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टिप्पणियां

N.P. GUPTA

नही, राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई लोकसभा चुनाव तक टालने की मांग उचित नही कही जा सकती है । देश के सभी वर्ग यहा तक कि अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोग भी इस मुद्दे को जल्दी से जल्दी सुलझाने की इच्छा रखते है । जिन्होने इस प्रकार की मांग कोर्ट के समक्ष रखी है वास्तव मे वे ही इस मुद्दे को बनाए रखना चाहते है ताकि वोट की राजनिती की जा सके ।
X REPORT ABUSE Date 16-12-17 (08:26 PM)

Shobha

चुनाव और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय दोनों अलग अलग मुद्दे हैं अगर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को चुनाव के साथ जोड़ा जाता है तो उसका सीधा फायदा राजनितिक पार्टियां ही उठाएगी इसलिए सुप्रीम कोर्ट का निर्णय राजनीती वाद से हटकर होना चाहिए
X REPORT ABUSE Date 16-12-17 (05:03 PM)

vijender singh

कोर्ट को चुनाव से क्या लेना देना , उसे मामले की सुनवाई करनी चाइये , राम मंदिर अगर अयोद्या में नहीं बनेगा तो कहा बनेगा | मंदिर तो बनना ही चाइये , जय जय श्री राम | जय जय श्री राम | जय जय श्री राम | जय जय श्री राम
X REPORT ABUSE Date 15-12-17 (12:45 AM)

ek hindu

कोर्ट को चुनाव से क्या लेना देना , उसे मामले की सुनवाई करनी चाइये , राम मंदिर अगर अयोद्या में नहीं बनेगा तो कहा बनेगा | मंदिर तो बनना ही चाइये , जय जय श्री राम | जय जय श्री राम | जय जय श्री राम | जय जय श्री राम |
X REPORT ABUSE Date 13-12-17 (08:16 AM)

rahul

नहीं राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई को किसी चुनाव के लिए टालना उचित नहीं है मुझे लगता मोदी जी भगवान् राम के कार्य को पूरा करेंगे
X REPORT ABUSE Date 13-12-17 (05:50 AM)

MANISH SINGH

नहीं राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई को किसी चुनाव के लिए टालना उचित नहीं है यह सनातन धर्म के आस्था से जुडा है इसका निर्णय होना नितान्त आवश्यक है। किसी चुनावी मुद्दा नहीं बनाना है इसलिए शीघ्रता पूर्वक कृपया इस मामले को तत्परता से सुनवाई करते हुए निर्णय करना ही आवश्यक है। कब तक ऐसे ही सुनवार्इ चलेगी और चुनाव में लोग हमारे धर्म और आस्था से खिलवाड करेंगे।
X REPORT ABUSE Date 12-12-17 (01:18 PM)

Dr. Raj Gupta

बिलकुल नहीं ये आस्था का सवाल है , सवी भारतीय का ये कर्तब्य है की वो मेजोरिटी का स्वागत करे आओर मंदिर बनाने में मदद करे. इससे सभी का कल्याण होगा आवर भाईचारा उज्जवल बना रहेगा , शांति का बहार होगा . सभी लोग मिलजुल कर कवाली सुनेंगे . अगर जरुरत पड़े तो दाऊद इब्राहिम से मदद लिया जाये हाउस अरेस्ट कर के , वो जरूर खुसी खुसी मदद करेगा धन आवर निगरानी से .
X REPORT ABUSE Date 12-12-17 (09:37 AM)

Damodar Tiwari

अयोध्या मामले को मंदिर की लड़ाई कहकर हम वास्तविकता से मुंह नहीं छिपा सकते। वास्तव में यह राष्ट्रीय सांस्कृतिक जागरण का संदेश है। भारत में थोपी गयी गलत धारणाओं के अवगुंठन से सच्चाई के अविष्कार का जन अभियान है। सोमनाथ के मंदिर के निर्माण के पीछे जो राष्ट्रवाद का आवेग था, अयोध्या मामला इसका अपवाद नहीं है। लेकिन सोमनाथ का भव्य मंदिर बनाना उसके पीछे सरदार वल्लभ भाई पटेल और तत्कालीन राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद तो सोमनाथ मंदिर के निर्माण के बाद सोमनाथ पहुंचे और उद्घाटन के भव्य समारोह में भाग लेकर गौरवान्वित हुए थे। अयोध्या में राममंदिर के पीछे किसी दल, संगठन विशेष की भूमिका समझना न्यायसंगत नहीं है। यह सांस्कृतिक नवजागरण अपने को पहचानने का एक सात्विक अभियान बना है, जिसकी निरंतरता हमेशा से दिखायी देती है। मामला आस्था बनाम कानून नहीं समझना चाहिए। बल्कि आस्था को कानून का समर्थन और सद्इच्छा के संबल की आवश्यकता है। महान भारत श्रेष्ठ भारत के नारे को सफल बनाने की परीक्षा की घड़ी है। न्यायालय के सहमति बनाने के आदेश पर असहमति दर्ज करने में साहस की आवश्यकता नहीं है। साहस इस बात का दिखाने का समय है कि राष्ट्रहित में अपनी सियासत, हार-जीत का जज्बा छोड़कर कौन आगे बढ़ता है और राष्ट्रीय भावनात्मक एकता का अमिट किरदार बनने का सौभाग्य प्राप्त करता है। साम्प्रदायिक संकीर्णता को त्याग कर श्री राम की जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण आबश्यक है । हमारे सिर पर उजला दाग न लगे यह अहम प्रश्न है। अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि है, इस पर कोई विवाद नहीं है और ये हिन्दू की आस्था का प्रतीक है। भारत को दुनिया ने विश्व गुरू रहने का गौरव दिया है। क्या हम हिन्दू एकता के हित में कुछ कर पाने में असहाय है ? मुस्लिम बहुल देशों में पाक मसजिदों को आवश्यकतानुसार शिफ्ट किया गया है। विवादित स्थल पर मसजिद बनाना वर्जित है, नमाज ऐसी पाक इबादत है जो कहीं पर भी अदा की जाये स्वीकार्य होती है। ऐसे में सियासी ढंग से रंग देना उचित नहीं है और इस बात से मुस्लिम भी सहमत है। कपिल सिब्बल और कांग्रेस के अन्य कई नेता हर समय बेतुकी बातें ही करते है, जो केवल गन्दी राजनीती से प्रेरित है । इसके अतिरिक्त कोई भी राजनीतिक पार्टी (बीजेपी और हिंदुत्व की सोच पर आधारित पार्टी) के अतिरिक्त इसका समर्थन कर नहीं सकता। अतः अब श्री राम मंदिर का निर्माण टालना किसी भी दृस्टि से सही नहीं है।
X REPORT ABUSE Date 09-12-17 (05:47 PM)

Damodar Tiwari

यदि मै मान भी लु की बीजेपी और आरएसएस का ये चुनावी जुमला है तो क्या कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी है जो इसका समर्थन कर सकता हो. दूसरी राजनीतिक पार्टी मे तो इसके समर्थन करने तक की हिम्मत नहीं है. वास्तव मे हमलोग ही राम मंदिर के बिरोधी है. आज तक देश मे कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं बन पाई, जो हिन्दुओ का खुल कर समर्थन कर सके, क्योकि उसे मुस्लिम का वोट बैंक चाहिए. आज तक कांग्रेस और जितनी भी दूसरी पार्टी है, उसने हिन्दू और हिंदुत्व पर कभी बात तक नहीं की. केवल मुद्दों को बनाते रहा और इसका फायदा दूसरे कॉम को मिलता रहा. आज यही कारन है की राम मंदिर का निर्माण नहीं हो प् रहा है. लोग अपने फायदे और नुकसान की बात केवल करते है और राजनीतिक पार्टी की दुहाई देकर अपने धर्म से दूर हो जाते है.
X REPORT ABUSE Date 08-12-17 (01:36 PM)

Rakesh Kumar Gupta

भाजपा/आर.एस.एस. ने चुनावी जुमलेबाजी, फ़िल्मी डायलॉग एवं हिन्दू-मुस्लिम के बीच घृणा फैलाने की राजनीति के अलावा देश, खासकर हिंदुओं, को कुछ नही दिया | इनकी निष्ठा न तो राम के प्रति है और न ही राम मंदिर के प्रति | इनकी निष्ठा सिर्फ और सिर्फ राम के नाम पर सत्ता हासिल करने एवं इसे बनाए रखने की ही रही है | हिन्दुत्व की स्थापना एवं राम मंदिर निर्माण की सबसे बड़ी बाधा भाजपा/आर.एस.एस. ही हैं लेकिन इन मुद्दों पर सबसे ज्यादा जुमलेबाजी इनही लोगो द्वारा की जा रही है | ये लोग कभी भी मंदिर नही बनने देंगे क्योकि भाजपा/आर.एस.एस. की कथनी और करनी मे बहुत अंतर है | इनकी सच्चाई जितनी जल्दी देशवासियों की समझ मे आ जाये उतना ही अच्छा होगा | राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की सुनवाई लोकसभा चुनाव तक टालने की मांग उचित नही है | इसकी शीघ्र निस्तारण देशवासियों के लिए अच्छा रहेगा लेकिन
X REPORT ABUSE Date 08-12-17 (12:12 PM)

Damodar Tiwari

अब मुझे बताए की क्या 6 करोड़ लोगों को पेसा देकर बुलाया गया था, या क्या वे खरीदे हुये थे? मंदिर का शिलान्यास – ९ नवम्बर, १९८९ को बिहार के वंचित वर्ग के एक बंधु श्री कामेश्वर चौपाल द्वारा शिलान्यास किया गया। उस समय श्री नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी। देखिये फिर से काँग्रेस के ही लोगो ने काम किया । कारसेवा का आह्वान – २४ जून, १९९० को संतों ने देवोत्थान एकादशी (३० अक्तूबर १९९०) से मंदिर निर्माण हेतु कारसेवा शुरू करने का आह्वान किया। राम ज्योति – अयोध्या में अरणि मंथन से एक ज्योति प्रज्ज्वलित की गई। यह “राम ज्योति” देश भर में प्रत्येक हिन्दू घर में पहुंची और सबने मिलकर इस ज्योति से दीपावली मनाई। हिन्दुत्व की विजय – ३० अक्तूबर १९९० को हजारों रामभक्तों ने मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा खड़ी की गईं अनेक बाधाओं को पार कर अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया। कारसेवकों का बलिदान – २ नवम्बर, १९९० को मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिसमें कोलकाता के राम कोठारी और शरद कोठारी (दोनों भाई) सहित अनेक रामभक्तों ने अपने जीवन की आहुतियां दीं। इसीलिए इस मुलायम को मुल्ला मुलायम कहते है । ऐतिहासिक रैली – ४ अप्रैल, १९९१ को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई। इसी दिन कारसेवकों के हत्यारे, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस्तीफा दिया। रामपादुका पूजन – सितम्बर, १९९२ में भारत के गांव-गांव में श्री राम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और गीता जयंती (६ दिसंबर, १९९२) के दिन रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया। अपमान का प्रतीक ध्वस्त – लाखों राम भक्त ६ दिसम्बर को कारसेवा हेतु अयोध्या पहुंचे और राम जन्मस्थान पर बाबर के सेनापति द्वार बनाए गए अपमान के प्रतीक मस्जिदनुमा ढांचे को ध्वस्त कर दिया। मंदिर के अवशेष मिले – ध्वस्त ढांचे की दीवारों से ५ फुट लंबी और २.२५ फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं २० पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत “ओम नम: शिवाय” से होती है। १५वीं, १७वीं और १९वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर “दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि” को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं। अब आप बताए की गलत कौन है ? वर्तमान स्वरूप – कारसेवकों द्वारा तिरपाल की मदद से अस्थायी मंदिर का निर्माण किया गया। यह मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया जहां ध्वंस से पहले श्रीरामलला विराजमान थे। श्री पी.वी.नरसिंह राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन केन्द्र सरकार के एक अध्यादेश द्वारा श्रीरामलला की सुरक्षा के नाम पर लगभग ६७ एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई। यह अध्यादेश संसद ने ७ जनवरी, १९९३ को एक कानून के जरिए पारित किया था। फिर से काँग्रेस की जय हो ।। दर्शन-पूजन निविर्घ्न – भक्तों द्वारा श्रीरामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता श्री हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की। १ जनवरी, १९९३ को अनुमति दे दी गई। तब से दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है। अब बताए की मुस्लिम भाइयो को परेशानी क्या है ? राष्ट्रपति का प्रश्न – भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डा.शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा १४३(ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न “रेफर” किया। प्रश्न था, “क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी?” इस 1 प्रश्न ने ही पूरे मुकदमे का रुख मोड कर रख दिया, यहा यह बात देखिये की यह प्रश्न भी 1 काँग्रेस के ही कार्यकर्ता का था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा – सर्वोच्च न्यायालय ने करीब २० महीने सुनवाई की और २४ अक्तूबर, १९९४ को अपने निर्णय में कहा-इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष “रेफरेंस” का जवाब देगी। लखनऊ खण्डपीठ – तीन न्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम) की पूर्ण पीठ ने १९९५ में मामले की सुनवाई शुरू की। मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिक साक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया। भूगर्भीय सर्वेक्षण – अगस्त, २००२ में राष्ट्रपति के विशेष “रेफरेंस” का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर “ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे” का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रपट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, १९६१ में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया है। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रपट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया। खुदाई – २००३ में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रपट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में ४० प्रतिशत मुस्लिम होंगे। अब आप देखिये हिन्दुओ की दरया दिली की श्रमिक भी मुस्लिम रखे । मंदिर के साक्ष्य मिले – भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। यह खुदाई आंखें खोल देने वाली थी। कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित ५० जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पायी गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रपट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रपट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं। कानूनी प्रक्रिया पूरी – करीब ६० सालों (जिला न्यायालय में ४० साल और उच्च न्यायालय में २० साल) की सुनवाई के बाद इस मामले में न्यायालय की प्रक्रिया अब पूरी हो गई। राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को देखते हुए पुन: जनजागरण हेतु – ५ अप्रैल २०१० को हरिद्वार कुंभ मेला में संतों और धर्माचार्यों ने अपनी बैठक में श्री हनुमत शक्ति जागरण समिति के तत्वावधान में तुलसी जयंती (१६ अगस्त, २०१०) से अक्षय नवमी (१६ नवम्बर, २०१०) तक देश भर में हनुमान चालीसा पाठ करने की घोषणा की। प्रत्येक प्रखंड में देवोत्थान एकादशी (१७ नवम्बर, २०१०) से गीता जयंती (१६ दिसंबर, २०१०) तक श्री हनुमत शक्ति जागरण महायज्ञ संपन्न होंगे। ये सभी यज्ञ भारत में लगभग आठ हजार स्थानों पर आयोजित किए जाएंगे। इतने के बाद भी हमे सघर्ष करना पड़ा । ऐतिहासिक दिन – ३० सितम्बर, २०१० को अयोध्या आंदोलन
X REPORT ABUSE Date 06-12-17 (06:38 PM)

Damodar Tiwari

श्री राम हिन्दुओ के ईश्वर और मर्यादा पुरुसोत्तम हैं. अतः इस पर कोई भी सच्चे हुन्दुओं द्वारा कोई प्रश्न है ही नहीं. इसलिए जो श्री राम मंदिर के इतिहास के बारे मे नहीं जानते वे पहले इस लेख को पढ़े, जो की डॉ. सुवब्रमन्यम स्वामी द्वारा लिखा गया है. पहले हम मुस्लिम शाशक बाबर की बात करते है । मुस्लिम शासक बाबर 1527 में फरगना से आया था. उसने चित्तौरगढ़ के हिंदू राजा राणा संग्राम सिंह को फतेहपुर सिकरी में परास्त कर दिया. बाबर ने अपने युद्ध में तोपों और गोलों का इस्तेमाल किया. जीत के बाद बाबर ने इस क्षेत्र का प्रभार मीर बांकी को दे दिया. मीर बांकी ने उस क्षेत्र में मुस्लिम शासन लागू कर दिया. उसने आम नागरिकों को नियंत्रित करने के लिए आतंक का सहारा लिया. मीर बांकी 1528 में अयोध्या आया और मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया अब जरा अयोध्या के इतिहास और उससे जुड़े मुद्दो पर प्रकाश डालते है । अयोध्या की स्थापना – वैवस्वत मनु महाराज द्वारा सरयू तट पर अयोध्या की स्थापना की गई। श्रीराम मंदिर – श्रीरामजन्मभूमि पर स्थित मंदिर का जीर्णोद्धार कराते हुए २१०० साल पहले सम्राट शकारि विक्रमादित्य द्वारा काले रंग के कसौटी पत्थर वाले ८४ स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया गया। मंदिर का ध्वंस – मीर बाकी मुस्लिम आक्रांता बाबर का सेनापति था, जिसने १५२८ ईस्वी में भगवान श्रीराम का यह विशाल मंदिर ध्वस्त किया। पहला १५ दिवसीय संघर्ष – इस्लामी आक्रमणकारियों से मंदिर को बचाने के लिए रामभक्तों ने १५ दिन तक लगातार संघर्ष किया, जिसके कारण आक्रांता मंदिर पर चढ़ाई न कर सके और अंत में मंदिर को तोपों से उड़ा दिया। इस संघर्ष में १,७६,००० रामभक्तों ने मंदिर रक्षा हेतु अपने जीवन की आहुति दी। कृपया मुझे बताए की उपरोक्त संख्या ज्यादा है या 1992 मरे हुये लोगो की , आखिर हमारा दोष क्या था की हमे करीब 2 लाख लोगों की जान देनी पड़ी, और ऊपर से हम पर ही आरोप लगाया गया ? ढांचे का निर्माण – ध्वस्त मंदिर के स्थान पर मंदिर के ही टूटे स्तंभों और अन्य सामग्री से आक्रांताओं ने मस्जिद जैसा एक ढांचा जबरन वहां खड़ा किया, लेकिन वे अजान के लिए मीनारें और वजू के लिए स्थान कभी नहीं बना सके। क्यू की उनकी औकात नही थी, की हमारे जैसा निर्माण कर सके, हमने तो पूरा मंदिर बना दिया उनसे तो केवल उस पर चुना लगाना था, वो भी नही हुआ । इसी बात से यह बात भी साबित होती है की ताज महल क्या है और किसने बनवाया होगा। संघर्ष – १५२८ से १९४९ ईस्वी तक के कालखंड में श्रीरामजन्मभूमि स्थल पर मंदिर निर्माण हेतु ७६ संघर्ष/युद्ध हुए। इस पवित्र स्थल हेतु श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज, महारानी राज कुंवर तथा अन्य कई विभूतियों ने भी संघर्ष किया। रामलला प्रकट हुए – २२ दिसंबर, १९४९ की मध्यरात्रि में जन्मभूमि पर रामलला प्रकट हुए। वह स्थान ढांचे के बीच वाले गुम्बद के नीचे था। उस समय भारत के प्रधानमंत्री थे जवाहरलाल नेहरू, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे पंडित गोविंद वल्लभ पंत और केरल के श्री के.के.नैय्यर फैजाबाद के जिलाधिकारी थे। मंदिर पर ताला – कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट ने ढांचे को आपराधिक दंड संहिता की धारा १४५ के तहत रखते हुए प्रिय दत्त राम को रिसीवर नियुक्त किया। सिटी मजिस्ट्रेट ने मंदिर के द्वार पर ताले लगा दिए, लेकिन एक पुजारी को दिन में दो बार ढांचे के अंदर जाकर दैनिक पूजा और अन्य अनुष्ठान संपन्न करने की अनुमति दी। श्रद्धालुओं को तालाबंद द्वार तक जाकर दर्शन की अनुमति थी। ताला लगे दरवाजों के सामने स्थानीय श्रद्धालुओं और संतों ने “श्रीराम जय राम जय जय राम” का अखंड संकीर्तन आरंभ कर दिया। सबसे मुख्य तथ्य “मंदिर बनाने का संकल्प – पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता श्री दाऊ दयाल खन्ना ने मार्च, १९८३ में मुजफ्फरनगर में संपन्न एक हिन्दू सम्मेलन में अयोध्या, मथुरा और काशी के स्थलों को फिर से अपने अधिकार में लेने हेतु हिन्दू समाज का प्रखर आह्वान किया। दो बार देश के अंतरिम प्रधानमंत्री रहे श्री गुलजारी लाल नंदा मंच पर उपस्थित थे।” अब आप बताए की काँग्रेस क्यू अपनी ही प्रतिज्ञा पर अमल नही करती ? पहली धर्म संसद – अप्रैल, १९८४ में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा विज्ञान भवन (नई दिल्ली) में आयोजित पहली धर्म संसद ने जन्मभूमि के द्वार से ताला खुलवाने हेतु जनजागरण यात्राएं करने का प्रस्ताव पारित किया। राम जानकी रथ यात्रा – विश्व हिन्दू परिषद् ने अक्तूबर, १९८४ में जनजागरण हेतु सीतामढ़ी से दिल्ली तक राम-जानकी रथ यात्रा शुरू की। लेकिन श्रीमती इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के चलते एक साल के लिए यात्राएं रोकनी पड़ी थीं। अक्तूबर, १९८५ में रथ यात्राएं पुन: प्रारंभ हुईं। अब मुझे बताए की क्या कारण थे की इन्दिरा गांधी की ह्त्या के कारण आंदोलन रोकना पड़ा ? 1 और मुख्य तथ्य “ताला खुला – इन रथ यात्राऔ से हिन्दू समाज में ऐसा प्रबल उत्साह जगा कि फैजाबाद के जिला दंडाधिकारी ने १ फरवरी, १९८६ को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के द्वार पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे श्री वीर बहादुर सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे श्री राजीव गांधी।” श्रीराम मंदिर का प्रारूप – गुजरात के सुप्रसिद्ध मंदिर शिल्पकार श्री चंद्रकांत भाई सोमपुरा द्वारा प्रस्तावित मंदिर का रेखाचित्र तैयार किया गया। श्री चंद्रकांत के दादा पद्मश्री पी.ओ.सोमपुरा ने वर्तमान सोमनाथ मंदिर का प्रारूप भी बनाया था। रामशिला पूजन – जनवरी, १९८९ में प्रयागराज में कुंभ मेले के पवित्र अवसर पर त्रिवेणी के किनारे विश्व हिन्दू परिषद् ने धर्म संसद का आयोजन किया। इसमें पूज्य देवरहा बाबा की उपस्थिति में तय किया गया कि देश के हर मंदिर- हर गांव में रामशिला पूजन कार्यक्रम आयोजित किया जाए। पहली शिला का पूजन श्री बद्रीनाथ धाम में किया गया। देश और विदेश से ऐसी २,७५,००० रामशिलाएं अक्तूबर, १९८९ के अंत तक अयोध्या पहुंच गईं। इस कार्यक्रम में ६ करोड़ लोगों ने भाग लिया।
X REPORT ABUSE Date 06-12-17 (06:36 PM)