गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. करियर
  3. गुरु-मंत्र
Written By मनीष शर्मा

आर या पार नहीं, बीच का रास्ता दिलाता है अपार

आर या पार नहीं, बीच का रास्ता दिलाता है अपार -
एक बार बीरबल दरबार में देर से पहुँचे। अकबर ने इसका कारण पूछा तो वे बोले-हुजूर, बच्चे की जिद पूरी करने में लगा था, इसलिए देर हो गई। अकबर- क्या तुम बच्चे को बहला-फुसलाकर जल्दी नहीं आ सकते थे?

बीरबल- जहाँपनाह, बच्चे जिद पकड़ लें, तो ब्रह्मा भी उन्हें मना नहीं सकते। अकबर- बच्चों जैसी बात मत करो। बीरबल- यदि आपको मेरी बात पर यकीन नहीं तो खुद आजमा कर देख लें। अकबर ने चुनौती मंजूर कर ली। इसके बाद एक बच्चे को दरबार में बुलाया गया।

अकबर उससे प्यार से बातें करने लगे। जब उन्होंने बच्चे से पूछा कि क्या खाओगे, तो बच्चा बोला- गन्ना। अकबर के आदेश पर एक सेवक तुरंत गन्ने की छोटी-छोटी गंडेरियाँ तश्तरी में सजाकर ले आया। बच्चे ने उन्हें लेने से मना कर दिया और साबुत गन्ना माँगने लगा।
  एक बार बीरबल दरबार में देर से पहुँचे। अकबर ने इसका कारण पूछा तो वे बोले-हुजूर, बच्चे की जिद पूरी करने में लगा था, इसलिए देर हो गई। अकबर- क्या तुम बच्चे को बहला-फुसलाकर जल्दी नहीं आ सकते थे?      


तब उसे साबुत गन्ना लाकर दिया गया, लेकिन उसने लेने से इंकार करते हुए कहा- मुझे तो वही गन्ना साबुत चाहिए, जिसकी गंडेरियाँ बनाई गई थीं। अकबर- यह कैसे हो सकता है। इस पर जिद पकड़कर बच्चा जोर-जोर से रोने लगा।

अकबर ने उसे तरह-तरह से बहलाया-फुसलाया, उसे गाड़ी भरकर गन्ना देने का लालच दिया, लेकिन वह मानने की बजाय और जोर-जोर से रोने लगा। अंततः हार मान कर अकबर बोले- वाकई बच्चे को समझाना टेढ़ी खीर है।

दोस्तो, बच्चों की जिद की कोई जद नहीं होती। वह किसी भी बात पर अड़ सकता है, अकड़ सकता है। तब आप उसे लाख समझाएँ-मनाएँ, बहलाएँ-फुसलाएँ, आपकी एक नहीं चलेगी, क्योंकि बच्चे स्वार्थी, लालची नहीं होते, जो आपके बहलाने-फुसलाने में आ जाएँ।

उनके लिए तो दुनिया में वही चीज सबसे महत्वपूर्ण, कीमती होती है, जो उन्हें चाहिए। किसी दूसरी चीज से उनका काम नहीं चलता। या तो आप वही दें, या ना दें। साथ ही जितना उन्हें चाहिए, उससे कम या ज्यादा में वे नहीं मानते। किसी ने क्या खूब कहा है कि 'दिल भी इक जिद पर अड़ा है, किसी बच्चे की तरह।

या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं।' लेकिन ऐसी जिद बच्चों पर ही अच्छी लगती हैं, बड़ों पर नहीं। फिर भी कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो कितने ही बड़े हो जाएँ, बच्चे जैसी जिद करना नहीं छोड़ते और वे बात-बात पर बालहठ करने लगते हैं।

ऐसे ही किसी व्यक्ति को जब कुछ जिम्मेदारियाँ सौंपी जाती हैं, तो वह अड़ जाता है कि उसे आधे-अधूरे नहीं, पूरे अधिकार दिए जाएँ। यदि आप उसे समझाने का प्रयास करें, तो वे अड़ जाते हैं कि या तो पूरी जिम्मेदारी सौंपें या फिर रहने दें। यदि आप भी ऐसे ही 'सब कुछ या कुछ भी नहीं' वाली प्रवृत्ति के हैं तो यह नुकसानदायक है।

इसी के कारण बहुत से प्रतिभाशाली लोग वह मुकाम हासिल नहीं कर पाए, जो उन्हें करना चाहिए था, क्योंकि वे भी सब कुछ के लिए अड़ गए और सामने वाले ने उन्हें कुछ भी नहीं दिया। इसलिए आर या पार वाली प्रवृत्ति से बचें और हमेशा अपने आपको लचीला बनाकर रखें ताकि परिस्थिति के अनुसार अपने आप को ढाल सकें। जो बीच के रास्ते पर चलने से हिचकते नहीं हैं, उन्हें अपार सफलता मिलती है, क्योंकि ये अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर तरीके से निभाकर बड़ी जिम्मेदारियों के लिए अपने आपको साबित करते जाते हैं।

वैसे भी सीढ़ियों के सिरे पर छलाँग लगाकर नहीं पहुँचा जाता। वहाँ तो एक-एक सीढ़ी चढ़कर ही पहुँचा जा सकता है। कहते भी हैं कि एक कदम में दुनिया पार नहीं हो सकती, लेकिन एक-एक कदम में तो हो ही सकती है। इसलिए 'सब कुछ' के लिए 'कुछ-कुछ' को न छोड़ें, तभी 'बहुत कुछ' मिलेगा, वरना अड़ने पर तो जो कुछ है, वह भी चला जाएगा और आपको 'कुछ भी नहीं' से समझौता करना पड़ेगा।

और अंत में, आज 'ऑल ऑर नथिंग डे' है। सब कुछ या कुछ भी नहीं एक संतत्व भाव है, जो दुनियादारी में काम नहीं आता। इसके अंदर एक जिद होती है और जिद से दुनिया नहीं चलती। हाँ, जिद को तब जरूर तवज्जो मिलती है, जब वह दूसरों की भलाई के लिए की जाए, वरना खुद के लिए माँगोगे तो बहुत कुछ देकर भी कुछ नहीं पाओगे। अरे भई, हम कुछ नहीं चाहते और आप हैं कि बहुत कुछ देने की जिद किए जा रहे हैं।