Those who have gone through osho's litrature finds him ( the Great OSHO) a great guide, atrue-friend, guru and philospher. Before critisising one should go through at least a few books of OSHO I am sure one should praise only Osho after that.
ओशो की निंदा करने की जरूरत नहीं बल्कि उन्हें समझाने की जरूरत है, उनकी बतो पर प्रयोग करने, प्रचलित असत्य विचारों की असलियत को समझकर उनसे मुक्त होने की जरूरत है. सत्यं को समझाने के लिए ओशो बहुत बड़ा सहारा हैं लेकिन केवल उन्ही के लिए जिनमें साहस है सत्यं को स्वीकार करने का.
ओशो,भारत के परम् संत थे, मै विस्व के बड़े बड़े संतो का संग किया हूँ, ओशो जैसा गुण कही नही पाया, ये ब्रम्भ ज्ञानी थे,..... जो ओशो कि निंदा करते है..वो महमुर्ख है- चाहे मंत्री हो या आएएस हो या प्रोफेसर हो..
ओशो को जितना भी समाझा जाय उतना ही कम है
ओशो एक जीती जागती दुनिया हैं जो सच है और जीवन में सच के सिवा कुछ नही जो लोग न तो ओशो को पढ़ते न ही ठीक से समझते हैं वो ही आलोचना करते हैं और बुराई करते हैं
ओशो इस संसार के अब तक के सबसे प्रबुध व्यक्ति मालूम पड़ते हैं |
Yes or No... This depends upon the individual. The concern is
'SELF- AWARENESS'. "OSHO CHETNA ka asitav etna virat hai ki usme sab kuch shant bhav se sama jata hai." Vandan.
नही, बिलकुल नही होनी चाहिए आलोचना.. ओशो एक "शक्ति" है "सच्चाई की" और "सच्चाई" पर अलोचना करने वाले या तो नादान होते है या मूर्ख. आलोचना सबसे पहले ख़ुद पर करनी चाहिए की हम सही है, या ग़लत, बाद में दूसरों पर..