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Written By समय ताम्रकर

की एंड का : फिल्म समीक्षा

की एंड का : फिल्म समीक्षा - Ki&Ka, Kareena Kapoor Khan, Arjun Kapoor, R Balki, Samay Tamrakar
वर्षों से परंपरा चली आ रही है कि पुरुष बाहर के काम संभाले और स्त्री घर के। परिवर्तन ये हुआ है कि कुछ स्त्रियां भी बाहरी जवाबदारी निभाने लगी हैं और उन्हें घर तथा बाहर की दोहरी भूमिका निभानी पड़ती हैं, लेकिन पुरुष ने कभी घर का जिम्मा नहीं संभाला। यदि कोई पुरुष ऐसा करता है भी है तो उसे ताना दिया जाता है कि वह पत्नी के कमाए टुकड़ों पर पलता है। 
 
दरअसल हाउसवाइफ की कोई कीमत ही नहीं है क्योंकि वह पैसा नहीं कमाती है जबकि उसका काम भी कम जवाबदारी वाला नहीं रहता है। पैसा कमाने वाला अपने आपको दूसरे के मुकाबले अधिक आंकता है। जब हाउसवाइफ को ही तवज्जो नहीं दी जाती हो तो हाउसहसबैंड को भला कौन पूछेगा? 
 
आर बाल्की की फिल्म 'की एंड का' इसी विचार पर आधारित है जिसमें में स्त्री और पुरुष की भूमिकाओं को पलट दिया गया है। फिल्म का नायक कबीर (अर्जुन कपूर) अपनी मां की तरह बन कर गृहस्थी का भार उठाना चाहता है। दूसरी ओर नायिका किया (करीना कपूर) महत्वाकांक्षी महिला है और पैसा कमाती है। दोनों में प्रेम विवाह होता है। खाना पकाना, साफ-सफाई और घरेलू काम कबीर करता है। वह अपनी पत्नी के लिए सुबह कॉफी बनाता है और शाम को उसके घर आने की बाट जोहता है। 
फिल्म के निर्देशक और लेखक आर बाल्की ने इंटरवल तक फिल्म को अच्छी तरह से बनाया है। कबीर और किया की बातचीत सुनने लायक है और इस दौरान कुछ ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जिनमें मनोरंजन का स्तर ऊंचा है। इंटरवल के समय उत्सुकता जागती है कि विचार तो बेहतरीन है अब कहानी को आगे कैसे बढ़ाया जाएगा? 
 
दूसरे हाफ में फिल्म लड़खड़ाती है और बढ़ी हुई अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पाती, इसके बावजूद दर्शकों को बांध कर रखती है। यहां पर नई बात यह देखने को मिलती है कि कमाने वाला चाहे स्त्री हो या पुरुष अपने आपको सुपीरियर समझता है। कबीर और किया में विवाद होता है और किया के मुंह से ये बातें निकल ही जाती हैं। 
 
किया को ऐसी महिला दिखाया गया है जो बच्चा नहीं चाहती। यह सोच सभी की नहीं होती। दरअसल कहानी में तब और गहराई आती जब दिखाया जाता कि किया मां बनती और बच्चों की परवरिश करती तब क्या होता? लेकिन आर बाल्की इतना आगे जाना नहीं चाहते थे। उन्होंने केवल मनोरंजन के लिए फिल्म बनाई है कि यदि ऐसा हो तो कैसा हो। 
 
लेखन के बजाय वे ‍अपने निर्देशन से ज्यादा प्रभावित करते हैं। बतौर लेखक उनके पास सिर्फ विचार था जिसे दृश्यों के माध्यम से उन्होंने फैलाया। इस पर उन्हें खासी मेहनत करना पड़ी। कई छोटे-छोटे लम्हें उन्होंने बखूबी गढ़े हैं और फिल्म की ताजगी को बरकरार रखा।   
 
 
फिल्म में लीड कलाकारों का अभिनय भी दर्शकों को फिल्म से जोड़ कर रखता है। करीना कपूर का अभिनय बढ़िया है। उन्होंने अपने किरदार को ठीक से समझा और वैसा ही परफॉर्म किया। अर्जुन कपूर के साथ उनकी जोड़ी अच्छी लगती है। अर्जुन कपूर तेजी से सीख रहे हैं। कुछ दृश्यों में उनका अभिनय अच्छा तो कुछ में कमजोर रहा है। स्वरूप सम्पत लंबे समय बाद नजर आईं और वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। अमिताभ बच्चन और जया बच्चन का छोटे से रोल में अच्छा उपयोग किया गया है। 
फिल्म के संवाद गुदगुदाते हैं। कुछ गाने भी अच्छे हैं। कबीर की रेल के प्रति दीवानगी को भी फिल्म में अच्छे से दिखाया गया है। 
 
एक उम्दा विचार पर बनाई गई 'की एंड का' और अच्छी हो सकती थी, बावजूद इसके देखी जा सकती है। 
 
बैनर : इरोस इंटरनेशनल, होप प्रोडक्शन्स
निर्माता : सुनील लुल्ला, राकेश झुनझुनवाला, आरके दमानी, आर बाल्की
निर्देशक : आर बाल्की
संगीत : इलैयाराजा
कलाकार : अर्जुन कपूर, करीना कपूर खान, स्वरूप सम्पत, रजत कपूर, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 6 मिनट 
रेटिंग : 3/5