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Last Updated : मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022 (17:09 IST)

छठ पूजा की 7 खास बातें, जानिए क्यों करते हैं पूजा क्या है इसकी कथा

छठ पूजा की 7 खास बातें, जानिए क्यों करते हैं पूजा क्या है इसकी कथा - Chhath vrat puja
Chhath Puja 2022 : 30 अक्टूबर 2022 को छठ पूजा का पर्व मनाया जाएगा। खासकर यह पर्व उत्तर भारतीयों में ज्यादा प्रचलित है। इस पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से होती है और सप्तमी पर इसका समापन होता है। हर घर में इस पर्व को मनाया जाता है। आओ जानते हैं इस पर की 7 खास बातें।
 
 
1. किसकी होती है पूजा : छठ पूजा में सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा का प्रचलन और उन्हें अर्घ्य देने का विधान है। 
 
2. सूर्यदेव : शस्त्रों के अनुसार एक अन्य सूर्यदेव हैं जिन्हें प्रत्यक्ष सूर्यदेव से जोड़कर भी देखा जाता है। सूर्य देवता के पिता का नाम महर्षि कश्यप व माता का नाम अदिति है। इनकी पत्नी का नाम संज्ञा है जो विश्वकर्मा की पुत्री है। संज्ञा से यम नामक पुत्र और यमुना नामक पुत्री तथा इनकी दूसरी पत्नी छाया से इनको एक महान प्रतापी पुत्र हुए जिनका नाम शनि है।
 
3. छठ मैया : छठ पूजा में सूर्यदेव के साथ ही छठ मैया की पूजा भी होती है, जिन्हें षष्ठी देवी भी कहते हैं। माता षष्ठी देवी को भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री माना गया है। इन्हें ही मां कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि के दिन होती है। षष्ठी देवी मां को ही पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहते हैं। छठी माता की पूजा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। 
 
4. कितने दिन मनाते हैं छठ पूजा : छठ पूजा व व्रत का प्रारंभ हिन्दू माह कार्तिक माह के शुक्ल की चतुर्थी तिथि से होता है और षष्ठी तिथि को कठिन व्रत रखा जाता है तथा दूसरे दिन सप्तमी को इसका पारण होता है।
5. छठ पूजा में क्या करते हैं : पहले दिन नहाय खाये अर्थात साफ-सफाई और शुद्ध शाकाहारी भोजन सेवन का पालन किया जाता है, दूसरे दिन खरना अर्थात पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को गुड़ की खीर, घी लगी हुई रोटी और फलों का सेवन करते हैं, इसके बाद संध्या षष्ठी को अर्घ्य अर्थात संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और विधिवत पूजन किया जाता है तब कई तरह के वस्तुएं चढ़ाई जाती हैं। उसी दौरान प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है और अंत में दूसरे अर्थात अंति दिन उषा अर्घ्य अर्थात सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंचकर उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। पूजा के बाद व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत को पूरा करती हैं, जिसे पारण या परना कहा जाता है।
 
6. क्यों करते हैं छठ पूजा : छठ पूजा का व्रत महिलाएं अपनी संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति का वर मांगाने के लिए करती हैं। मान्यता अनुसार इस दिन निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं छठ मैया। 
 
7. छठ कथा : पौराणिक कथा अनुसार मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप ने यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया परंतु वह शिशु मृत पैदा हुआ। तभी माता षष्ठी प्रकट हुई और उन्होंने अपना परिचय देते हुए मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। तभी से पूजा का प्रचलन प्रारंभ हुआ।