गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By WD

सफलता का शॉटकर्ट नहीं

सफलता का शॉटकर्ट नहीं - सफलता का शॉटकर्ट नहीं
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एक रास्ता जो अनेक गलियों और पगडंडियों से मिलकर बना होता है। ऐसे अनेक रास्ते जो इंसान को अपने गंतव्य स्थलों पर ले जाते हैं। इन रास्तों पर होती है सिर्फ भीड़ जो इंसानों, वाहनों और अन्य पशुओं की होती है।

लेकिन इस भीड़ का हर इंसान एक-दूसरे से अलग है और प्रत्येक का गंतव्य स्थल भी अलग है। कोई नौकरी के लिए कार्यालय, तो कोई अन्य किसी कार्य से इन रास्तों से गुजरता है।

देखा जाए तो हर रास्ता इतना सुगम नहीं होता सिर्फ सीमेंट व कांक्रीट के रास्तों को इंसान सुगम बनाने की कोशिश करता है जिससे उसे कोई कठिनाई नहीं आए लेकिन इंसान की जिंदगी भी तो एक लंबे रास्ते के समान है, जो हर समय सुगम नहीं होती। अनेक पगडंडियाँ यहीं हैं जिसमें कठिनाइयाँ हर डगर पर आती हैं और इन कठिनाइयों को पार करने के लिए आवश्यकता होती है धैर्य की।

प्रत्येक इंसान का उद्देश्य अलग होता है और जीवन जीने का ढंग भी अलग होता है। कुछ व्यक्ति जीवन में आने वाले दुःखों को हँसते-हँसते झेल जाते हैं, लेकिन कुछ व्यक्तियों के लिए सुगम जीवन भी दुर्गम के समान होता है।

जीवन की हर डगर को सुगम या दुर्गम बनाने का काम इंसान स्वयं ही करता है। उसी प्रकार स्वयं की प्रगति या अपकर्ष भी इंसान स्वयं करता है। यह उसके स्वयं के विचारों एवं भावनाओं पर निर्भर करता है कि उसे अपना रास्ता, अपने उद्देश्य का निर्धारण स्वयं करना है। उसकी सकारात्मक सोच, जीवन को जीने का ढंग सभी सफलता प्राप्ति में सहायक होते हैं।
जब व्यक्ति जीवनरूपी नैया को पार लगाने के लिए किसी लक्ष्य को ठान लेता है तभी वह प्रत्यनशील होता है उसे हासिल करने के लिए। जब उसके पास कोई उद्देश्य नहीं है तो वह प्रयत्नशील भी नहीं रहेगा न ही कर्र्मशील रहेगा। बिना कर्म के जीवन का अंतिम ठौर निश्चित नहीं किया जा सकता।

एक बार अकबर ने तानसेन से कहा कि तुम बहुत अच्छा गाते हो, तुम्हारे जैसा गायक इस संसार में दूसरा नहीं है। इस पर तानसेन बोले- मेरे गुरु हरिदास मुझसे भी अच्छे गाते हैं। अकबर ने गुरु हरिदासजी का गायन सुनने की इच्छा जाहिर की। तानसेन ने बताया कि गुरुजी कहींजाते नहीं हैं, वे संगीत की साधना अपनी कुटिया में ही ब्रह्म मुहूर्त में करते हैं। हमें वहीं जाकर उनको सुनना पड़ेगा। अकबर तैयार हो गए।

ब्रह्म मुहूर्त में तानसेन व अकबर हरिदास की कुटिया के पास पहुँचे। गुरु हरिदास ने गीत प्रारंभ किया। उन गीतों को सुनकर अकबर तल्लीन हो गए। वे बोले- तानसेन तुम भी तो हरिदास के शिष्य हो, पर तुम इतना अच्छा क्यों नहीं गा पाते हो। तब तानसेन ने उत्तर दिया- मैं आपके लिए गाता हूँ और मेरे गुरु परमात्मा के लिए गाते हैं। संगीत उनके लिए पूजा है। हरिदासजी के लिए उनका उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति था। उनका उद्देश्य स्पष्ट था इसीलिए वे संगीतरूपी मार्ग को प्रशस्त कर परमात्मा में लीन हो गए।

अतः इंसान को सफलता मिलने तक अपने लक्ष्य से नहीं हटना चाहिए। अनेक बार सफलता नहीं मिलती तो व्यक्ति निराश हो जाता है, लेकिन इस निराशा का यह मतलब तो नहीं कि हम अपने रास्ते से आगे बढ़ना ही छोड़ दें। मंजिल को पाने के लिए तो पहले छोटी-छोटी पगडंडियों से होकर विशाल रास्ता प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि जिंदगी की सफलतम पायदान किसी शॉर्टकट से न गुजरते हुए यथार्थ के लंबे रास्तों से होकर जाती है।