दया याचिका अजमल कसाब जैसे आतंकवादियों के लिये नही होना चाहिए जो जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं. साथ ही आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त लोगों को भी ऐसी सुविधा का लाभ नही दिया जाना चाहिए. ऐसे अपराधों में शामिल लोगों को जल्द से जल्द फांसि दी जाना चाहिए ना कि दया याचिका के द्वारा अनावश्यक विलंब किया जाना चाहिए.
भारतीय न्याय प्रणाली में दया याचिका की व्यवस्था संविधान निर्माताओं की दूरदर्शी सोच की अभिव्यक्ति है, जो सर्वथा उचित एवं लोकतंत्र के उच्च आदर्शों के अनुरूप है | न्यायालय संसद द्वारा निर्मित कानूनी सीमाओं से बंधकर मौत की सज़ा देने के लिए बाध्य हो सकता है, लेकिन राष्ट्रपति को इस सीमा से मुक्ति देकर विवेक से फैसला लेने का अधिकार हमारे संविधान के प्रति देशवासियों की आस्था को और मज़बूत करता है |
देरी के लिए प्रसिद्ध भारतीय न्याय व्यवस्था में दया याचिका मुहावरे "कोढ में खाज" जैसी है. बडे और बहुलता वादी जनतंत्र में एक हद तक अधिनायक(ता) जरूरी है!! "जन गण मन अधिनायक जय हे......"
हर व्यक्ति से जाने या अनजाने में बड़ा या छोटा अपराध हो जाता हेउसके बाद उसको पता चलता हे कि इसकी सजा भी मिलेगी,इसलिए वह् दया की कामना करता हे,अतः यह देखना होगा की अपराध कैसा हे दया लायक हे या नहीं ,परन्तु आतंकवादियों के साथ दया क्ा रुख अपनाना ग़लत हे
दया याचिका का निपटारा एक समय सीमा में हो तो ही इसकी सार्थकता है. बेहतर तो ये होगा कि किसी भी अभियुक्त को मृत्युदंड देने से पहले ही राष्ट्रपति भवन की राय ले ली जाएँ. इससे समय की बचत होगी और अनावश्यक राजनीति से भी छुटकारा मिलेगा. वैसे भी राष्ट्रपति के पास कोई काम तो होता नहीं
दया याचिका का निपटारा एक समय सीमा में हो तो ही इसकी सार्थकता है. बेहतर तो ये होगा कि किसी भी अभियुक्त को मृत्युदंड देने से पहले ही राष्ट्रपति भवन की राय ले ली जाएँ. इससे समय की बचत होगी और अनावश्यक राजनीति से भी छुटकारा मिलेगा. वैसे भी राष्ट्रपति के पास कोई कम तो होता नहीं.
हर जगह स्पेस ठीक नही होता और ये तो ख़ुद प्रकुति का नियम है,प्रकुति के हिसाब से संसार के नियम है सूरज और जमीन का स्पेसिफिक अन्तर है प्रकुति ने यह नियम तोड़ा तो क्या होगा ये बता ने कि जरुरात नही हम कुछ नियम सक्त ही रखे तो प्रॉब्लम जड़ से खत्म हो जयेगि.धन्यवाद नि-3 दुसाने