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Last Updated : बुधवार, 14 दिसंबर 2016 (21:46 IST)

विमुद्रीकरण से नेत्रहीनों का जीवन बना नर्क

विमुद्रीकरण से नेत्रहीनों का जीवन बना नर्क - Demonetization, visually, bank, Reserve Bank of India
नई दिल्ली। भारत में करीब डेढ़ करोड़ दृष्टिहीन हैं लेकिन सरकार ने विमुद्रीकरण का अभियान चलाने से पहले समाज के इस वर्ग का ध्यान नहीं रखा है। गौरतलब है कि दुनिया के सबसे ज्यादा दृष्टिहीन लोग भारत में हैं, लेकिन सरकार ने कालेधन पर रोक लगाने के उत्साह में इन लोगों को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया है और इस अभियान के चलते ये लोग आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। 
आमतौर पर हार्ड कैश जो कि सिक्कों के रूप में या नोटों के रूप में, उनके कुछ फीचर्स के चलते इनकी मुद्रा की पहचान करने की क्षमता के काम आता है लेकिन सरकार ने इन्हें पूरी तरह से उपेक्षित करके पूरी तरह से भिक्षुकों में बदल दिया है। कुछेक शहरों के गिने-चुने एटीएम में बटन ब्रेल में होते हैं और कुछ मशीनें बात भी कर सकती हैं, लेकिन जब देश के लाखों सक्षम लोग लाइनों में खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे हों तब इन्हें डिजीटल वॉलेट्‍स और नेटबैंकिंग एप्स का उपयोग करना कौन सिखा सकता है?  
 
कुछ आधुनिक फोनों में थोड़े से फीचर्स ऐसे होते हैं जिनमें फोंट बड़े होते हैं, टॉकबैक की सुविधा होती है जो कि आंशिक रूप से दृष्टिहीन या बुजुर्गों के लिए उपयोगी साबित होती है। लेकिन ऐसे फोन या एटीएम्स की संख्या भी सीमित होगी। एप्स में इंटरफेस सेटिंग को सरल बनाकर इसे ऐसे लोगों के लिए भी उपयोगी बनाया जा सकता है लेकिन ऐसे मामलों में भाषा परेशानी बनती है और इस तरह की सीमित सुविधाएं भी ज्यादातर अंग्रेजी भाषा में होती हैं। बेसिक या सेमी ऑटोमैटिक फोन्स में तो इस तरह की कोई सुविधा भी नहीं पाई जाती है। 
 
देश के दो सबसे बड़े बैंकों, एसबीआई और आईसीआईसीआई के बैंकिंग एप्स भी ऐसे नहीं हैं जो दृष्टिहीनों के लिए उपयोगी हों। ज्यादातर फोन्स में जो वॉइस फीचर्स होते हैं, वे स्थानीय भाषाओं में  नहीं होते हैं। वास्तव में स्थानीय भाषाओं क्या अंग्रेजी में भी यह सुविधा बहुत ही सीमित स्तर पर है। आजकल प्रचलन में आ रहे एप्स के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि इनमें यूजर के प्रयोग में आने वाली भाषा का कोई फीचर्स हो। इन एप्स की सेटिंग्स में ही ऐसा बिल्ट इन फीचर बनाया जा सकता है जो समाज के इस वर्ग के लिए थोड़ा बहुत मददगार हो।    
 
बेसिक फोन्स में जो यूएसएसडी (अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा) होता है, उनमें स्क्रीन रीडिंग सपोर्ट नहीं होता है। इन लोगों की मदद के लिए एक ऐसी फोन बैंकिंग सेवा हो जिसमें आईवीआर (इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस सिस्ट्‍म्स) हो लेकिन जरूरी नहीं है कि ऐसी फोन बैंकिंग जिसमें मनी ट्रांसफर जैसा फीचर हो। हाल ही में, पेटीएम ने एक आईवीआर ट्रांसफर सुविधा दी है लेकिन यह भी केवल अंग्रेजी और हिंदी में है।
 
भारत में शारीरिक रूप से अक्षम नागरिकों के लिए ऐसी सुविधाओं का अकाल रहा है जोकि ऐसे लोगों को सक्षम लोगों की तरह से अपना काम करने में मदद करे। समाज के इस वर्ग के पास पहले से ही मुश्किलें थीं लेकिन जब से देश को सरकार कैशलेस बनाने में जुटी है तब से इन लोगों की मुश्किलें और बढ़ गई हैं और देश के नेताओं के पास इन लोगों के बारे में सोचने का न समय है और न ही जरूरत क्योंकि ये निजी कंपनियों के लिए इतना बड़ा बाजार नहीं हैं कि कंपनियों को इस क्षेत्र में नया करने में कोई लाभ दिखाई दे।