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Last Updated : रविवार, 23 जनवरी 2022 (15:10 IST)

Omicron के हैं तीन वैरिएंट, क्‍या आपको पता है कौनसा वैरिएंट है सबसे ज्‍यादा खतरनाक?

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  • दुनिया में ओमिक्रॉन के तीन वैरिएंट सामने आए हैं BA.1, BA.2 और BA.3
  • इनमें से सबसे तेजी से BA.2 वेरिएंट फैल रहा है।
दुनियाभर में ओमिक्रॉन के मामले बढ़ रहे हैं। अब इससे कोई देश अछूता नहीं रह गया है। बता दें कि अब तक ओमिक्रॉन के तीन Variant पहचाने गए हैं, BA.1, BA.2 और BA.3.!

वैज्ञानिकों का कहना है, ओमिक्रॉन अब इन्‍हीं सब सब-वेरिएंट के जरिए ज्‍यादा तेजी से फैल रहा है। इनमें से सबसे तेजी से BA.2 वेरिएंट फैल रहा है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) का कहना है, तीनों रूपों में से  BA.2 ओमिक्रॉन की जगह लेता हुआ नजर आ रहा है। ब्र‍िटेन की हेल्‍थ सिक्‍योरिटी एजेंसी (UK HSA) का कहना है, इसका पता लगाना मुश्किल है कि ये कहां से आया और इसकी उत्‍पत्ति कहां और कैसे हुई है। एजेंसी ने फिलहाल इसकी जांच कर रही है।

कितना खतरनाक है BA.2 वैरिएंट?
ब्र‍िटेन की हेल्‍थ सिक्‍योरिटी एजेंसी का कहना है, ओमिक्रॉन के सब-वेरिएंट वैक्‍सीन को भी चकमा दे सकते हैं। यही खूबी इसे संक्रामक बनाती है। इस पर और अधि‍क जानकारी देने के लिए इसे जांच की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 40 देशों में BA.2 सब वेरिएंट के करीब 8 हजार मामले सामने आ चुके हैं।

कहां बढ रहे संक्रमित?
भारत, डेनमार्क और जर्मनी में भी इस वेरिएंट से संक्रमित होने वाले मरीजों की संख्‍या बढ़ रही है। इनमें डेनमार्क सबसे आगे है। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वेरिएंट पर नजर रख रहे हैं। लगातार रिसर्च के जरिए यह समझने की कोशिश की जा रही है कि यह किस हद तक खतरनाक है।

ब्र‍िटेन की हेल्‍थ सिक्‍योरिटी एजेंसी (HSA) में कोविड मामलों के विशेषज्ञ  डॉ. मीरा चांद का कहना है, वायरस का स्‍वभाव बदलता है, इसलिए अगर महामारी बढ़ती है तो नए वेरिएंट के पैदा होने का खतरा भी बढ़ता है। यह कितना खतरनाक हो सकता है, अभी कुछ कहना मुश्किल है।

ओमिक्रॉन पर इंपीरियल कॉलेज लंदन के महामारी विशेषज्ञ डॉ. टॉम पिकॉक का कहना है, अगर संक्रमण की गंभीरता की तुलना की जाए तो  BA.2 और BA.1 सब वेरिएंट में बहुत बड़ा अंतर नहीं है। BA.2 और कितना संक्रमक हो सकता है, इस पर अभी और साक्ष्‍य मिलने बाकी हैं।

BA.2 की पहचान करना मुश्किल नहीं है, इसकी वजह है एक जीन। इस सब-वेरिएंट में स्‍पाइक S जीन नहीं होता, इसलिए पहचान करना आसान होता है। जीनोम सीक्‍वेंसिंग के बजाय RT-PCR जांच से ही इसकी पहचान हो सकती है।
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