मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By रूना आशीष

ईरान से लाए कश्मीर के करीब 44 लोगों को नौसेना ने सकुशल घर पहुंचाकर दिल जीता

ईरान से लाए कश्मीर के करीब 44 लोगों को नौसेना ने सकुशल घर पहुंचाकर दिल जीता - 44 people of Kashmir Navy won all the hearts by bringing them home safely
मुंबई। हाल ही में नौसेना के 26 सेलर्स को Covid-19 होने की खबर है। इन सभी सेलर्स को क्वारंटाइन कर दिया गया है। ऐसे समय के बीच नौसेना ने विदेशों से कई भारतीयों को देश में एयरलिफ़्ट किया है और साथ ही क्वारंटाइन भी किया है। हाल ही में ईरान से लाए कश्मीर के करीब 44 लोगों को पहले आइसोलेशन में रखा गया और फिर सकुशल उन्हें विमान से कश्मीर मे ड्रॉप किया गया। वेबदुनिया ने उन लोगों की देखभाल करने वाले डॉक्टर्स की टीम के आधिकारिक सर्जन कैप्टन सौगत रे से विशेष बातचीत की...
 
आप किस तरह के मरीज़ों से मिलते थे और वो कैसे रिएक्ट करते हैं?
हम सुबह-शाम उन लोगों के पास जाकर बैठते और बातें करते थे। कई बार दिलासा देते थे कि हम सभी डॉक्टर उन लोगों के साथ हैं और समय आने पर उन्हें उनके घरों तक भी पहुंचाया जाएगा। हाल ही में कश्मीर के मरीज़ों को भी हमने पहले तो आइसोलेशन में रखा। उनके टेस्ट निगेटिव आने पर भारतीय वायु सेना से मदद ली और उन्हें एयरलिफ़्ट करके कश्मीर भी पहुंचाया।
 
थोड़ा इन कश्मीर के मरीज़ों के बारे में बताएं
अपनी धार्मिक यात्राओं के चलते ये 44 कश्मीरी लोग ईरान गए थे। जब दुनिया भर में कोरोना का संक्रमण फैलने लगा तो येलोग कई कोशिशें करने लगे ताकि जल्द से जल्द भारत पहुंच सकें। इन लोगों ने फिर MEA (Ministry of External Affairs) से संपर्क किया और इस तरह इन्हें भारत लाया गया। लेकिन जब हम उन्हें आइसोलेशन में भी रख रहे थे तो हमारी परेशानी इनकी भाषा थी। 
इनमें से किसी को हिंदी या अंग्रेज़ी आती थी। हिंदी आती भी थी तो बहुत कम। ऐसे में हमें भाषा की दिक्कत का सामना करना पड़ा। जिन्हें हिंदी आती थी, उनसे कहते कि हमारी बातें अन्य लोगों को भी समझाएं या फिर भाषा अनुवादक को भी बुलाते थे। इनमें से कई लोग बहुत ऑर्थोडॉक्स भी थे। ये लोग कश्मीरी पहनावा पहनने वाले लोग थे, जिन्हें मुंबई की गर्मी बहुत मुश्किल लगती थी।
 
इन लोगों के क्या कोई और भी इंतज़ाम किए गए थे?
हमने मरीज़ों के लिए चेस या लूडो जैसे कुछ बोर्ड गेम्स रखे थे। वैसे भी ये लोग कोरोना के मरीज़ नहीं थे, सिर्फ आइसोलेशन में थे। ये टीवी देखते थे। हमने इन लोगों को कश्मीर के खाने भी बनाकर दिए। उन्हें प्रार्थनाओं 
के लिए एक कमरा दिया। इसके अलावा जिम की सुविधा दी। कुछ लोगों को उच्च रक्तचाप था या सर्दी भी हुई थी तो उन्हें वैसी दवाएँ दी गईं। इनके पास मोबाइल थे। वे अपने परिवार से बातचीत भी कर लेते थे।
आप तो ऐसे कई मरीज़ों को संभाल रहे हैं। कोरोना नाम के अनदेखे दुश्मन से डर नहीं लगा?
(हंसते हुए) मेरी सर्विस को लगभग 26 साल हो गए हैं। शुरुआत में ढाई साल की सर्विस में ही मुझे बंगाल के एक बाढ़ पीड़ित इलाके में भेजा गया था, जहां सब तरफ पानी था और रोज़ाना करीब 2000 लोगों की डायरिया से मौत की ख़बर आती थी। तब भी राहत ऑपरेशन सफल रहा था। 
 
फिर एक बार मैं पाराद्वीप में पोस्टेड था, 1999 का बात कर रहा हूं। फिर सुनामी के समय में मैं राहत के लिए बनी पहली टीम की अगुआई कर रहा था। डिज़ास्टर मैनेजमेंट में हम ऐसी कई बातों से जूझते हैं। कोरोना के वक्त हम विशेष सावधानी बरत रहे हैं। यहां पर मास्क पहनते हैं, सोशन डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं। असल में परेशानी वहां बढ़ती है, जहां इम्यूनिटी कमज़ोर हो। 
जब मरीज़ स्वस्थ होकर 'बाय' करते हैं तो कैसा लगता है?
सच पूछा जाए तो बहुत इमोशनल माहौल होता है। सभी लोग बहुत सारा धन्यवाद करते हैं। डॉक्टर के अलावा जो भी स्टाफ़ होता है, उसे भी धन्यवाद करते हैं। कश्मीर के इन लोगों ने तो हमें यहां तक कहा कि हम जो भी आप लोगों के बारे में सोचते थे, आप वैसे नहीं है। जब भी आप कश्मीर आएं, हमारे घर ज़रूर आएं।