हमारी फिल्मी दुनिया में फ़िल्म के साथ गीतो का अपना ही रुतबा हुआ करता था फ़िल्म के गीत कहानी को आगे बदाने में एक सहायक का काम करते थे, पात्र अपनी बात गीत के जरिये बड़े ही सटीक तरीके से कह दिया करता था,उन दिनों फिल्मी गीतो के रचियता सेलेंद्र, साहिर,मजरूह,कैफी आजमी,इंदीवर,शकील बदायुनि,जैसे अपनी विधा के धुरंधरों का युग था,दूसरी बात उस समय के गीतो को अमर बनाने में संगीतकारों का भी अहम् रोल हुआ करता था, अब के गीतो में वो माधुर्य नही रहा,अब का संगीत सुनना पड़े तो वो एक सजा से कं नही जान पड़ता,गीतो कि लोकप्रियता भी कुछ दिनों तक सिमट कर रह गयी हे