अब मुझे बताए की क्या 6 करोड़ लोगों को पेसा देकर बुलाया गया था, या क्या वे खरीदे हुये थे?
मंदिर का शिलान्यास – ९ नवम्बर, १९८९ को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उस समय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।
देखिये फिर से काँग्रेस के ही लोगो ने काम किया ।
कारसेवा का आह्वान – २४ जून, १९९० को संतों ने देवोत्थान एकादशी (३० अक्तूबर १९९०) से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया।
राम ज्योति – अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह “राम ज्योति” देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई।
हिन्दुत्व की विजय – ३० अक्तूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया।
कारसेवकों का बलिदान – २ नवम्बर, १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं।
इसीलिए इस मुलायम को मुल्ला मुलायम कहते है ।
ऐतिहासिक रैली – ४ अप्रैल, १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया।
रामपादुका पूजन – सितम्बर, १९९२ में भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और गीता जयंती (६ दिसंबर, १९९२) के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया।
अपमान का प्रतीक ध्वस्त – लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया।
मंदिर के अवशेष मिले – ध्वस्त ढांचे की दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत “ओम नम: शिवाय” से होती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
अब आप बताए की गलत कौन है ?
वर्तमान स्वरूप – कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंह राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एक अध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था।
फिर से काँग्रेस की जय हो ।।
दर्शन-पूजन निविर्घ्न – भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। १ जनवरी, १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।
अब बताए की मुस्लिम भाइयो को परेशानी क्या है ?
राष्ट्रपति का प्रश्न – भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न “रेफर” किया। प्रश्न था, “क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?”
इस 1 प्रश्न ने ही पूरे मुकदमे का रुख मोड कर रख दिया, यहा यह बात देखिये की यह प्रश्न भी 1 काँग्रेस के ही कार्यकर्ता का था।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा – सर्वोच्च न्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४ अक्तूबर, १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष “रेफरेंस” का जवाब देगी।
लखनऊ खण्डपीठ – तीन न्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम) की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की। मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिक साक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।
भूगर्भीय सर्वेक्षण – अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति के विशेष “रेफरेंस” का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर “ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे” का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का
उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, १९६१ में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया।
खुदाई – २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशत मुस्लिम होंगे।
अब आप देखिये हिन्दुओ की दरया दिली की श्रमिक भी मुस्लिम रखे ।
मंदिर के साक्ष्य मिले – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी। कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं।
कानूनी प्रक्रिया पूरी – करीब ६० सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्च न्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इस मामले में न्यायालय की प्रक्रिया अब पूरी हो गई।
राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखते हुए पुन: जनजागरण हेतु – ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वार कुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक में श्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान में तुलसी जयंती (१६ अगस्त, २०१०) से अक्षय नवमी (१६ नवम्बर, २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठ करने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थान एकादशी (१७ नवम्बर, २०१०) से गीता जयंती (१६ दिसंबर, २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभग आठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे।
इतने के बाद भी हमे सघर्ष करना पड़ा ।
ऐतिहासिक दिन – ३० सितम्बर, २०१० को अयोध्या आंदोलन