विचारधाराएं अप्रासंगिक हो गई है। कई कांग्रेसी नेता अपनी विचारधारा छोडकर विरोधी विचारधारा वाली भाजपा में शामिल हो गए हैं। कई तथाकथित समाजवादी भाजपा में आ रहे हैं और भाजपा नेता उनकी अगवानी कर रहे हैं। ये विचारधारा से प्रभावित होकर नहीं आ रहे हैं, ये सत्ता-सुख भोगने की आकांक्षा में शामिल हो रहे हैं और भाजपा अपनी विचारधारा को तिलांजलि देकर व्यक्ति-केन्द्रित महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इस मौकापरस्ती को ही आगे बढा रही है। जिस चाल-चरित्र और चेहरे की संघ या भाजपा दुहाई देती रही है, जिस ‘पार्टी विद डिफ्रेंस’ और राष्ट्रीय चरित्र की बात संघ व भाजपा करते रहे हैं, जिन मूल्यों की राजनीति की बात भाजपाई करते रहे हैं, क्या वे मूल्य आज भाजपा के चरित्र में कहीं दिखाई देते हैं?
जिन नरेन्द्रभाई मोदी पर मां-बाप समान पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को भरोसा नहीं, उन पर देश की जनता क्यों भरोसा करे? जो व्यक्ति अपने मां-बाप समान नेताओं का तिरस्कार करे, उनके साथ समरसता का व्यवहार कर उन्हें सम्मान पूर्वक अपने साथ न रख सके, वह देश की जनता के लिए सम्मान का पात्र कैसे हो सकता है?
देश में नरेन्द्रभाई मोदी की सरकार बन