पत्र संपादक के नाम:::::::"माया मिली न राम उलटे हुए बदनाम".........दो माह से अधिक समय से चल रहे तीन कृषि कानूनों को रद्द करने वाले "किसान आंदोलन" की प्रारंभिक इतिश्री (हो सकता है आगे और चले) गणतंत्र दिवस के दिन असंवैधानिक क्रियाकलापों (हिंसा,तोड़फोड़,लाल किले पर अन्य झंडा लगाने जैसे कृत्य) के चलते हो गई. अगर हम इस आंदोलन का विश्लेषण करें तो इसकी असफलता के प्रमुख कारण ये हो सकते हैं. जैसे कुशल नेतृत्व की कमी, स्वार्थी राजनीतिक पार्टियों के झांसे में आ जाना, कतिपय गलत लोगों का प्रवेश, सरकार से हुई अनेक लम्बी वार्ताओं में अपनी जिद्द पर अड़े रहना या यूँ कहें अपनी मांगों के प्रति वार्ता में संवेदनशील (निभने या निभाने की) प्रवृत्ति को ताक में रख देना. क्योंकि एक नहीं, दो नहीं ११ मौके मिले थे सरकार से बातचीत के जिसमे दो मांगे तो सरकार ने मान ली थी और दो मांगों पर विचार कर कानूनों में संशोधन व निरस्तीकरण तक के लिए सरकार तैयार हो गई थी. परन्तु वहां नेतृत्व कुशलता का परिचय देने में पीछे रह गया और स्वार्थी राजनीतिज्ञों के चाले लगकर पूरा खेल बिगाड़ लिया. हुआ क्या ? जब नेतृत्व की अकुशलता के चलते आंदोलन हाथ से छूट उग्र हो गया तब स्वार्थी राजनीतिज्ञों के साथ ही साथी संगठनों के नेताओं ने भी पल्ला झाड़ लिया. अगर मजबूत कुशल नेतृत्व होता और वह आंदोलनकारियों को एक आवाज में संगठित रूप से अपने तरीके से मोड़ने की कूबत रखता तो शायद् किसानों की मांगों पर ऐसा काला साया नहीं पड़ पाता. नेतृत्व की अकुशलता के कारण "माया मिली ना राम और उलटे हो गए बदनाम" जैसी स्थिति में आकर आंदोलन की प्रारंभिक इतिश्री हो गई.......शकुंतला महेश नेनावा,५७, गिरधर नगर (तिलक नगर के पास), इंदौर (म.प्र.)....फोन...०७३१-४०४६३२६.