मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

वेलकम बैक: फिल्म समीक्षा

वेलकम बैक: फिल्म समीक्षा - Welcome Back Hindi Film Review Samay Tamrakar
अनीस बज्मी उन फिल्मकारों में से है जो नया कुछ करने के बजाय चिर-परिचित सफल फॉर्मूलों को ऊपर-नीचे कर फिल्म बनाते हैं। 'वेलकम बैक' 2007 में रिलीज हुई 'वेलकम' का सीक्वल है जो दर्शकों के दिमाग में अभी भी ताजा है क्योंकि यह टीवी पर लगातार सफलता के साथ अब तक दिखाई जा रही है। लेकिन अनीस को लगा कि दर्शक 'वेलकम' को भूल चुके हैं इसलिए उन्होंने लगभग उसी तरह की कहानी को एक बार फिर थोड़े-फेरबदल के साथ पेश कर दिया। कई बार तो ऐसा लगता है कि हम 'वेलकम बैक' नहीं 'वेलकम' देख रहे हैं।
उदय शेट्टी (नाना पाटेकर) और मजनू (अनिल कपूर) अब शरीफ होकर बिजनेस मैन बन गए हैं। उनका चांदनी (अंकिता श्रीवास्तव) पर दिल आ जाता है जो महारानी (डिम्पल कपाड़िया) की बेटी है। अचानक उदय को पता चलता है कि उसके पिता की तीसरी पत्नी से एक बेटी रंजना (श्रुति हासन) है जो उदय की बहन है। उदय अपनी बहन के लिए एक शरीफ लड़का ढूंढता शुरू करता है, लेकिन रंजना को अजय (जॉन अब्राहम) से मोहब्बत हो जाती है जो कि एक गुंडा है। रंजना और अजय शादी करना चाहते हैं, लेकिन उदय-मजनू इसके खिलाफ हैं। वांटेड भाई (नसीरुद्दीन शाह) का बेटा हनी (शाइनी आहूजा) भी रंजना को बेहद चाहता है और उदय-मजनू के लिए एक और मुसीबत खड़ी हो जाती है। थोड़ी उटपटांग हरकतें होती हैं और फिल्म खत्म होती है। 
 
अनीस बज्मी जानते थे कि उनकी कहानी में दम नहीं है लिहाजा उन्होंने कुछ हास्य दृश्य रच दिए भले ही उनका कहानी से कोई लेना-देना न हो। उनका उद्देश्य था कि इन दृश्यों से दर्शकों का मनोरंजन होगा और कहानी पर वे ध्यान नहीं देंगे, लेकिन उनका यह प्रयास असफल नजर आता है। कोई भी कलाकार कभी भी कहीं भी कुछ भी हरकत करने लगता है। 
 
कब्रिस्तान जैसे एक-दो सीन छोड़ दिए जाए तो फिल्म में हंसने के अवसर कम ही मिलते हैं। हां, उन लोगों को जरूर मजा आ सकता है जो दिमाग घर पर रख कर 'डॉ. घुंघरू का खानदान इतना शरीफ है कि इनके घर की मक्खियां भी सिर पर दुपट्टा लेकर निकलती है' जैसे संवादों में मनोरंजन ढूंढते हैं। फिल्म का पहला हाफ तो किसी तरह झेला जा सकता है, लेकिन वांटेड भाई की एंट्री होने के बाद फिल्म में से मनोरंजन गायब हो जाता है। दूसरा हाफ तो इतना खींचा गया है कि बोरियत होने लगती है। 
 
फिल्म में अक्षय कुमार और मल्लिका शेरावत की कमी खलती है जो 'वेलकम' में नजर आए थे। इनकी जगह जॉन अब्राहम और अंकिता श्रीवास्तव को फिट किया गया है जो पूरी तरह से मिस फिट साबित हुए हैं। जॉन से न डांस हुआ है और कॉमेडी करना तो उनके बस की बात नहीं है। वे असहज नजर आएं और उनका अभिनय बेहद बुरा रहा। 
 
निर्देशक भी यह बात अच्छी तरह से जानते थे लिहाजा उन्होंने फिल्म का सारा भार अनिल कपूर और नाना पाटेकर जैसे मंजे हुए अभिनेताओं पर डाला। दोनों की जोड़ी बेहद अच्छी लगी है और कुछ बोरिंग दृश्यों को भी उन्होंने अपने अच्छे अभिनय से मनोरंजनक बना दिया, लेकिन वे आखिर एक सीमा तक ही ये कर सकते थे। 
 
फिरोज खान ने 'वेलकम' में आरडीएक्स नामक डॉन थे तो यहां पर उनकी जगह वांटेड भाई नसीरुद्दीन शाह ने ली है। डिम्पल कपाड़िया और नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों को तो निर्देशक ने बरबाद कर दिया। पता नहीं इन दोनों ने यह फिल्म क्यों की? श्रुति हासन भी ढंग का काम नहीं कर पाई। परेश रावल भी रंग में नहीं दिखे। अंकिता श्रीवास्तव की तो बात करना ही बेकार है।  
 
 
फिल्म का संगीत बहुत बड़ा माइनस पाइंट है। 'मैं बबली हुई, तू बंटी हुआ, बंद कमरे में 20-20 हुआ' जैसी लाइनों को गाना बना दिया गया है। एक भी ढंग का गाना नहीं है। परेश रावल को वर्षों बाद पता चलता है कि उनका एक जवान बेटा है तो वे कहते हैं 'मैंने तो वोट ही नहीं दिया तो किसी को सीएम कैसे मानूं'? इस तरह के डबल मीनिंग संवाद भी कई जगह हैं। 
 
निर्माता ए. फिरोज नाडियाडवाला ने जम कर पैसा बहाया है। छोटी-छोटी भूमिकाओं में नामी कलाकार लिए गए हैं। भव्य लोकेशन, विदेश में शूट और फिल्म को भव्य लुक देने में उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं रखी है, लेकिन उनके पैसे का दुरुपयोग ज्यादा हुआ है। सिनेमाटोग्राफी जरूर उल्लेखनीय है।  
 
वेलकम बैक का निर्माण केवल वेलकम की सफलता को भुनाने के लिए किया गया है। 
 
बैनर : स्विस इंटरनेशनल प्रा.लि., इरोज़ इंटरनेशनल, बेस इंडस्ट्रीज़ ग्रुप
निर्माता : फिरोज ए. नाडियाडवाला, सुनील ए. लुल्ला
निर्देशक : अनीस बज़्मी
संगीत : अनु मलिक, मीत ब्रदर्स अंजान, यो यो हनी सिंह, सिद्धांत माधव, मीका सिंह, अभिषेक रे
कलाकार : जॉन अब्राहम, श्रुति हासन, अनिल कपूर, नाना पाटेकर, डिम्पल कपाड़िया, नसीरुद्दीन शाह, अंकिता श्रीवास्तव, परेश रावल, राजपाल यादव, रणजीत
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 33 मिनट
रेटिंग : 2/5