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Written By शरद सिंगी

चर्चा में क्यों है इमरान खान का बयान?

Imran Khan's statement। चर्चा में क्यों है इमरान खान का बयान? - Imran Khan's statement
प्रजातांत्रिक देशों में यह अघोषित सिद्धांत है कि किसी भी राष्ट्र के पदाधिकारी, किसी अन्य प्रजातांत्रिक राष्ट्र के चुनावों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं करते। माना जाता है कि मित्रता दो देशों के बीच होती है न कि राष्ट्राध्यक्षों के बीच।
 
कई बार लंबे समय से पदासीन दो राष्ट्राध्यक्षों के बीच मधुर और मित्रता के संबंध भी बन जाते हैं किंतु इसके बावजूद चुनावों में कोई भी अपने मित्र के लिए न तो किसी भी प्रकार की सहायता करता है और न ही उसके पक्ष में कोई बयान देता है।
 
उदाहरण के लिए इसराइल में हाल ही में चुनाव हुए। इसराइल में चुनावों के दौरान कार्यकारी प्रधानमंत्री नेतन्याहू थे। चूंकि नेतन्याहू काफी लंबे समय से इस पद पर हैं अत: कई राष्ट्राध्यक्षों से उनके व्यक्तिगत संबंध भी बन गए हैं। इसके बावजूद किसी भी राष्ट्राध्यक्ष मित्र ने उनके समर्थन में बयान देने की कोशिश नहीं की। यहां तक कि राष्ट्रपति ट्रंप ने भी, जो सामान्यत: कायदों की परवाह नहीं करते। किंतु हां, नेतन्याहू के जीतते ही राष्ट्रपति ट्रंप, भारत में उनके मित्र प्रधानमंत्री मोदी और अन्य कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने तुरंत बधाइयां दे डालीं।
 
इस अघोषित कायदे के बावजूद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ने भारत के चुनावों के संदर्भ में बयान दे डाला। उनके दक्षिणपंथियों की जीत से पाकिस्तान को लाभ वाले बयान के अर्थ भारतीय नेता अपने अपने दलों के हित के लिए निकालने लगे।
 
हमारे नेताओं को सोचना चाहिए कि अव्वल तो पाकिस्तान प्रजातंत्र है ही नहीं अत: उसे प्रजातांत्रिक मर्यादाओं के बारे में शायद इतनी जानकारी भी न हो। दूसरा यदि जानकारी होने के बाद भी बयान दिया गया है तो इसके निश्चित ही कूटनीतिक अर्थ होंगे और ऐसे बयानों से भारत के विदेश विभाग को निपटने देना चाहिए। किंतु हमारे राजनेता इतने परिपक्व कहां?
 
चुनाव के माहौल में कीचड़ उछालने से किसे परहेज है? भारत के हित की सोचना उम्मीदवारों का काम नहीं। यदि देश के सारे नेता मिलकर कहते कि 'इमरान तुम अपना काम करो और बस अपने देश को देखो' तो शायद जनता के बीच नेताओं का सम्मान बढ़ता।
 
यदि कोई दल इस बयान को अपने पक्ष या विपक्ष में भुनाने की कोशिश करेगा तो उसकी अज्ञानता ही कहेंगे, क्योंकि जरा सोचिए कि क्या इमरान अपने बयान से भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकते हैं? यदि उन्हें ऐसा लगता है तो ये उनकी दूसरी बड़ी नादानी है।
 
ऐसा इसलिए है कि भारत की जनता पाकिस्तानी नागरिकों से कहीं अधिक समझदार है, क्योंकि पाकिस्तानी अवाम को अभी तो प्रजातंत्र के मायने ही समझने हैं। पाठक स्वयं ही अंदाज लगा सकते हैं कि इमरान के बयान के बाद क्या कोई भी भारतीय नागरिक मत देने के अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेगा? शायद वे भारत में एक वोट को भी प्रभावित नहीं कर सकते। ऐसे में भारतीय नेताओं का इमरान के बयान को तरजीह देना हास्यास्पद ही है।
 
इमरान के बयान को थोड़ा समझते हैं। इसमें किसी को शक नहीं कि मोदी सरकार ने बड़ी कड़ाई से पाकिस्तान के आतंकियों का सफाया किया है। इस चुनाव के मौके पर पाकिस्तान को मालूम है कि कोई भी आतंकी घटना भारत की ओर से कड़े जवाब को बुलावा देगी और पाकिस्तान को लगता है कि यह जवाब सत्तारूढ़ दल की जीत को और आसान करेगा। इसलिए उसने सारे आतंकी संगठनों की नकेल कस रखी है।
 
और इन्हीं आतंकी आकाओं को रोकने के लिए ही तो कहीं इमरान ने अपने बयान से इशारा देने की कोशिश नहीं की है? जैसा कि हमने देखा कि इमरान हो या कोई दूसरी विदेशी शक्ति, भारत की जनता को प्रभावित नहीं किया जा सकता।
 
किंतु दूसरी जो एक घटना हुई, वह अधिक चौंकाने वाली थी। बांग्लादेशी फिल्मों के सुपरस्टार फिरदौस अहमद बंगाल में ममता बनर्जी के लिए प्रचार करते हुए पकड़े गए। जैसा हमने समझा कि बाहर की शक्तियां तो भारतीय नागरिकों को प्रभावित नहीं कर सकतीं तो फिर क्या ये सुपरस्टार बंगाल के घुसपैठिये को बांग्लादेशियों के लिए बुलवाया गया था?
 
ममता बनर्जी के इस कदम से उनके विरुद्ध आरोपों को बल मिलता है कि वे बांग्लादेशियों को प्रश्रय दे रही हैं। यदि ऐसा है तो यह देश के लिए खतरे की घंटी है। भारत के विदेश विभाग ने तो तुरंत उनका नाम ब्लैक लिस्ट में डाल दिया किंतु देश के नागरिकों को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए।
 
जाहिर है, भारत की जनता पर एक और जिम्मेदारी है अपने प्रजातंत्र को पवित्र बनाए रखने की कि उसे अपने चुनावों को बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप से परे रखना है।
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