक्सीन लेने से? - Why are our leaders shying away from taking the vaccine
दुनिया के जिन-जिन देशों में कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के लिए टीकाकरण (वैक्सीनेशन) की शुरुआत हुई है, वहां का अनुभव है कि इसकी सफलता के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोगों का वैक्सीन को लेकर भरोसा बने। उन्हें यह यकीन हो कि वैक्सीन उनको वायरस से सुरक्षा देगी और उनके शरीर पर कोई बुरा असर नहीं होगा। यह भरोसा बनाने के लिए अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन और उनकी पत्नी ने सार्वजनिक रूप से वैक्सीन लगवाई। अमेरिकी संसद के निचले सदन की स्पीकर और उच्च सदन के सभापति यानी उप राष्ट्रपति ने भी वैक्सीन लगवाई। हालांकि इसके बावजूद अमेरिका में वैक्सीन लेने वालों का भरोसा नहीं बना और जब कई जगह वैक्सीन का स्टॉक फेंका जाने लगा तो उसके स्टॉक के नए नियम बने।

इसी तरह इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दिसंबर में अपने देश में टीकाकरण शुरू होते ही सबसे पहले टीका लगवाया। उनको वैक्सीन की दूसरी डोज भी लग गई है। इसके अलावा यूरोपीय संघ के देशों के नेताओं से लेकर अरब देशों के शेखों तक हर जगह बडे नेताओं ने सार्वजनिक रूप से टीका लगवाया है। रूस में कोरोना की वैक्सीन का पहला टीका राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बेटी को लगाया गया। मकसद इसका यही था कि लोगों का भरोसा बढ़े, ताकि वे टीकाकरण की प्रक्रिया में शामिल हों।

लेकिन भारत में स्थिति बिल्कुल अलग है। यहां सरकार की ओर से दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम शुरू करने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समारोहपूर्वक टीकाकरण अभियान का उद्घाटन किया, लेकिन खुद उन्होंने टीका नहीं लगवाया। यही नहीं, उन्होंने मुख्यमंत्रियों के साथ वर्चुअल मीटिंग में कहा कि नेताओं को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगवाने की पहल नहीं करनी चाहिए। एक तरह से उन्होंने नेताओं से कहा कि वे टीका न लगवाएं।

भारत सरकार ने ऐलान किया है कि देश में कोरोना का टीका पहले चरण में एक करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों और दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स को लगाया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद कहा कि फ्रंटलाइन वर्कर्स में सफाई कर्मचारी भी शामिल हैं यानी सफाई कर्मचारियों को भी पहले चरण में कोरोना का टीका लगाया जाएगा। इसके अलावा पुलिस, अर्धसैनिक बल और सैन्यबलों के लोगों को भी पहले चरण में ही टीका लगाया जाएगा।

अब सवाल है कि देश और समाज की सेवा में जुटे प्रधानमंत्री, उनकी सरकार के मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, उनके मंत्री, सांसद, विधायक आदि क्या फ्रंटलाइन वर्कर्स नहीं हैं? क्या इनका काम देश के पहले तीन करोड़ लोगों से कम महत्व का है? सोचने वाली बात है कि जो लोग ऑर्डर ऑफ प्रेसिडेंस यानी प्रोटोकॉल में सबसे ऊपर आते हैं और देश के पहले, दूसरे या तीसरे नागरिक कहे जाते हैं, वे फ्रंटलाइन वर्कर नहीं हैं। इसीलिए ये लोग फ्रंटलाइन वर्कर्स के साथ टीका नहीं लगवा रहे हैं।

प्रधानमंत्री भले ही कह रहे हों कि नेता लोग पहले टीका लगाने के लिए मारामारी न करें, लेकिन हकीकत यह है कि कोई नेता मारामारी कर ही नहीं रहा है। सब टीका लगवाने से खुद ही बच रहे हैं। कई मुख्यमंत्रियों और पूर्व मुख्यमंत्रियों ने टीका लगवाने से इंकार कर दिया है और बहाना बनाया है कि पहले जरुरतमंदों को लगे। सबसे पहले मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अलग-अलग कारणों से घोषणा की कि वे टीका नहीं लगवाएंगे। शिवराज सिंह ने जहां टीकाकरण में आम जरूरतमंद लोगों को प्राथमिकता देने की बात कही, वहीं अखिलेश यादव ने वैक्सीन की विश्वसनीयता पर संदेह जताया।

टीकाकरण से खुद को बचाते इन नेताओं के इस रवैए को देखकर पहली नजर में तो यही लगेगा कि ये लोग देश के लिए कितना सोचते हैं। लेकिन जरा सा ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि ये लोग वैक्सीन की गुणवत्ता को लेकर संशय में हैं और डर के मारे टीका लगवाने से बच रहे हैं अन्यथा कोई कारण नहीं है कि जहां तीन करोड़ लोगों को टीके लग रहे हैं, वहां पांच हजार और लोगों को न लग पाएं। जी हां, देश में सांसदों, विधायकों आदि की कुल संख्या पांच हजार के लगभग है। इसमें प्रधानमंत्री, उनके 55 मंत्री और साथ ही राज्यों के राज्यपाल, उप राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक आदि सब शामिल हैं।

हैरान करने वाली बात यह भी है कि कहां तो भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण होना है और कहां पांच हजार लोग भागे फिर रहे हैं कि पहले बाकी लोगों को लग जाए, फिर हम लगवाएंगे। जहां पहले चरण में तीन करोड़ लोगों को टीका लग रहा है, वहां क्या पांच हजार और लोगों को टीका नहीं लग सकता है? क्या इससे टीके घट जाएंगे? हर हफ्ते एक करोड़ टीके सीरम इंस्टीट्यूट में और लगभग इतने ही टीके भारत बायाटेक में बन रहे हैं, जहां से दुनिया के दूसरे देशों में टीका भेजने का समझौता हो रहा है। लेकिन नेताओं को लगाने के लिए पांच हजार टीके का इंतजाम नहीं हो पा रहा है!

ऐसा नहीं है कि वैक्सीन की विश्वसनीयता को लेकर नेताओं में ही संशय की स्थिति है, सरकार ने जिन तीन करोड़ लोगों को पहले चरण के टीकाकरण के लिए चिन्हित किया है उनमें भी कई लोग वैक्सीन के निरापद होने का भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। दिल्ली में ही एक बड़े सरकारी अस्पताल (राम मनोहर लोहिया अस्पताल) के डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ ने भारत बायोटेक की वैक्सीन कोवैक्सीन को लेकर आशंका जताते हुए उसे लेने से इंकार कर दिया है। अस्पताल के रेजीडेंट डॉक्टरों ने अस्पताल के अधीक्षक को पत्र लिखकर कहा है कि अभी कोवैक्सीन का परीक्षण पूरा नहीं हुआ है, इसलिए वे इसे नहीं लेना चाहते। कई शहरों से वैक्सीन लेने वालों के मरने और बीमार होने की खबरें भी आई हैं। अकेले दिल्ली में ही 50 से ज्यादा लोग टीका लगवाने के बाद बीमार हो गए हैं।

देश में टीकाकरण की इस स्थिति पर कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि तीसरे चरण के परीक्षण का डाटा आए बगैर ही सरकार ने कोवैक्सीन की मंजूरी देकर देश के लोगों को गिनी पिग बना दिया है। कांग्रेस को इस पर भी आपत्ति है कि सरकार लोगों को अपनी पसंद की वैक्सीन चुनने नहीं दे रही है। इस पूरी स्थिति पर सरकार की ओर से कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं आया है। बस प्रधानमंत्री मोदी यही कह रहे हैं कि भारत बायोटेक की वैक्सीन को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही स्वीकृति दी है, इसलिए लोग अफवाहों से दूर रहें। इसी तरह स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन भी कह रहे हैं कि वैक्सीन कोरोना के खिलाफ संजीवनी की तरह काम करेगी।

देश और दुनिया में अनेक असाध्य और जानलेवा बीमारियों से बचाव के लिए सैकड़ों किस्म की वैक्सीन बनी हैं और बचपन से ही लोगों को लगनी शुरू हो जाती है। लेकिन ज्ञात इतिहास में कभी किसी वैक्सीन को लेकर संशय का ऐसा माहौल नहीं बना, जैसा कोरोना की वैक्सीन को लेकर बना है। असल में वैक्सीन से किसी बात की गारंटी नहीं मिल रही है। वैक्सीन की डोज के साथ यह नसीहत दी जा रही है कि मास्क लगाए रखना है, दो गज की दूरी रखनी है, हाथ धोते रहना है या सैनिटाइज करते रहना है। जब तक वैक्सीन नहीं थी तब तक भी इसी उपाय से लोग बचते रहे थे और वैक्सीन के बाद भी ये ही उपाय करने हैं तो वैक्सीन का क्या मतलब है?

इन्हीं उपायों से देश की 99 फीसदी आबादी अब तक कोरोना के संक्रमण से बची हुई है। जो एक फीसदी के करीब लोग संक्रमण की चपेट में आए हैं, उनमें से भी 99 फीसदी के करीब ठीक हो गए हैं। इसीलिए सवाल उठ रहा है कि ऐसी वैक्सीन की क्या जरूरत है? उसके लिए इतना हल्ला मचाने की क्या जरूरत है कि वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट से निकल रही है, नारियल फोड़ा जा रहा है, वैक्सीन के बक्सों पर फूल चढ़ाए जा रहे हैं, वैक्सीन लेकर हवाई जहाज उड़ गया है, जहाज उतर गया है, जेड सुरक्षा में वैक्सीन की गाड़ी निकली आदि आदि?

वैक्सीन की पहली डोज लगाने के 28 दिन बाद दूसरी डोज लगानी है और उसके 14 दिन के बाद इससे सुरक्षा मिलेगी यानी पहले 42 दिन तो कोई सुरक्षा नहीं है। पूरी डोज लगाने के 14 दिन बाद तक कोरोना का संक्रमण हो सकता है। उसके बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि संक्रमण नहीं होगा, क्योंकि कोई भी वैक्सीन सौ फीसदी सुरक्षा नहीं दे रही है। इसलिए मास्क लगाने और दूरी बनाए रखने की नसीहत भी दी जा रही है। जिनको वैक्सीन लगाई जा रही है और संयोग से उन्हें 42 दिन के अंदर कोरोना नहीं होता है और उसके बाद भी बच जाते हैं तो वह संयोग होगा। यह संयोग कब तक रहेगा, कोई नहीं बता सकता।(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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