यह एक बचकानी बात है. कल को दुनिया में समलैंगिक रिश्ते बढ़ेंगे तो ऐसे बुद्धिजीवी कहेंगे की विवाह नहीं करना चाहिए लिव-इन रिश्ते मिएँ ही रहना चाहिए तो क्या यह तर्क भी माना जाएगा.. हिंदी भाषा में कई शब्द ऐसे होते हैं जिन्हें अंग्रेजी में लिखना भ्रमित हो सकता है जैसे : कल या काल, काला या कला, क या च, ष, श, आदि.. यह ऐसा प्रतीत होता है कि ख़ुद चेतन भगत को हिन्दी नही आती मगर हिन्दी का मोह उन्हें दुविधा में दल रहा है कि वो देवनागरी सीखे या रोमन में हिन्दी लिखे...
यह लेखक का (चेतन भगत) का अपना विचार हो सकता है...इसे अपनाने या लादे जाने कि आवश्यकता नहीं होनी चाहिए. एक समृद्ध भाषा को इस तरह अपमानित करने से पहले चेतन को यह सोचना चाहिए था कि क्या अंग्रेजी को हिन्दी में लिख सकते हैं ? किसी भाषा कि लिपि बदलना उस भाषा के मूल से खिलवाड़ अथवा उसकी पहचान मितना है.. हिन्दी को खत्म करने कि साज़िश है.. आज आप लिपि बदलेंगे कल धीरे-धीरे भाषा ही बदल देंगे.