गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

द लास्ट लियर : चुनिंदा दर्शकों के लिए

द लास्ट लियर : चुनिंदा दर्शकों के लिए -
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निर्माता : अरिंदम चौधरी
निर्देशक : ‍ ऋतुपर्णो घोष
कलाकार : अमिताभ बच्चन, प्रीटि जिंटा, अर्जुन रामपाल, शैफाली छाया, दिव्या दत्ता, प्रसन्नजीत

बंगाल के प्रसिद्ध फिल्मकार ऋतुपर्णो घोष ने उत्पल दत्त के नाटक के आधार पर ‘द लास्ट लिअर’ बनाई है। फिल्म की कहानी और उसका प्रस्तुतिकरण इस तरह का है कि यह फिल्म कुछ खास दर्शकों को ही पसंद आएगी।

इस फिल्म के साथ समस्या यह है कि इसमें शेक्सपीयर का जरूरत से ज्यादा जिक्र है। व्यावसायिक फिल्म पसंद करने वाले इस तरह के विषय को ज्यादा पसंद नहीं करते और न ही उन्हें ये समझ में आता है। इस बात से इंकार नहीं है कि ‘द लास्ट लिअर’ में कुछ खास क्षण हैं। कुछ अद्‍भुत दृश्य हैं। कलाकारों का शानदार अभिनय है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

हरीश उर्फ हैरी (अमिताभ बच्चन) को अभिनय और थिएटर से बेहद लगाव है। हैरी को शेक्सपीयर के सिवाय कुछ सूझता नहीं। फिल्मों में उनकी कोई रूचि नहीं है। हैरी की मुलाकात होती है निर्देशक सिद्धार्थ (अर्जुन रामपाल) से।

सिद्धार्थ की समझदारी से हैरी प्रभावित होता है। कुछ मुलाकातों के बाद दोनों के संबंध मजबूत हो जाते हैं। सिद्धार्थ, हैरी को अपनी फिल्म में काम करने के लिए राजी कर लेता है। इसी बीच कुछ ऐसी घटना घटती है कि सब कुछ बदल जाता है।

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निर्देशक ऋतुपर्णो घोष ने जो विषय चुना है उसकी कुछ सीमाएँ हैं। कुछ अलग सोचना अच्छी बात है, लेकिन लेखन की दृष्टि से देखा जाए तो कई ऐसी बाते हैं जिन्हें स्पष्ट नहीं किया गया है।

शैफाली शाह के मन में प्रीटि जिंटा के प्रति नफरत क्यों है? उसे नफरत फिल्म के निर्देशक से होनी चाहिए थी, ना कि कलाकारों से। अर्जुन रीटेक की माँग क्यों करता है? ऐसी कई बातें हैं जिन्हें लेखक स्पष्ट नहीं कर पाए। ऋतुपर्णो की पुरानी फिल्म ‘रेनकोट’ की तरह इसमें भी बहुत सारी बातचीत है, जिससे फिल्म बेजान हो जाती है।

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अमिताभ बच्चन इस फिल्म की जान है, लेकिन उनका यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनय नहीं कहा जा सकता। इससे बेहतर अभिनय उन्होंने पिछली कई फिल्मों में किया है। अर्जुन रामपाल धीरे-धीरे बेहतर अभिनेता में तब्दील होते जा रहे हैं। ‘रॉक ऑन’ के बाद उनका यह लगातार दूसरा बेहतरीन प्रदर्शन है। प्रीति जिंटा और शैफाली शाह ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। दिव्या दत्ता का निर्देशक सही तरह से उपयोग नहीं कर पाए। प्रसन्नजीत का अभिनय ठीक-ठाक कहा जा सकता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ‘द लास्ट लियर’ फिल्म समारोहों के लिए है, ज्यादातर भारतीय दर्शकों के लिए इसमें कुछ नहीं है।