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Written By अनिरुद्ध जोशी

आधुनिक दौर में अब लड़ा जाएगा क्रूसेड!

आधुनिक दौर में अब लड़ा जाएगा क्रूसेड! - Christian and Muslim war crusade
आज से 2600 वर्ष पहले जब न बौद्ध धर्म, न ईसाई धर्म और न इस्लाम धर्म था, तब लोग यह नहीं जानते थे कि संप्रदाय के लिए भी युद्ध लड़ना चाहिए। कबीले आपस में लड़ते थे लेकिन यह लड़ाई किसी ईसाई-मुसलमान की तरह नहीं थी। संपूर्ण एशिया और योरप में यहूदी, जैन, हिन्दू और अन्य बहुत सारे प्राचीन धर्म के लोग कई सीमावर्ती क्षेत्रों में साथ-साथ रहते थे। लड़ाई थी तो बस राजा और महाराजाओं के बीच। लुटेरों, डाकुओं और राज्य की सेनाओं के बीच।
कुछ राज्यों का शासन क्रूरताभरा था तो कुछ में लोकतंत्र कायम था। उस काल में स्पेन के लोर्का और केदिज, साइप्रस का लोर्नाका, अफगानिस्तान का बल्ख, गंधार, इराक का बगदाद, मोसूल, तिर्कुक और अर्बिल, लेबनान का बेरूत, सिडान और त्रिपोली, तुर्की का गाजियांतेप, बुल्गारिया का प्लोवदीव, मिस्र का फाइयान, ईरान का सुसा और तेहरान, सीरिया का दमिश्क, पालमायरा, निमरूद और एलेप्पो, फिलिस्तीन का जेरिका, इसराइल का यरुशलम, सऊदी अरब का मक्का, इटली का रोम और पॉम्‍पी, इजिप्ट का मिस्र, भारत का काशी, मथुरा, अयोध्या, महाबलीपुरम, मगध, पुरुषपुर (पेशावर), लाहौर (लव विहार), द्वारिका, हरिद्वार, प्रयाग, कांचीपुरम, लद्दाख और अवंतिका, यूनान का एथेंस, चीन में फंगक्वांग और लोनान, तिब्बत, अमेरिका के होंडुरास और मेसो-अमेरिका आदि प्रमुख शहर सत्ता के केंद्र में थे।
 
उक्त सभी प्रमुख प्राचीन शहर प्राचीन सिल्क रूट (रेशम मार्ग) से जुड़े हुए थे। इस मार्ग से सिर्फ व्यापारिक और संत लोग ही यात्रा करते थे। कुछ लोग साहसिक यात्रा का आनंद लेने के लिए निकलते थे और फिर कभी नहीं लौट पाते थे। 
 
प्राचीन रेशम मार्ग पर साहसिक यात्रा पर निकले लोग फारस की रोटी, भारत की मिठाइयां और अरब की नान खाते थे। चीन जाने के लिए इस रूट पर बामियान, कश्मीर, लद्दाख, सिक्किम यात्रा का प्रमुख केंद्र होता था। सिल्क रूट की एक शाखा लद्दाख से होकर गुजरती थी।
 
200 साल ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी के बीच चीन के हान राजवंश के शासनकाल में रेशम का व्यापार बढ़ा था। पहले रेशम के कारवें चीनी साम्राज्य के उत्तरी छोर से पश्चिम की ओर जाते थे, लेकिन फिर मध्य एशिया के कबीलों से संपर्क हुआ और धीरे-धीरे यह मार्ग चीन, मध्य एशिया, उत्तर भारत, आज के ईरान, इराक और सीरिया से होता हुआ रोम तक पहुंच गया। इसी रास्ते का उपयोग सेनाओं ने भी किया।
दूसरे मुल्कों के कारवें के साथ सैकड़ों ऊंट, घोड़े, खच्चर, रेशम, सूखे मेवे और कालीन आदि लाए जाते थे जबकि हिन्दुस्तान से पश्मीना, रंग, ऊन, मसाले, सोना, फल, चांदी, हीरे, जवाहरात आदि बेचे जाते थे। उस दौर में भारत, रोम, मिस्र और यूनान सबसे समृद्ध और आधुनिक देश हुआ करते थे। 
 
उस दौर में भारत की यात्रा करना प्रचलन में था। कालांतर में सड़क के रास्ते व्यापार करना जब खतरनाक हो गया तो यह व्यापार समुद्र के रास्ते होने लगा। समुद्र का रास्ता भी बहुत खतरनाक और रोमांचभरा तो रहा ही, साथ ही इसने कई सभ्यताओं और संस्कृतियों को भी प्रभावित किया।
 
उपरोक्त बातें लिखने का मतलब यह है कि पहले की दुनिया समृद्ध और शांतिपूर्ण जिंदगी जी रही थी। उनके जीवन में रहस्य और रोमांच बहुत था। एक और जहां अरब के लोग अपनी समृद्धशाली और बहुत ही खूबसूरत संस्कृति के माध्यम से दुनियाभर में खुशबू बिखेर रहे थे तो दूसरी ओर भारत में धर्म और अध्यात्म के हिमालय का प्रभाव संपूर्ण धरती पर था। 
 
इसी दौर में चीन में शासन तंत्र को मजबूत किया जा रहा था। राज्यों की आपसी लड़ाइयों के बावजूद दुनिया में खगोल और वास्तुशास्त्र में तरक्की की जा रही थी। नई-नई खोजें और आविष्कार किए जा रहे थे। इस दौर के समृद्ध, शांतिमय और शक्तिशाली होने के सबूत हमें मिस्र के पिरामिडों, माया सभ्यता के टेम्पल और भारत के प्राचीन मंदिरों में दिखाई देते हैं।
 
हड़प्पा, सिन्धु और मोहनजोदड़ो सभ्यता का प्रथम चरण 3300 से 2800 ईसा पूर्व, दूसरा चरण 2600 से 1900 ईसा पूर्व और तीसरा चरण 1900 से 1300 ईसा पूर्व तक रहा। इतिहासकार मानते हैं कि यह सभ्यता काल 800 ईस्वी पूर्व तक चलता रहा। 
इसके बाद प्राकृतिक आपदा और सूखे के कारण ये सभी सभ्यताएं नष्ट हो गईं और इसके ही चलते मानव जाति का एक से दूसरे स्थान पर भारी संख्या में पलायन हुआ। लगभग 1800 ईसा पूर्व ही हजरत इब्राहीम ने मक्का का रुख किया था। खैर...।
 
उस दौर में दुनिया में धर्म को लेकर उतना आग्रह नहीं था जितना कि आज देखने को मिलता है। उस दौर में हर राजा के लिए अपने राज्य की सुरक्षा महत्वपूर्ण होती थी। ऐसे में प्रत्येक राज्य का अलग धर्म होता था जिस पर प्राचीन आदिकालीन धर्म का प्रभाव होता था, लेकिन भारत और अरब में यह स्थिति अलग थी।
 
भारत में आर्यों द्वारा स्थापित वैदिक धर्म और जैन धर्म मान्य था, तो दूसरी ओर अरब में सबाइन और यहूदी धर्म प्रमुख रूप से विद्यमान था। चीन, रशिया, अमेरिका आदि जगहों पर उक्त तीनों ही धर्म का किसी न किसी रूप में प्रभाव था जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्मों की उ‍त्पत्ति हो गई थी। 
 
अरब में तुर्क, कुर्द, यजीदी, आशूरी (असीरियाई), सबाईन, हित्ती, मुशरिक, कहतान, इस्माईल, पारसी आदि सभी जाति के लोगों का अपना-अपना धर्म था, लेकिन उनके धर्मों पर हिन्दू, जैन और यहूदी धर्म का ही प्रभाव देखने को मिलता है। 
 
दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से यहूदी, हिन्दू धर्म का क्या कनेक्शन था यह एक शोध का विषय हो सकता है, लेकिन एक नए धर्म बौद्ध धर्म से दुनिया में क्रांति की शुरुआत होती है।
 
निश्चित तौर पर यहां यह कहना होगा कि भारत को अन्य विश्व से जोड़ने में बौद्ध धर्म की बहुत बड़ी भूमिका रही है। जब बौद्ध धर्म का अवतरण हुआ, तो दुनिया ने एक नया सवेरा देखा। असमानता, बुराई और अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण और शस्त्रहीन तरीके से लोगों को एकजुट कर सभ्य और संवेदनशील बनाया जा रहा था।
 
संतों के लिए धर्म का एक नया पथ निर्मित किया गया। हालांकि उस काल में भारत के 16 जनपदों में से कुछ जनपद के शासक क्रूर हुआ करते थे, जैसे मगध, कुरु, पांचाल और गांधार। विश्‍व में राजाओं की मनमानी से संपूर्ण विश्‍व त्रस्त हो चला था। ऐसे में बुद्ध का संदेश बहुत महत्व रखता था। ऐसे दौर में बौद्ध धर्म का धम्मचक्र प्रवर्तन एक क्रांतिकारी कार्य था।
 
भारत ने इससे पहले धर्म को व्यवस्थित और परिवर्तित होते पहले शायद महाभारत काल में देखा होगा। लेकिन ईसा के 500 वर्ष पूर्व भारत में इस क्रांति को कोई हजम करने वाला नहीं था। वैदिक या पुराणिकों के धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक ऐसा धमाका था, जो उनको रात में सोने नहीं देता था। उन्हें लगता था कि अब इस भारतवर्ष से हिन्दू धर्म का नामोनिशान मिट जाने वाला है। यह चिंता ही कट्टरता का कारण बनी। तब पहली बार विश्व में संगठित धर्म को लेकर एक नई क्रांति का जन्म हुआ। धार्मिक आधार पर राज्यों का गठन किया गया और धर्म को हथियारबद्ध कर दिया गया।
 
एक और जहां भारत में यूनानी आक्रमण हो रहे थे तो दूसरी ओर भारत में ही दो तरह की शक्तिशाली विचारधाराएं खड़ी हो गई थीं। एक वे जिन्हें हम बौद्ध कहते हैं और दूसरे वे जिन्हें आज हम हिन्दू कहते हैं। बौद्ध धर्म को जब भारत के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो उसने अरब, चीन, जापान आदि सभी जगहों पर अपना विस्तार किया और ईसा की दूसरी सदी तक लगभग संपूर्ण धरती का एक बहुत बड़ा हिस्सा 'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' हो चला था। योरप और अरब की धरती पर आज भी इसके निशान स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं।
 
बुद्ध ने धर्म को पहली बार सुव्यवस्था दी और एक राजपथ निर्मित किया। बुद्ध के बाद दुनिया पहले की अपेक्षा और बेहतर, समृद्ध और शांतिमय हुई। जब कोई एक शक्तिशाली विचार जन्म लेता है तो उसके बाद उसी तरह के हजारों विचारों का जन्म होता है, आविष्कार होता है और नई-नई खोजें होती हैं और नए तरह का साहित्य लिखा जाता है। 
बुद्ध के बाद इतिहास ने करवट ली। बुद्ध के दौर में तक्षशिला, विक्रमशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में उच्च कोटि के वैज्ञानिक, धार्मिक, आयुर्वेदाचार्य और वास्तुकार होते थे। बुद्ध का जैसा विचार था वैसा समाज निर्मित हुआ, लोगों का वैसा आचरण और वैसा व्यवहार बना। दुनिया पहले की अपेक्षा और बुद्धिमान बनी। 
 
लेकिन मात्र 500 साल बाद बुद्ध की क्रांति पर रोक लग गई। एक यहूदी बढ़ई की पत्नी मरियम (मेरी) के गर्भ से यीशु नामक एक महान आत्मा का जन्म बेथलेहेम में हुआ। सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर यरुशलम पहुंचे, वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। उनके शिष्य जुदास ने उनके साथ विश्‍वासघात किया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। बस, यहीं से दुनिया में बुद्ध की क्रांति के दिन खत्म हो गए और क्रूस की क्रांति के दिन शुरू हुए।
 
अगले पन्ने पर जारी क्रूसेड...
 

भारत में बौद्ध धर्म द्वारा संपूर्ण हिन्दू धर्म को ओल्ड टेस्टामेंट बना दिए जाने के प्रयास जरूर असफल हो गए, लेकिन रोम और यूनान में यह कार्य करके दिखा दिया गया। उन्होंने एक बाइबिल बनाई और उसके आधार पर एक नए धर्म को गढ़ा गया जिसे कि प्राचीन परंपराओं का नवीनतम संस्करण माना गया। बस इसी को लेकर यहूदी और ईसाई धर्म के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ गई। ईसाइयों ने यीशु को मूसा की परंपरा का पैगंबर माना और उनके आसपास एक नया धर्म खड़ा कर दिया। अब उनकी लड़ाई यहूदियों और रोमनों से थी।
यहूदियों की राजनीतिक स्वाधीनता तो रोमनों ने 66 ईसा पूर्व ही खत्म कर दी थी, लेकिन ईसाई धर्म के वर्चस्व में आने के बाद रोम के पहले ईसाई सम्राट कोंसटेंटाइन ने यरुशलम को फिर से आबाद कर यहूदियों पर राज किया। यरुशलम इसलिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि यहीं यहूदी परंपरा का प्राचीन तीर्थ स्थल और यहीं पर उनके धार्मिक स्थल थे। यरुशलम के पास ही बेथलहम है, जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ था। 
 
बाद में यहूदी और ईसाइयों के बीच ऐसा संघर्ष चला कि यहूदी किसी भी स्थान पर संगठित रूप में नहीं रह सके। अंत में इसराइल से उनको खदेड़ दिया गया।
 
यहूदी और मुस्लिम धर्म में समानता है? ईसाई धर्म की उत्पत्ति भी यहूदी धर्म से हुई है, लेकिन तीनों ही धर्म एक-दूसरे के खिलाफ क्यों हैं, जबकि तीनों ही धर्म मूल रूप में एक समान ही हैं। आओ जानते हैं इस जंग के इतिहास का संक्षिप्त।
 
613 में हजरत मुहम्मद स.व. ने उपदेश देना शुरू किया था तब मक्का-मदीना सहित पूरे अरब में यहू‍दी धर्म, पेगन, सबाइन, इस्माइली, मुशरिक और ईसाई धर्म थे। लोगों ने इस उपदेश का विरोध किया। विरोध के कारण सन् 622 में हजरत अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना के लिए कूच कर गए। इसे 'हिजरत' कहा जाता है। मदीना में हजरत ने लोगों को इकट्ठा करके एक फौज तैयार की और फिर शुरू हुआ जंग का सफर। खंदक, खैबर, बदर और ‍फिर मक्का को फतह कर लिया गया।
 
सन् 630 में पैगंबर साहब ने अपने अनुयायियों के साथ कुफ्फार-ए-मक्का के साथ जंग की जिसमें अल्लाह ने गैब (चमत्कार) से अल्लाह और उसके रसूल की मदद फरमाई। इस जंग में इस्लाम के मानने वालों की फतह हुई। इस जंग को जंग-ए-बदर कहते हैं।
 
632 ईसवी में हजरत मुहम्मद सल्ल. ने दुनिया से पर्दा कर लिया। उनकी वफात के बाद तक लगभग पूरा अरब इस्लाम के सूत्र में बंध चुका था। इसके बाद इस्लाम ने यहूदियों को अरब से बाहर खदेड़ दिया। वे इसराइल और मिस्र में सिमटकर रह गए।
 
हजरत मुहम्मद सल्ल. की वफात के मात्र 100 साल में इस्लाम समूचे अरब जगत का धर्म बन चुका था। 7वीं सदी की शुरुआत में इसने भारत, रशिया और अफ्रीका का रुख किया और मात्र 15 से 25 वर्ष की जंग के बाद आधे भारत, अफ्रीका और रूस पर कब्जा कर लिया। इस जंग में सबसे ज्यादा नुकसान बौद्ध, पारसी और हिन्दुओं को झेलना पड़ा। ईरान में जहां खलिफाओं ने पारसियों को कत्ल किया गया वहीं उन्होंने इस्लाम के नाम पर  अफगानिस्तान, पाकिस्तान आदि हिन्दूकुश से लेकर सिन्धु के मुहाने तक बौद्ध और हिन्दुओं के खून से धरती लाल रंग से रंग दी गई। 
 
कहते हैं कि इस्लाम के इस जिहाद को टक्कर देने के लिए ही क्रूसेड शुरू हुआ। क्रूसेड के लिए ईसाई राष्ट्रों को एकजुट किया जाने लगा और अब तक धर्म के नाम पर 7 क्रूसेड हो चुके हैं। इनमें से तीन प्रमुख है...
 
ईसाइयों ने ईसाई धर्म की पवित्र भूमि फिलीस्तीन और उसकी राजधानी यरुशलम में स्थित ईसा की समाधि पर अधिकार करने के लिए 1095 और 1291 के बीच 7 बार जो युद्ध किए उसे क्रूसेड कहा जाता है। इसे इतिहास में सलीबी युद्ध भी कहते हैं। यह युद्ध 7 बार हुआ था इसलिए इसे 7 क्रूश युद्ध भी कहते हैं, जिनमें प्रमुख तीन रहे हैं।
 
उस काल में इस भूमि पर इस्लाम की सेना ने अपना आधिपत्य जमा रखा था, जबकि इस भूमि पर मूसा ने अपने राज्य की स्थापना की थी। इस तरह इस भूमि पर ईसाई, यहूदी और मुसलमान तीनों ही धर्म के लोग आज भी उस भूमि के लिए युद्ध जारी रखे हुए हैं।
 
पहला क्रूसेड : अगर 1096-99 में ईसाई फौज यरुशलम को तबाह कर ईसाई साम्राज्य की स्थापना नहीं करती तो शायद इसे प्रथम धर्मयुद्ध (क्रूसेड) नहीं कहा जाता जबकि यरुशलम में मुसलमान और यहूदी अपने-अपने इलाकों में रहते थे। इस कत्लेआम ने यहूदी और मुसलमानों को फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया। इस क्रूसेड में यरुशलम राज्य की स्थापना हुई, जो रोमन कैथोलिक राज्य था। 
 
दूसरा क्रूसेड : 1144 में दूसरा धर्मयुद्ध फ्रांस के राजा लुई और जैंगी के गुलाम नूरुद्दीन के बीच हुआ। इसमें ईसाइयों को पराजय का सामना करना पड़ा। 1191 में तीसरे धर्मयुद्ध की कमान उस काल के पोप ने इंग्लैड के राजा रिचर्ड प्रथम को सौंप दी जबकि यरुशलम पर सलाउद्दीन ने कब्जा कर रखा था। इस युद्ध में भी ईसाइयों को बुरे दिन देखना पड़े। इन युद्धों ने जहां यहूदियों को दर-ब-दर कर दिया, वहीं ईसाइयों के लिए भी कोई जगह नहीं छोड़ी।
 
लेकिन इस जंग में एक बात की समानता हमेशा बनी रही कि यहूदियों को अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अपने देश को छोड़कर लगातार दर-ब-दर रहना पड़ा जबकि उनका साथ देने के लिए कोई दूसरा नहीं था। वे या तो मुस्लिम शासन के अंतर्गत रहते या ईसाइयों के शासन में रह रहे थे।
 
इसके बाद 11वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई यरुशलम सहित अन्य इलाकों पर कब्जे के लिए लड़ाई 200 साल तक चलती रही, ‍जबकि इसराइल और अरब के तमाम मुल्कों में ईसाई, यहूदी और मुसलमान अपने-अपने इलाकों और धार्मिक वर्चस्व के लिए जंग करते रहे। इस दौर में इस्लाम ने अपनी पूरी ताकत भारत में झोंक दी।
 
लगभग 600 साल के इस्लामिक शासन में इसराइल, ईरान, अफगानिस्तान, भारत, अफ्रीका आदि मुल्कों में इस्लाम स्थापित हो चुका था। लगातार जंग और दमन के चलते विश्व में इस्लाम एक बड़ी ताकत बन गया था। इस जंग में कई संस्कृतियों और दूसरे धर्मों का अस्तित्व मिट चुका था।
 
17वीं सदी की शुरुआत में विश्व के उन बड़े मुल्कों से इस्लामिक शासन का अंत शुरू हुआ, जहां इस्लाम थोपा जा रहा था। यह था अंग्रेजों का वह काल, जब मुसलमानों से सत्ता छीनी जा रही थी। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हुआ। उसी दौरान अरब राष्ट्रों में पश्चिम के खिलाफ असंतोष पनपा और वे ईरान तथा सऊदी अरब के नेतृत्व में एकजुट होने लगे।
 
बहुत काल तक दुनिया 4 भागों में बंटी रही- इस्लामिक शासन, चीनी शासन, ब्रिटेनी शासन और अन्य। फिर 19वीं सदी कई मुल्कों के लिए नए सवेरे की तरह शुरू हुई। कम्युनिस्ट आंदोलन, आजादी के आंदोलन चले और सांस्कृतिक संघर्ष बढ़ा। इसके चलते ही 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ जिसके अंत ने दुनिया के कई मुल्कों को तोड़ दिया और कई नए मुल्कों का जन्म हुआ।
 
द्वि‍तीय विश्वयुद्ध में यहूदियों को अपनी खोई हुई भूमि इसराइल वापस मिली। यहां दुनियाभर से यहूदी‍ फिर से इकट्ठे होने लगे। इसके बाद उन्होंने मुसलमानों को वहां से खदेड़ना शुरू किया जिसके विरोध में फिलीस्तीनी इलाके में यासेर अराफात का उदय हुआ। फिर से एक नई जंग की शुरुआत हुई। इसे नाम दिया गया फसाद और आतंक।
 
इस जंग का स्वरूप बदलता रहा और आज इसने मक्का, मदीना और यरुशलम से निकलकर व्यापक रूप धारण कर लिया है। इसके बाद शीतयुद्ध और उसके बाद सोवियत संघ के विघटन से इस्लाम की एक नई कहानी लिखी गई 'आतंक की क्रूर दास्तां'। इस दौर में मुस्लिम युवाओं ने ओसामा के नेतृत्व में आतंक का पाठ पढ़ा।
 
लेकिन ओसामा बिन लादेन के अंत के बाद आतंकवाद ने और भी भयानक रूप धारण किया है जिसे आज आईएसआईएस कहते हैं। दुनिया में आईएस का आतंक जारी है जिसके चलते अब पश्चिमी ईसाई मुल्क फिर से एकजुट होने लगे हैं और विश्‍व ISIS के कारण धीरे-धीरे भयानक युद्ध की ओर बढ़ता जा रहा है। इस्लामिक स्टेट द्वारा हाल ही में फ्रांस में किए गए हमले के बाद रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और ईरान अब पहले से कहीं ज्यादा नजदीक आ गए हैं।
 
जंग तो सद्दाम हुसैन के दौर से ही जारी है, लेकिन अब देखना होगा कि आखिर यह जंग आगे जाकर कैसा रूप धारण करती है। लेकिन यह तय है कि इसमें निर्दोष ईसाई और मुसलमान ही मारा जाएगा। सऊदी अरब, दुबई और ईरान के शाह उन्हें मरते हुए देखेंगे। अमेरिका और उसके सहयोगी राष्ट्र भी धर्म के नाम पर उनका खून गिराते हुए दिखाई देंगे। अंत में किसी को कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। फिर की जाएगी प्रभा‍वहीन संयुक्त राष्ट्र की ओर से शांति की अपील। 
 
अगले पन्ने पर जानिए जिहाद और क्रूसेड का अर्थ...
 

विद्वानों के अनुसार धर्मयुद्ध, क्रूसेड और जिहाद- इन तीनों तरह के शब्दों के अलग-अलग अर्थ हैं। फिर भी इसके विषय में कुछ भी कहना विवाद का विषय ही माना जाता रहा है। वर्तमान में इस तरह के शब्दों के मायने बदल गए हैं। अब इसे अंग्रेजी में 'होली वॉर' कहा जाता है अर्थात 'पवित्र युद्ध'।
क्रूसेड : क्रूसेड अथवा क्रूस युद्ध। क्रूस युद्ध अर्थात ख्रीस्त धर्म की रक्षा के लिए युद्ध। ख्रीस्त धर्म अर्थात ईसाई या क्रिश्चियन धर्म के लिए युद्ध। अधिकतर लोग इसका इसी तरह अर्थ निकालते हैं लेकिन सच क्या है, यह शोध का विषय हो सकता है।
 
जिहाद : जिहाद या जेहाद अरबी में इसके दो अर्थ हैं- सेवा और संघर्ष। इसका मूल शब्द 'जहद' है जिसका अर्थ होता है 'संघर्ष'। जिहाद का अर्थ है 'जद्दोजेहद करना' से भी लगाया जाता है। अक्सर लोग इसका गलत अर्थ निकालते हैं। इस्लामिक विद्वान मानते हैं कि जिहाद का अर्थ धर्म के लिए पवित्र युद्ध करना नहीं होता। यह तो आंतरिक अनुशासन लाने और अन्याय के खिलाफ संघर्ष होता हैं।
 
जिहाद 2 प्रकार के माने गए हैं- 1. जिहाद अल-अकबर (बड़ा जिहाद) और 2. जिहाद अल असगर (छोटा जिहाद)। पहला जिहाद खुद के ‍भीतर की बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करना है, तो दूसरा जिहाद सामाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ है।
 
वैसे तो पवित्र पुस्तक कुरान में जिहाद का जिक्र मिलता है। जिहाद तो मोहम्मद सल्ल. के समय से ही जारी है, किंतु 11वीं सदी की शुरुआत में क्रूसेडरों ने जब यरुशलम के लिए मोर्चाबंदी की तो पहली बार मुसलमानों को जिहाद के लिए इकट्ठा किया गया। यहीं से जिहाद के पवित्र मायने बदल गए। सीरिया को एकजुट कर मुसलमानों ने ईसाइयों को खदेड़कर इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की, तभी से जिहाद शब्द व्यापक पैमाने पर प्रचलन में आया और इसका उद्देश्य बदल गया।
 
जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। अरबी भाषा के इस शब्द के अर्थ का आज अनर्थ हो चला है। किसी संप्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं, हजरत मोहम्मद साहब ने मानव बुराइयों और जालिमों के खिलाफ जिहाद किया था। जिहाद की व्याख्या, अर्थ या विचार को विवादित ही माना जाता रहा है। 
 
पहले क्रूसेड के बाद जैंगी के नेतृत्व में मुसलमान दमिश्क में एकजुट हुए और पहली दफा अरबी भाषा के शब्द 'जिहाद' का इस्तेमाल किया गया जबकि उस दौर में इसका अर्थ संघर्ष हुआ करता था। इस्लाम के लिए संघर्ष नहीं, लेकिन इस शब्द को इस्लाम के लिए संघर्ष बना दिया गया।