शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By मनीष शर्मा

अगर करोगे याचना तो निरर्थक हो जाएगी प्रार्थना

अगर करोगे याचना तो निरर्थक हो जाएगी प्रार्थना -
बचपन में एक बार शेख सादी और उनके पिता एक दल के साथ मक्का जा रहे थे। दल के सदस्यों को आधी रात में उठकर नमाज पढ़ना होती थी। एक बार शेख सादी और उनके पिता उठकर नमाज पढ़ने लगे। नमाज खत्म होने पर शेख सादी ने देखा अब भी कुछ लोग सो रहे हैं।

यह देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा। वे अपने पिता से बोले- अब्बू, कितने काहिल हैं ये लोग। नमाज के वक्त इनकी नींद नहीं खुल रही और चले हैं मक्का। यह सुनकर पिता ने त्यौरियाँ चढ़ाकर कहा- सादी, अगर तू न जागता तो अच्छा था। जागकर दूसरों की निंदा करने से अच्छा यही है कि उठा ही न जाए।

इससे खुदा पर तेरी नमाज का कोई असर नहीं होगा, क्योंकि वह तो उन्हीं की नमाज स्वीकार करता है जो पाक-साफ दिल हों। पिता की बातों से शेख सादी को बहुत ग्लानि हुई और उन्होंने फिर कभी किसी की बुराई नहीं की।
  नमाज खत्म होने पर शेख सादी ने देखा अब भी कुछ लोग सो रहे हैं। यह देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा। वे अपने पिता से बोले- अब्बू, कितने काहिल हैं ये लोग। नमाज के वक्त इनकी नींद नहीं खुल रही और चले हैं मक्का।      


दोस्तो, सही तो है। जब आप ईश्वर की प्रार्थना के साथ उसी के बनाए दूसरे इंसान की बुराई करके एक तरह से उसी की निंदा भी करेंगे, तो वह आपकी प्रार्थना को क्यों स्वीकार करेगा। ऐसे में आपका प्रार्थना करना और न करना बराबर हैं। और फिर आप उसे दोष देते हैं कि वह आपकी सुनता ही नहीं। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि ऊपर वाला आपकी सुने, तो इसके लिए आपको सच्चा और अच्छा इंसान बनना होगा, क्योंकि सच्चे दिल की पुकार ही सुनता है।

कहते भी हैं कि जाके भीतर वासना, बाहर धारे ध्यान। तिह को गोविंद ना मिलैं, अंत होत है हान॥ इसलिए अपने भीतर के नकारात्मक विचारों और अवगुणों को बाहर निकाल फेंके। इस तरह जब आप सकारात्मक सोच और सद्गुणों से युक्त होकर जीवन रूपी नैया को आगे बढ़ाएँगे तो वह बड़े-बड़े भवसागरों यानी चुनौतियों को आसानी से पार कर जाएगी, क्योंकि उसका खिवैया जो ऊपर वाला होगा।

इसके साथ ही प्रार्थना कभी ऐसी न हो कि लगे जैसे आप ईश्वर के आगे हाथ फैलाकर भीख माँग रहे हों, याचना कर रहे हों। यानी आपकी प्रार्थना व्यक्तिगत स्वार्थ से ओतप्रोत नहीं होना चाहिए। ऐसी प्रार्थना निरर्थक हो जाती है। लेकिन यह सब जानते-बूझते भी सामान्यतः लोग ईश्वर के सामने प्रार्थना में अपनी इच्छाओं की फेहरिस्त जोड़ देते हैं। हे ईश्वर, मुझे ये दे दे, वो दे दे। मेरा ऐसा कर दे, वैसा कर दे।

उसका ऐसा हो जाए, वैसा हो जाए। लेकिन कहते हैं न कि बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख। तो उन्हें भी कुछ नहीं मिलता। जो थोड़ा बहुत मिलता है, तो वह उनके अपने अच्छे कर्मों से। वैसे भी ऊपर वाला उसी को देता है, जिसके हाथ ऊपर वाले के सामने दूसरों के लिए फैलते हैं।

जिसके घुटने, मत्था ऊपर वाले के सामने दूसरों के लिए टिकते हैं। तब ऊपर वाला भी इन्हें अपने घुटने किसी के सामने नहीं टेकने देता, सिर नहीं झुकाने देता। दूसरे इनकी श्रेष्ठता के आगे जरूर झुकने लगने लगते हैं।

दूसरी ओर, जब मन में किसी प्रकार की घबराहट हो, बेचैनी हो, तनाव हो, तो प्रार्थना करें। इससे मन पवित्र होता है, चित्त शांत होता है, आत्मा प्रसन्न होती है, परमात्मा संतुष्ट होता है। और संतुष्ट होकर वह आपको तुष्ट कर देता है। पवित्र हृदय से की गई प्रार्थना से मन की आशंकाएँ दूर होती हैं, नकारात्मकता में कमी आती है, विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का साहस आता है और आत्मविश्वास बढ़ता है। हाँ, यदि आपका मन, हृदय, आत्मा शुद्ध न हो तो उसे भी प्रार्थना से ही शुद्ध, स्वच्छ, साफ किया जा सकता है।

और अंत में, आज 'वर्ल्ड प्रेयर डे' है। तो आज आप सच्चे मन से सबकी भलाई के लिए जरूर प्रार्थना करें। साथ ही आज से प्रतिदिन सुबह उठकर और रात्रि को सोने से पहले प्रार्थना के माध्यम से ईश्वर को याद जरूर करें।

कहते हैं सुबह की गई प्रार्थना हृदय के दरवाजे खोलती है, जिससे सहृदय रहकर आप दिनभर की अपनी सभी भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभाते हैं और रात्रि की प्रार्थना हृदय के दरवाजे की चटकनी लगा देती है। इससे रात्रि में आप जब सुप्तावस्था में होते हैं, तब भी उल्टे विचार आपके मन में समाहित नहीं होते। तो शुरू कर रहे हैं न आज से प्रार्थना। सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामयः॥