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Last Updated : बुधवार, 3 सितम्बर 2014 (12:18 IST)

स्वस्थ भारत की राह नहीं आसान

-अभिषेक मिश्रा

स्वस्थ भारत की राह नहीं आसान - healthy India
हरित क्रांति, श्वेत क्रांति और संचार क्रांति। इन तीनों क्रांतियों ने देश की तस्वीर को बदलकर रख दिया जिसने न सिर्फ देश को आर्थिक मजबूती प्रदान की बल्कि विश्वस्तर पर देश को स्वावलम्बी भी बनाया। आज भारत ने अपने विकास पथ पर कई बुनियादी सेवाओं को खड़ा किया है, लेकिन स्वास्थ्य का क्षेत्र अभी भी क्रांति की उम्मीद कर रहा है। भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति आज़ादी के 67 साल बाद भी अपने उच्च स्तर तक नहीं पहुंच सकी है। 21वीं सदी में देश तेजी से विकास पथ पर बढ़ रहा है पर बुनियादी स्वास्थ सेवाओ में वह अभी भी पीछे है, जिसे एक नई क्रांति की दरकार है। अभी भी जीडीपी का महज 1.04 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होता है, जबकि श्रीलंका, थाईलैंड, चीन और ब्राजील जैसे देशों में स्वास्थ्य सेवाओं पर तीन फीसदी के करीब खर्च किया जाता है जो भारत की तुलना में काफी ज्यादा है। 
 
देश में सत्ता परिवर्तन के बाद मोदी सरकार ने अपने 100 दिनों के काम से एक नई उम्मीद लोगों के दिलों में जगाने की कोशिश की है, लेकिन स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की चिंताजनक स्थिति अभी भी विकास की राह में एक बड़ा रोड़ा है। मोदी बुलेट ट्रैन जैसी बड़ी अत्याधुनिक और विश्वस्तरीय सेवा को लाना चाहते हैं, लेकिन गांवों से शहर तक मरीज को लाने की सुविधा नहीं है। स्वास्थ सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में नई सरकार ने काम शुरू कर दिया है पर उसे अमलीजामा पहनाने से सरकार को पहले उसके मौजूदा हालत को समझना और संभावनाओं को बढ़ाना होगा। खुद प्रधानमंत्री भी मानते हैं कि नई योजनाएं लाने से ज्यादा जरूरत चल रही योजनाओं का लाभ पहुंचाने की है। ऐसे में फिलहाल स्वास्थ्य के क्षेत्र को बुनियादी तौर पर मजबूत किया जाना सबसे अहम लक्ष्य है।      
 
बुनियादी ढांचे में कमजोर भारत : संविधान में स्वास्थ को राज्य और केंद्र दोनों का विषय बनाने के बावजूद भी अभी भी इसे बुनियादी तौर पर मजबूत नहीं बनाया जा सका है। अभी भी कई ऐसे इलाके हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाएं बहाल नहीं हो सकी है। इतना ही नहीं शहर से 50 किलोमीटर जाने पर भी कई गांवों में मरीज को शहर के अस्पताल लाने का भी इंतजाम नहीं होता, जिससे ज्यादातर मरीज  उपचार मिलने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। इससे साफ पता चलता है कि देश की जनसंख्या के मुकाबले स्वास्थ सेवाएं अभी भी पूरी तरह से नहीं फैल पाई है। सरकार के सामने मौजूदा तंत्र को बहुत सशक्त बनाने की जरूरत है।
 
ऐसे ही महिला प्रसव के मामले में भी देश की स्थिति अच्छी नहीं है। महिला प्रसव सेवा पर ‘सेव द चिल्ड्रन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत को दुनिया के 80 विकासशील देशों में 76वां स्थान मिला है। इस मामले में भारत में हर 140 महिलाओं में से एक पर बच्चे को जन्म देने के दौरान मरने का जोखिम रहता है। यह आंकड़ा चीन और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में कहीं अधिक है। जहां चीन में हर 1500, श्रीलंका में 1100 और म्यांमार में 180 महिलाओं में एक महिला पर प्रसव के दौरान मौत का खतरा होता है। इसके साथ ही भारत में अन्य देशों की अपेक्षा महिलाओं और बच्चों की मृत्यु दर काफी अधिक है, जो गरीब अफ्रीकी देशों से भी पीछे है। इन आंकडों से साफ है कि भूमंडलीकरण के इस दौर में भारत की स्वास्थ्य सेवा किस हाल में है।
 
 
अगल पेज़ पर जाने मेडिकल टूरिज्म की हकीकत...

मेडिकल टूरिज्म और जमीनी हकीकत : विकाशील देशो में भारत के मेडिकल टूरिज्म क्षेत्र में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। स्वास्थ्य पर्यटन के लिहाज से भारत में इलाज की बेहद कम लागत, आधुनिकतम चिकित्सा तकनीकों और उपकरणों की उपलब्धता के साथ-साथ विदेशियों को भाषा की समस्या नहीं होने की वजह से एशियाई देशों में शीर्ष पर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2012 में डेढ़ लाख पर्यटक स्वास्थ्य लाभ के लिए भारत आए थे, जिसमें 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है। 
 
साल 2015 तक यह तादाद बढ़कर 32 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है, लेकिन इस बढ़ोतरी के साथ ही गरीब तबके को अपने ही देश में बेहतर स्वास्थ सेवाएं नसीब नहीं है। अमेरिका के वायोमिंग से भारत में इलाज कराने आई सुसैन डिवे ने कहा कि भारतीय डॉक्टरों पर विश्वास और कम कीमत पर अच्छी सेवाओं ने उन्होंने हार्ट सर्जरी के लिए यहां आना पसंद किया। 
 
लेकिन, दूसरी तरफ इन प्रतिष्ठित अस्पतालों में गरीब मरीजों की अनदेखी की जाती है, जहां उन्हें कोई बिस्तर खाली न होने का हवाला देकर दुत्कार दिया जाता है। दुर्भाग्यवश, यह एक गंभीर समस्या है और सरकार को इसे सबके लिए समान बनाने की जरूरत है। इस दिशा में एक कानून बनाकर देश के बडे अस्पतालों को बाध्य करना चाहिए कि वह कम से कम 10 प्रतिशत गरीब मरीजों को निशुल्क इलाज इन अस्पतालों में करें।
 
दूसरी तरफ सरकार का ध्यान हर बजट में राज्यों में एम्स बनवाना का तो है, लेकिन एम्स जैसे प्रतिष्ठित संस्थान भी भ्रष्टाचार और धांधलियों से अछूते नहीं रहे हैं। साफ़ है कि देश की स्वास्थ्य सेवाओं में मेडिकल टूरिज्म और गरीब तबके के बीच के इस फासले ने बड़ा अंतर पैदा किया है। मेडिकल टूरिज्म का भविष्य भारत में उज्वल है, लेकिन जरूरत है कि पैसा कमाने की होड़ में लगे ये अस्पताल गरीब मरीजों के प्रति बेरुखी अपनाना बंद कर दें।
 
 
क्यों है भारत की ऐसी स्थिति? : देश में लगातार होते रहे स्वास्थ्य मिशन के बावजूद हम अभी तक बेहतर स्थिति में नहीं पहुंच पाए हैं। भारत में सामाजिक, राजनैतिक, भौगोलिक और कारणों से चलते स्वास्थ्य सेवा हमेशा से एक उपेक्षित क्षेत्र रहा है। वहीं प्रशासन और राजनैतिक कारकों में समन्वय न होने से देश के ज्यादातर भागों में स्वास्थ्य के लिए जरूरी बुनियादी सेवाओ जैसे सुरक्षित पानी, अच्छा पोषण और मल-मूत्र के सुरक्षित निपटारे जैसी मूलभूत सेवाओं का बड़ा अभाव है। इस कारण से भारत में संक्रामक और कुपोषण आदि बीमारियों का ज्यादा प्रचलन है। इन हालातों में देश की स्वास्थ्य सेवाएं रोगों से बचाव की जगह रोगों को ठीक करने में ही ज्यादा केन्द्रित हैं, जिसके कारण इसमें बढ़ोतरी दर्ज नहीं की जा सकी है। 
 
वहीं दूसरी तरफ शहरों में सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य की इस खस्ता हालत की वजह से इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र को फलने-फूलने के पर्याप्त अवसर मिला है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में इसके विकास ने स्वास्थ सेवाओं को बेहतर बनाने में मदद की है, लेकिन बड़े स्तर पर गरीब तबके का नुकसान किया है। नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि आधारभूत सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता के बिना निजी स्वास्थ्य क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता गलत है, जिससे गरीब और कम-जानकार रोगियों का उत्पीड़न हो रहा है। ऐस में भारत के असमान्य स्थिति को देखते हुए सरकारी स्वास्थ सेवाओं को बेहतर और आसान बनाने की जरूरत है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की निराशाजनक स्थिति को मजबूत बनाकर निजी क्षेत्र के वर्चस्व को कम किया जा सके। 
 
 
जाने क्या है सरकार का बीमा मिशन...अगले पेज पर...

 
कैसे करेंगे हर्षवर्धन बीमा मिशन पूरा? : स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफे के अलावा हर आदमी का बीमा मौजूदा सरकार का एक अभिन्न लक्ष्य है, लेकिन इसे पाना सरकार के लिए इतना आसान नहीं है। स्वस्थ भारत का निर्माण एक बड़ी चुनौती है, जिसे पाने के लिए मौजूदा सरकार नई स्वास्थ नीति लाने पर जोर दे रही है। स्वास्थ मंत्री डॉ. हर्षवर्धन राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा मिशन के जरिए आम आदमी को एक पैकेज की तरह सुविधाएं देने की दिशा में काम कर रहे हैं, जिसमें विश्वस्तरीय संपूर्ण चिकित्सा सुविधा और जांच की व्यवस्था होगी। लेकिन देश के मौजूदा हालत को देखे तो देश में सिर्फ 10 फीसदी भारतीयों के पास हेल्थ इंश्योरेंस है और यह बीमा भी उनकी सेहत की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। 
 
इसके साथ ही डॉक्टरों की कमी भी सरकार के लिए एक बडा संकट है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी मानते हैं कि पर्याप्त प्रोत्साहन के बावजूद गांवों में डॉक्टर जाना नहीं चाहते। इसे देखते हुए यूपीए सरकार ने ही एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करने से पहले मेडिकल विद्यार्थियों के लिए छह महीने अनिवार्य रूप से गांवों में काम करने की बाध्यता रखी थी। जिससे उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से जुड़कर गांवों की स्वास्थ्य सेवाओं में योगदान दे सकें। लेकिन इस पहल से भी समस्या का समाधान नहीं हो सका है। आलम ये है कि 20 से 30 हजार लोगों के पीछे केवल एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है। किसी राज्य में तो एक लाख लोगों के पीछे एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है, जिसमें ग्रामीण अस्पताल तो चलने की हालत में ही नहीं हैं। ऐसे में गांवों में यह समस्या और भी विकट हो चुकी है। 
 
 
योजनाओं को निचले स्तर तक पहुंचाना बड़ी चुनौती : मोदी सरकार ने अगले 5 साल में देश में स्वास्थ सेवाओं को उच्चस्तरीय बनाने का लक्ष्य बनाया है, लेकिन इसमें उसके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। विश्व जनसंख्या में 16.5 प्रतिशत भागीदारी निभाने वाला भारत विश्व की बीमारियों में 20 प्रतिशत का योगदान करता है। लगातार बढ़ती जनसंख्या और असामान्य भौगोलिक स्थितियां इसकी रफ्तार को धीमा कर रही हैं। सरकार की योजनाएं तभी कारगर हैं, जब वह निचले स्तर तक पहुंच सके जिससे पार पाना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। वहीं भारत अब भी बाल मृत्युदर कम कर पाने की योजना में श्रीलंका जैसे विकासशील देश से पीछे है। इससे साफ है कि देश में जनसंख्या, रोगों की स्थिति और महंगाई के कारकों को देखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र बड़े तौर पर काम करने की जरूरत है।
 
मौजूदा हालात में जरूरत है कि सरकार स्वास्थ्य नीति पर गंभीरता से सोचे और रोगों से बचाव पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। देश की सम्पन्न देशी चिकित्सा पद्धतियों को उपचार की मुख्य धारा में शामिल किया जाना चाहिए। इन पद्धतियों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा मजबूत बनाने की दिशा में उपयोग किया जा सकता है, जिससे बड़े स्तर पर मदद मिलेगी। स्वास्थ सेवाओं में प्रगति का लाभ इससे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े दूसरे क्षेत्रों को भी मिलेगा। इस दूरगामी प्रयास से ही देश में स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवा को आम जन तक सुगम और प्रभावी बनाना संभव हो सकेगा जो किसी भी राष्ट्र के बुनियादी विकास के लिए बेहद जरूरी है।