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Written By संदीपसिंह सिसोदिया

दीपावली मनेगी तारों के संग

मुठ्ठी में है चाँद...

दीपावली मनेगी तारों के संग -
विश्व की कई सभ्यताओं द्वारा पूजे जाने वाले चंद्रदेव के पैर पखारने की तैयारी भारत ने काफी पहले से शुरू कर दी थी। 22 अक्टूबर 2008 का दिन न केवल इसरो के लिए मील का पत्थर साबित होगा, बल्कि भारतीय इतिहास में भी सुनहरे हर्फों में लिखा जाएगा। इस दिन सुबह 6.22 मिनट पर भारत की 100 करोड़ से ज्यादा उम्मीदों को सफल बनाने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों की वर्षों की अथक मेहनत और लम्बे इंतजार के बाद भारत के पहले मानवरहित अभियान 1380 किलोग्राम भार क्षमता वाले चंद्रयान-1 को लेकर ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी-11 श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से चाँद की ओर चल पड़ा।

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आसमान में छाए बादलों को चीरकर तिरंगे से सजे इस यान को चाँद की और कूच करते देख हरेक भारतीय का माथा ऊँचा हो गया और सीना गर्व से चौड़ा हो गया। वहाँ मौजूद एक वैज्ञानिक से जब पूछा गया कि 'इस यान को चाँद की ओर जाता देख आपको क्या महसूस हुआ' तो उनका जवाब था 'आसमान में बादलों और आँखों में आँसुओं की वजह से मैं सिर्फ रॉकेट से निकली चमकीली लकीर को ही देख पाया, पर उस चमक को देख मैं भारत के उज्जवल भविष्य की झलक देख सकता हूँ।'

इस कार्यक्रम की एक और खास बात यह है कि इसमें भारत का ब्रेन माने जाने वाले संस्थान 'आईआईटी' का कोई भी विद्यार्थी शामिल नहीं है और इस कार्यक्रम से जुड़े लोग बताते हैं की आईआईटी डिग्रीधारक सिर्फ लाखों-करोड़ों के पैकेज में दिलचस्पी रखते हैं, मगर नई चुनौतियाँ या जोखिम नहीं लेना चाहते। इसरो अपेक्षाकृत कम पैसा देता है, मगर स्वदेशी तकनीक से यान चाँद पर भेजने का अवसर जरूर प्रदान करता है, जिससे पूरा देश आप पर गर्व करे। यह उपलब्धि सिर्फ जोखिम उठाने वालों को ही मिल सकती है।

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हालाँकि अभी इस अभियान की सफलता उसके सुरक्षित चाँद पर उतरने पर टिकी है, धरती से चाँद तक के 4 लाख 80 हजार किमी के सफर में चंद्रयान को कई मुश्किलों से पार पाना पड़ेगा और इसरो 8 नवम्बर को इसे चाँद पर उतारने की तैयारी करेगा। इस अभियान का मुख्य मिशन चंद्रमा का नक्शा बनाना तथा उसके ध्रुवीय प्रदेशों में खनिज और रेडियोधर्मी तत्वों का पता लगाना है। इसके माध्यम से चन्द्रमा की मिट्टी का अध्ययन किया जा सकेगा। फिलहाल चंद्रयान-1 में सिर्फ उपकरण भेजे जा रहे हैं। इसके अलावा चंद्रयान-एक 29 किलो का मून इंपैक्ट प्रोब चाँद की सतह पर छोड़ेगा। इससे अगले मिशन में उतरने की जगह तय करने में सहायता मिलेगी। यह प्रोब पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की पहल पर शामिल किया गया है। इसके एक तरफ भारतीय तिरंगा और दूसरी तरफ संस्कृत का एक श्लोक लिखा है।

कुछ लोग इस अभियान के बाद नासा से इसरो की तुलना भी करने लगे हैं पर इस बारे में यह जान लेना उचित होगा की इसरो की स्थापना भारत सरकार ने 1972 में की थी और इसका मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष शोध के लिए नई तकनीक का विकास करना है। इस संस्थान के दो मुख्य अंतरिक्ष स्टेशन हैं, जिन्हें इनसेट और आईआरएस के नाम से जाना जाता है।

जहाँ नासा ने शीतयुद्ध की होड़ के चलते अमेरीकी इनसान को सबसे पहले चाँद पर पहुँचाया था, वहीं इसरो ने सबसे पहले भारत जैसे कृषि-प्रधान देश के गरीब किसानों के लिए भू-जल ढूँढ़ने में मदद की थी, इसी तरह मौसम, जलवायु, खनिज उत्खन्न और मछुआरों द्वारा समुद्र में मछलियाँ पकड़ने में मदद के लिए विभिन्न उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे। यहाँ इस बात का उल्लेख करने का तात्पर्य यह है इसरो द्वारा पहली प्राथमिकता भारत की जनता को दी गई तथा वर्तमान में पीएसएलवी और जीएसएलवी नामक दो इसरो के प्रक्षेपण यान हैं, जो आईआरएस और आईआरएस के उपग्रह प्रक्षेपित करते हैं। फिलहाल चंद्रयान मनुष्य अथवा किसी भी प्रकार के जीवन को साथ नहीं ले जा सकता, क्योंकि इस पर अभी भी कम्पन तथा ऊष्मारोधक तकनीकों का परीक्षण किया जा रहा है।
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वहीं नासा की शुरुआत रूस द्वारा पहली बार मानव निर्मित यान अंतरिक्ष में भेजने की प्रतिक्रिया स्वरूप हुई। 'स्पेस-वॉर' की अवधारणा के कारण अमेरिका ने अपनी पूरी ताकत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम पर लगा दी फलस्वरूप 1958 में अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की स्थापना की घोषणा की। वर्तमान में नासा अपनी स्थापना के 50 वर्ष पूरे कर चुका है।

नासा के 'प्रोजेक्ट मरक्यूरी' ने मनुष्य के अंतरिक्ष में जाने पर मुहर लगा दी और 'अपोलो मिशन' सबसे महत्वपूर्ण मिशन था जिसके अंतर्गत मनुष्य को चाँद पर सही-सलामत भेजकर वापस लाना भी था। दुर्भाग्यवश 1967 में अपोलो-1 के दौरान एक अंतरिक्ष यात्री की मौत हो गई और यह मिशन असफल रहा। इसके बाद अपोलो-8 और अपोलो-10 को बिना मनुष्य के चाँद पर भेजा गया ताकि वे तस्वीरें भेज सकें और चीजों को समझने में मदद मिल सके। इस घटना से सबक लेते हुए अपोलो-8 और अपोलो-10 को चाँद पर मानवरहित भेजा गया और जरूरी जानकारी हासिल कर 20 जुलाई 1969 अपोलो-11 ने पहली बार मनुष्य को चाँद पर पहुँचाकर मानव जाति के लिए एक लम्बी छलाँग लगाई।

दूरगामी परिणाम- इस अभियान के बहुत से दूरगामी तथा दीर्घकालीन फायदे मिलने की उम्मीद है-

*भविष्य का ईंधन तथा फ्यूजन रिएक्टरों के लिए सबसे सुविधाजनक और फायदेमंद ईंधन हीलियम-3 चंद्रमा की सतह पर भरपूर मात्रा होने की उम्मीद है।

*चाँद पर चूँकि क्रेटरों की भरमार है और प्लेटिनम और निकिल जैसी महँगी धातु उल्कापिंडों के जरिए आती हैं और क्रेटरों में ही पाई जाती हैं

*इस अभियान की सफलता के बाद स्वदेशी तथा विदेशी अंतरिक्ष एजेंसियों के पेलोड या साजो-समान इसरो अंतरिक्ष तक या चाँद तक ले जाएगा। इनमें अमेरिकी, रूसी, इसराइल और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) भी शामिल हैं। इसके बाद रिमोट सेंसिंग इमेजिंग के कुल एक-तिहाई मार्केट पर भारत का कब्जा होने की उम्मीद है।

*इसका सामरिक महत्व भी है इसके बाद भारत चाँद पर बस्ती बसाने की दिशा में अपने प्रयासों को आगे बढ़ा सकेगा। साथ ही सैन्य परीक्षणों के लिए भी यह अभियान एक बड़ा कदम साबित होगा।

बढ़ते कदम-
चंद्रयान-2 : भारत चंद्रयान-2 पर काम शुरु कर चुका है। इसे 2011 में भेजा जाएगा। इस प्रोजेक्ट पर रूस भी भारत का सहयोग कर रहा है। इसमें स्पेसक्राफ्ट के अलावा एक मून रोवर भी होगा। यह चंद्रमा की सतह पर उतरकर वहाँ से मिट्टी और चट्टान के सैंपल लेगा। इसके बाद उसकी जाँच कर डेटा स्पेसक्राफ्ट को भेजेगा।

चाँद पर भारतीय मानव : भारत ने मानव वाला चंद्र अभियान का भी ऐलान किया है। इसरो की 2014 तक अंतरिक्ष यात्री भेजने और 2020 तक चंद्रमा पर इंसान भेजने की योजना है।