गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By WD

क्या कहता है यीशु जन्म का संदेश

क्या कहता है यीशु जन्म का संदेश - The Birth of Jesus
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ऐसी मान्यता है कि यीशु के जन्म के अवसर पर स्वर्गदूतों ने 'सर्वोच्च गगन में परमेश्वर को महिमा और पृथ्वी पर उसके कृपापात्रों को शांति' यह संदेश कुछ चरवाहों को दिया था।

गत हजारों वर्ष से ख्रीस्त जयंती की मंगलमय बेला में करोड़ों कंठों से इस संदेश की प्रतिध्वनि गूंजती आ रही है। इस संदेश की सुंदरता इसमें है कि यीशु के जन्म के साथ उदित होने वाली नई विश्वव्यवस्था की झलक इसमें निहित है।

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पृथ्वी पर मानवों के शांतिपूर्ण जीवन में ईश्वर की स्वर्गीय महिमा प्रतिबिंबित है। मनुष्य में ईश्वर महिमान्वित होता है। यीशु ईश्वर और मनुष्य के बीच की सजीव कड़ी है। सच्ची शांति अच्छे मन का अनुभव है। ऐसी शांति तभी संभव है जबकि हृदय भय और मृत्यु से, दर्द और पीड़ा से मुक्त हो।

लेकिन हम एक भ्रष्ट और दमनकारी संसार में जीते हैं जहां भय राज करता है और शांति की जड़ कमजोर है। यह अस्वाभाविक भी नहीं है क्योंकि यहां सच्चे दिलवालों की संख्या निराशाजनक रूप से कम है।

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जहां धन और बल मनुष्य के भविष्य में नियंता हों, जहां ईमानदारी और नैतिकता को कमजोरी के लक्षण माना जाता हो, वहां शांति और सच्चाई का बना रहना असंभव है। आज संसार में जो शांति दिखाई पड़ती है, वह हृदय की सच्चाई से नहीं बल्कि हथियारों के समझौते से निकली है।

शायद यीशु की विश्वव्यस्था की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हर मानव किसी भी जाति-वर्ग-वर्ण भेद के बिना ईश्वर की संतान बन सकता है। ईश्वर का जो रूप यीशु ने लोगों को बताया वह वास्तव में मन को छूने वाला है। ईश्वर इतना उदार है कि वह भले और बुरे, दोनों पर अपना सूर्य उगाता तथा धर्मी और अधर्मी दोनों पर पानी बरसाता है।

ईश्वर सबको प्यार करता है, सबका ख्याल रखता है और पश्चातापी पापी को क्षमा करता है। मनुष्य को विधाता पर भरोसा रखना चाहिए। इस परम पिता की योग्य संतान बनने के लिए मनुष्य को दूसरों को प्रेम करना, दूसरों की सेवा करना तथा उनकी गलतियों को क्षमा करना है।

इस नई व्यवस्था की मूल आज्ञा बिना शर्त प्रेम है और इसका स्वर्णिम नियम है- 'दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।'