शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. करियर
  3. गुरु-मंत्र
Written By मनीष शर्मा

...तभी बढ़ोगे शान से नहीं तो जाओगे शान से

...तभी बढ़ोगे शान से नहीं तो जाओगे शान से -
ND
अमेरिका के न्यू जर्सी शहर के वेस्ट ऑरेंज में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक थॉमस एडीसन की फैक्टरी में सन्‌ 1914 की एक सर्द रात को अचानक एक जोर का धमाका हुआ और फैक्टरी धू-धू कर जलने लगी। एडीसन का बेटा चार्ल्स घबराता हुआ अपने पिता को ढूँढने लगा। अंततः उसने देखा कि एडीसन दूर से खड़े होकर आग में भस्म होती अपनी मेहनत को देख रहे हैं। उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी।

आग की लपटों से उनका चेहरा दमक रहा था और तेज हवा में उनके सफेद बाल लहरा रहे थे। यह सब देखकर चार्ल्स का दिल बैठा जा रहा था। वह अपने पिता के दर्द को समझ सकता था। आज 67 साल की उम्र में उनकी सारी मेहनत, सारा काम आग के हवाले हो चुका था। इस बीच चार्ल्स को देखकर एडीसन जोर से चिल्लाए- चार्ल्स! तुम्हारी माँ कहाँ है? जल्दी उन्हें ढूँढो! यहाँ लेकर आओ!

वो अपनी जिंदगी में ऐसा अद्भुत नजारा नहीं देख पाएगी। अगली सुबह एडीसन ने राख के ढेर में बदल चुकी अपनी फैक्टरी को देखकर हुए नुकसान के बारे में कहा कि इस विपत्ति में भी हमारा भला ही छिपा है। आविष्कारों के दौरान हमसे हुई हमारी तमाम गलतियाँ जलकर स्वाहा हो गईं। हे ईश्वर! तेरा लाख-लाख धन्यवाद। अब हम नए सिरे से शुरू कर सकते हैं।
  11 फरवरी को थॉमस एल्वा एडीसन की जन्मतिथि है। उनके जीवन से प्रेरणा लें और आगे बढ़ें जिन्होंने असफलताओं के आगे कभी झुकना नहीं सीखा। तभी तो दस हजार बार असफल होने के बाद आखिर उन्होंने बल्ब का अविष्कार कर दुनिया को रोशनी का जरिया दिया।      


दोस्तो, घोर विपत्ति में ऐसी दृष्टि रखकर वही सोच सकता है, जिसे अपने ऊपर पूरा विश्वास हो, जिसमें फिर से कुछ करने दिखाने की क्षमता हो, माद्दा हो। और एडीसन में तो ये भावना कूट-कूटकर भरी थी। उन्हीं के शब्दों में 'मैं असफलताओं से कभी हताश नहीं होता क्योंकि हर असफल प्रयास एक नया रास्ता सुझा देता है और हमेशा किसी कार्य को करने का पहले से बेहतर तरीका होता ही है।'

इसी के चलते वे कभी हार नहीं मानते थे, क्योंकि उनका मानना था कि क्या पता जब आप हार मानने वाले हों, उसके अगले कदम में ही सफलता छिपी हो। एडीसन के व्यक्तित्व के इस गुण को हम सभी को आत्मसात करना चाहिए, अपनाना चाहिए। चाहे कितनी ही असफलताएँ मिलें, चाहे कितने ही संकट आएँ, हार मत मानो। फिर तो वह कहते हैं न कि हिम्मते मर्दां, मददे खुदा।

जिसमें हिम्मत है, जज्बा है, वही अपने सपनों कोपूरा कर सकता है वर्ना जरा-जरा सी असफलताओं में हिम्मत छोड़ने वाले तो फिर पीछे ही छूट जाते हैं। इसलिए संकट से घबराओ मत, तभी आप उसे कट कर सकते हैं, काट सकते हैं वर्ना वो तो आता ही आपको कट करने या काटने के लिए।

यदि आप भी संकटग्रस्त हैं यानी किसी विपत्ति से घिरे हैं, गुजर रहे हैं तो उसके आगे मत्था टेकने की बजाय उसका हत्था पकड़ लें यानी उस संकट, मुसीबत, विपत्ति की जड़ को पहचान लें। इसके लिए आपको उसके बारे में गहन चिंतन-मनन करना पड़ेगा। आपको यह जानना ही होगा, जानना ही चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ? आपसे कौनसी चूक, गलती हो गई। कहाँ कमी रह गई।

फिर मसला व्यावसायिक असफलता से जुड़ा हो या रिश्तों में खटास, तलाक जैसी व्यक्तिगत समस्याओं से। यदि आप इनकी जड़ को तलाशेंगे तो वह आपको जरूर मिलेगी और कारण को समझकर, जानकर आप उसे दूर करने की कोशिश कर सकते हैं। यदि आप से ब्लंडर हुआ है तो आप उससे सीख ले सकते हैं ताकि उसे भविष्य में न दोहराएँ। वैसे भी कोई संकट आदमी को कितना नुकसान पहुँचाता है या पहुँचा सकता है, यह तो उसकी सोच पर निर्भर करता है।

एडीसन जैसे लोग नुकसान में भी फायदा तलाश लेते हैं और शान से आगे बढ़ जाते हैं, फिर से जुट जाते हैं। जबकि कुछ लोग फायदे में भी नुकसान ढूँढते रह जाते हैं और परेशान होकर अपनी शान से चले जाते हैं। व्यक्तियों के बीच एटीट्यूड का यही फर्क उन्हें सफल या असफल बनाता है।

और अंत में, कल यानी 11 फरवरी को थॉमस एल्वा एडीसन की जन्मतिथि है। उनके जीवन से प्रेरणा लें और आगे बढ़ें जिन्होंने असफलताओं के आगे कभी झुकना नहीं सीखा। तभी तो दस हजार बार असफल होने के बाद आखिर उन्होंने बल्ब का अविष्कार कर दुनिया को रोशनीका जरिया दिया। और इसी जज्बे के चलते उन्होंने ऐसे हजारों आविष्कार अपने नाम किए। अरे भई, ये पेड़ की जड़ पकड़कर क्यों बैठे हो।