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Homo sapiens: मनुष्‍य की भूलों और उसके अस्‍त‍ित्‍व की लड़ाई की कहानी है ‘सेपियन्‍स’

Homo sapiens: मनुष्‍य की भूलों और उसके अस्‍त‍ित्‍व की लड़ाई की कहानी है ‘सेपियन्‍स’ - Homo sapiens
सेपियन्‍स पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मैं वो मनुष्य हूं ही नहीं जैसा मुझे भेजा गया था या जिस तरह से मैं पैदा हुआ था, मुझे इतिहास की भूलों, ग़लतियों और मानव विकास के योजनाबद्ध तरीकों ने कोई दूसरा ही आदमी बना दिया है। मानव सभ्‍यता के विकास ने मुझे एक अजनबी आदमी बना दिया। खुद से अंजान मनुष्‍य।

मानव सभ्यता के विकास के कई साल बाद भी मैं खोए हुए खुद को खोज रहा हूं।

सेपियन्‍स दरअसल, मानव विकास के कारण उपजी कई तरह‍ की अवधारणाओं की गलति‍यों और भूलों को उजागर करती है। इस हद तक कि पढ़ते-पढ़ते कई बार मनुष्‍य जाति‍ से घृणा सी हो जाती है, क्‍योंकि मनुष्‍य जाति का विकास प्रकृति के कई हिस्‍सों को कुचल कर हुआ था। मानव ने न सिर्फ दूसरों को कुचल कर अपनी राह बनाई, बल्‍कि अपने जीवन को सुविधाजनक बनाने की अंधी दौड़ ने उस जीवन को और ज्‍यादा जटिल और कठिन बना दिया।

इजरायली लेखक युवाल नोआ हरारी की सेपियन्‍स: मानव जाति का संक्षिप्‍त इति‍हास पढ़ते हुए मानव जाति से घृणा होने लगती है। यह घृणा लगातार बढ़ती जाती है। सुविधाजनक और सहूलि‍यत भरे जीवन की चाह ने मानव जीवन को और ज्‍यादा जटिल और कठिन बना दिया। जिसका खामियाजा आज का मानव भुगत रहा है और आने वाली मनुष्‍य सभ्‍यता आगे भी शायद बहुत भयावह तरीके से भोगने वाली है।

युवाल नोआ हरारी अपनी इस किताब में कई तरह की भूलों की बात करते हैं। मानव सभ्‍यता का पूरा इतिहास भूलों से भरा हुआ है। कृषि क्रांति भी उन तमाम भूलों में से एक बड़ी भूल थी। इसी क्रांति ने भोजन खोजी मनुष्यों के जीवन को और ज़्यादा तकलीफ़ भरा बना दिया।

इस क्रांति से पहले मानव को सिर्फ भोजन खोजना था और खाकर सो जाना था, लेकिन खेती किसानी के आविष्कार ने उन्हें मजदूर बना दिया। अब उन्हें जमीन भी खोदना है, बीज भी बोना है, उसे काटना और सहेजना भी है, उसकी सुरक्षा करना है, पकाना है और फिर अंत में खाना है।

उगाए गए गेहूं या अनाज का भंडारण करने की व्यवस्था भी करना है और अब मनुष्य को यह सब करने के लिए एक ही जगह पर ठहरना भी है, इस कृषि क्रांति ने मनुष्य की वो घुमक्कड़ी ख़त्म कर दी और इसके वि‍परीत उसे आशंका से भरा एक मनुष्‍य बना दिया।

किसान आने वाले कई सालों तक की योजना और फसल के बारे में सोचने लगा। वो भविष्‍य के प्रति‍ आशंकित हो गया, इससे कई तरह की अवधारणाएं और छल-कपट पैदा हुए।

जो जंगली और सामाजिक जानवर मनुष्‍यों के सहचर हुआ करते थे, उन जानवरों को अपने अधीन करने के लिए उन पर तरह-तरह के बर्बर अत्याचार किए गए। कई को नष्‍ट कर दिया तो कई को गुलाम बना दिया। इसी क्रांति ने गोवंश की जिंदगी को तो नर्क ही बना दिया।

कृषि‍ क्रांति ने मनुष्य का प्रकृति से रिश्ता तोड़ दिया, वो लालच, धन और अनाज संचय करने की दिशा में बढ़ गया। इससे पहले जंगल और यह पृथ्वी करीब 80 लाख खाना बदोश भोजनखोजियों का घर हुआ करती थी। लेकिन वही भोजनखोजी जंगलों और प्रकृति‍ के दुश्‍मन हो गए।

युवाल नोआ हरारी कहते हैं कि इतिहास की इन्हीं भूलों ने भविष्य की अवधारणा को जन्म दिया, इसके पहले भोजन खोजी कभी भविष्य के बारे में नहीं सोचते थे। लेकिन अब जो मनुष्‍य प्रकृति‍ के भरोसे एक आजाद और सुरक्षि‍त जिंदगी जीता था, वो न सिर्फ भवि‍ष्‍य प्रति‍ आशंकि‍त था बल्‍क‍ि उसने अपना वर्तमान भी तबाह कर लिया था।

किताब में मानव प्रजाति‍यों के बारे में भी विस्‍तार से बताया गया है। युवाल नोआ हरारी कहते हैं कि करीब 100,000 साल पहले धरती पर मानव की कम से कम छह प्रजातियां बसती थीं, लेकिन आज स़िर्फ हम यानि‍ (होमो सेपियन्स) ही रह गए हैं। अस्‍ति‍त्‍व की इस जंग में आख़िर हमारी प्रजाति ने कैसे जीत हासिल की? कैसे हम ईश्वर में विश्‍वास करने लगे, उसे पूजने लगे? ऐसे कई सवालों के साथ ही यह भी कहा गया है कि आने वाले हज़ार वर्षों में हमारी दुनिया कैसी होगी?

युवाल नोआ हरारी की सेपियन्‍स का हिंदी में लेखक और अनुवादक मदन सोनी ने अनुवाद किया है। यह एक इंटरनेशनल बेस्‍ट सेलर किताब है। हरारी ने कई तर‍ह की मानव प्रजातियों के इति‍हास, उनकी जीवन शैली और विकास के बारे में बेहद विस्‍तार से रि‍सर्च की है। इसके बाद आई उनकी दो अन्‍य किताबें 21वीं सदी के लिए 21 सबक और होमो डेयस भी काफी लोकप्र‍िय हो चुकी हैं। यह किताबें भविष्‍य के बारे में बात करती हैं। मानव सभ्‍यता के सामने क्‍या उपलब्‍धि‍यां होंगी, उनसे क्‍या संकट पैदा होंगे इसे लेकर जानना बेहद दिलचस्‍प होगा।

(इस आलेख में व्‍यक्‍त‍ विचार लेखक की नि‍जी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)
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