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Last Modified: मंगलवार, 24 मार्च 2020 (23:26 IST)

Corona virus के दौरान पत्रकारों के लिए रिपोर्टिंग करना कठिन काम

Corona virus के दौरान पत्रकारों के लिए रिपोर्टिंग करना कठिन काम - Corona virus media reporting
मुंबई। कोरोना वायरस के फैलने के बीच पत्रकार इस महामारी की लगातार रिपोर्टिंग के दौरान परेशानियों का सामना कर रहे हैं। इस संक्रमण की वजह से अभूतपूर्व बंद (लॉकडाउन) हुआ है, जिससे करोड़ों लोगों की जिंदगियां प्रभावित हुई हैं।
 
मीडिया कर्मियों ने कहा कि दुनियाभर में पत्रकारों को अभी तक की सबसे बड़ी खबर की रिपोर्टिंग करने में भारी दबाव और बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है और यही हाल महाराष्ट्र के पत्रकारों का भी है, जहां कोरोना वायरस के संक्रमितों की संख्या 100 के पार जा चुकी है। देश के अन्य हिस्सों की तरह मुंबई में भी रात 12 बजे से कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए अप्रत्याशित लॉकडाउन होने जा रहा है।
 
उपनगरीय ट्रेनों और बसों को आर्थिक राजधानी की जीवन रेखा माना जाता है, मगर वे बंद हैं और लोग घर से काम करने पर मजबूर हैं या वैतनिक अवकाश पर हैं। राज्य में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मामले मुबंई से ही सामने आए हैं। मौजूदा परिदृश्य में, पत्रकारों के लिए अधिकारियों के साथ संवाद करने और बंद और कर्फ्यू के दौरान खबरों को निकालना कठिन काम है।
 
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ आर्य ने कहा, यह युद्ध या दंगे से अलग है, जिसमें मीडियाकर्मी थोड़ी बहुत स्वतंत्रता के साथ आ जा सकते हैं। 1968 में अहमदाबाद में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान, सेना को बुलाया गया था और प्रभावित क्षेत्रों में जाने के लिए पत्रकारों को उनसे पास मिले थे। सार्वजनिक परिवहन कभी बंद नहीं हुआ था।
 
उन्होंने कहा कि आफत के वक्त लोगों को घरों से निकलने से रोकने के लिए कर्फ्यू सबसे अच्छा निवारक है। आर्य बताते हैं कि 1992-93 के मुंबई दंगों और उसके बाद हुए बम धमाकों के दौरान, केवल कुछ इलाकों में ही कर्फ्यू लगाया गया था और सार्वजनिक परिवहन प्रभावित नहीं हुआ था। 
 
वे कहते हैं कि आज के 24/7 के दौर में पत्रकार का काम मुश्किल है। महामारी का मौजूदा परिदृश्य युद्ध या दंगे को कवर करने से अलग है। हालांकि, प्रौद्योगिकी और सोशल मीडिया निश्चित रूप से इस समय पत्रकारों के लिए काफी मद्दगार हैं, क्योंकि वे व्हाट्सएप समाचार समूहों और अन्य माध्यमों से जानकारी जुटा सकते हैं।
 
मराठी अखबार बेलगाम तरूण भारत” के संपादक नरेंद्र कोठेकर के अनुसार, प्रिंट मीडिया की कंपनियों ने अपने स्टाफ को लैपटॉप दिए हैं। वे घर से ही खबरों को संपादित कर सकते हैं और उन्हें अपने मुख्य कार्यालयों में भेज सकते हैं, जहां पन्ने बनाए जाते हैं।
 
पीटीआई मुंबई के आईटी प्रमुख प्रकाश मिस्किता ने कहा कि उपसंपादकों के लैपटॉपों में एक सॉफ्टवेयर डाला गया, जिससे वे अपने घरों से ही काम कर सकते हैं। दवाई की दुकानें हमेशा खुली रहेंगी। हां, राशन और दूध के लिए समय निर्धारित किया गया है। (भाषा)
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